32 साल पुराने फर्जी एनकाउंटर मामले में दो पूर्व पुलिस अधिकारी दोषी करार
मोहाली, 3 मार्च (हप्र )
सीबीआई मोहाली कोर्ट ने 1993 के एक अन्य एनकाउंटर को फर्जी करार दिया। तरनतारन के दो पूर्व पुलिस अधिकारी, तत्कालीन एसएचओ पट्टी सीता राम और तत्कालीन पुलिस स्टेशन पट्टी में तैनात सी राज पाल को दोषी ठहराया गया। आरोपियों को 6 मार्च को सजा सुनाई जाएगी। घटना के 32 साल बाद फैसला आया। 1993 में तरनतारन पुलिस ने दो युवकों को मरा हुआ दिखाया। 11 पुलिस अधिकारियों पर अपहरण, अवैध कारावास और हत्या का आरोप लगाया गया था, लेकिन 4 की सुनवाई के दौरान मौत हो गई। सीबीआई ने इस मामले में 1995 में पारित सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के आधार पर जांच की थी। शुरू में सीबीआई ने प्रारंभिक जांच की और 27 नवंबर 1996 को ज्ञान सिंह नाम के एक व्यक्ति का बयान दर्ज किया और बाद में फरवरी 1997 में सीबीआई द्वारा जम्मू में एएसआई नोरंग सिंह और पुलिस पोस्ट कैरों और पुलिस स्टेशन पट्टी के अन्य लोगों के खिलाफ नियमित मामला दर्ज किया गया। सीबीआई के सरकारी वकील अनमोल नारंग ने कहा कि 80 साल के आरोपी सीता राम को आईपीसी की धारा 302,201 और 218 के तहत अपराध करने के लिए दोषी ठहराया गया और राजपाल, उम्र लगभग 57 साल को धारा 201 और 120-बी के तहत अपराध करने के लिए दोषी ठहराया गया।
सीबीआई अभियोजक ने आगे कहा कि सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के आधार पर जांच की। इसमें यह साबित हुआ कि 30 जनवरी 1993 को, गुरदेव सिंह उर्फ देबा निवासी गलालीपुर तरनतारन को एएसआई नोरंग सिंह प्रभारी पुलिस पोस्ट कैरों तरनतारन के नेतृत्व में पुलिस पार्टी द्वारा उसके निवास से उठाया गया था और उसके बाद 5 फरवरी 1993 को एक अन्य युवक सुखवंत सिंह को एएसआई दीदार सिंह पीएस पट्टी, तरनतारन के नेतृत्व में पुलिस पार्टी द्वारा गांव बहमनीवाला, तरनतारन से उठाया गया था। बाद में दोनों को 6 फरवरी 1993 को थाना पट्टी के भागूपुर इलाके में मुठभेड़ में मारा गया दिखाया गया और मुठभेड़ की मनगढ़ंत कहानी बनाकर थाना पट्टी, तरनतारन में केस दर्ज किया गया। दोनों मृतकों के शवों का लावारिस तरीके से अंतिम संस्कार कर दिया गया और उन्हें परिवारों को नहीं सौंपा गया। उस समय पुलिस ने दावा किया था कि दोनों हत्या, जबरन वसूली आदि के 300 मामलों में शामिल थे, लेकिन सीबीआई जांच के दौरान यह तथ्य गलत पाया गया।
वर्ष 2000 में जांच पूरी करने के बाद, सीबीआई ने तरनतारन के 11 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र पेश किया था, जिनमें नोरंग सिंह, तत्कालीन प्रभारी पीपी कैरों, एएसआई दीदार सिंह, कश्मीर सिंह, तत्कालीन डीएसपी, पट्टी, सीता राम, तत्कालीन एसएचओ पट्टी, दर्शन सिंह, गोबिंदर सिंह, तत्कालीन एसएचओ वल्टोहा, एएसआई शमीर सिंह, एएसआई फकीर सिंह, सी सरदूल सिंह, सी राजपाल और सी अमरजीत सिंह शामिल थे और वर्ष 2001 में उनके खिलाफ आरोप तय किए गए थे, लेकिन उसके बाद पंजाब अशांत क्षेत्र अधिनियम, 1983 के तहत आवश्यक मंजूरी की दलील के साथ आरोपियों की याचिकाओं के आधार पर उच्च न्यायालयों द्वारा मामला 2021 तक स्थगित रहा, जिन्हें बाद में खारिज कर दिया गया।
5 आरोपियों को मिला संदेह का लाभ, बरी
पीड़ित परिवारों के वकील सरबजीत सिंह वेरका ने कहा कि सीबीआई ने इस मामले में 48 गवाहों का हवाला दिया था, लेकिन मुकदमे के दौरान केवल 22 गवाहों ने गवाही दी क्योंकि 23 गवाहों की देरी से सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई और इस तथ्य के कारण कुछ आरोपी बरी हो गए। इसी तरह चार आरोपी सरदूल सिंह, अमरजीत सिंह, दीदार सिंह और समीर सिंह की मुकदमे के लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो गई। अंत में मुकदमा शुरू होने के 2 साल के भीतर, राकेश कुमार गुप्ता की सीबीआई विशेष अदालत ने फैसला सुनाया और 2 आरोपियों को दोषी ठहराया और 5 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।