17 साल बाद 15 दोषियों को मिली सजा
भरतेश सिंह ठाकुर/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 26 नवंबर
मोटर दुर्घटना दावा मामलों में बीमा कंपनियों से मुआवजा प्राप्त करने के लिए जाली दस्तावेज बनाने, गलत पहचान बताने और वाहनों के साथ-साथ स्वयं वाहनों के चालक लगाने के लिए 15 लोगों को दोषी ठहराने में पंचकूला सीबीआई के विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने 17 साल का समय लगा दिया। हालांकि इन 17 सालों में 9 अभियुक्तों की मौत हो चुकी है।
अदालत ने अपराध की साजिश का खुलासा किया जिसमें वकीलों और उनके सहयोगियों जैसे क्लर्क, मुंशी आदि के एक समूह ने हिट-एंड-रन मामलों में मुआवजे के लिए मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) में हेरफेर किया। एमएसीटी की अध्यक्षता सत्र न्यायाधीशों द्वारा की जाती है। जानकारी के अनुसार जिन वाहनों का दुर्घटनाओं से कोई लेना-देना नहीं था, घोटालेबाजों द्वारा उनका उपयोग हिट-एंड-रन मामलों में मुआवजे का दावा करने के लिए किया गया। दुर्घटनाएं तो सही थीं, लेकिन इसमें शामिल वाहन, उनके चालक और गवाह कोई और थे। सीबीआई ने केवल 25 ऐसे मोटर दुर्घटना दावा मामलों की जांच की। इस मामले में पहली गुमनाम शिकायत हालांकि अप्रैल, 2002 में अंबाला से आई थी लेकिन तब तत्कालीन जिला जज ने कहा था कि इस तरह का घोटाला ‘सैकड़ों मामलों’ में हो सकता है।
सीबीआई द्वारा जांच किए गए इन 25 मामलों में कुल मुआवजा 1.11 करोड़ रुपये था। ब्याज में 9 प्रतिशत की वृद्धि के साथ यह राशि लगभग 1.5 करोड़ रुपये बनती है।
मजेदार बात यह है कि मुआवजे के सभी मामलों में एक बात समान थी, वो यह कि सभी मामले अधिवक्ता एसपीएस चौहान के माध्यम से दायर किए गए थे। चौहान अंबाला के ही रहने वाले हैं। 17 साल से अधिक समय तक चले इस मुकदमे में सीबीआई के विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट अनिल कुमार यादव ने 11 नवंबर को चौहान, उनके कनिष्ठ वीपी कौशल को कठोर कारावास की सजा सुनाई। उसी दिन 11 व्यक्तियों को 6 महीने की कैद की सजा भी सुनाई गई।
6 अप्रैल, 2002 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट को लिखे एक पत्र के साथ मामले का खुलासा हुआ। अंबाला निवासी भगत राम ने दावा किया था कि बीमा कंपनियों से मुआवज़ा प्राप्त करने के लिए वकील एसपीएस चौहान हिट-एंड-रन मामलों में ‘किराए के’ वाहनों और ड्राइवरों की व्यवस्था करके लाखों कमा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इस काम में चौहान को न्यायिक अधिकारियों का समर्थन प्राप्त था। जिला जज अंबाला से रिपोर्ट मिलने के बाद 19 अप्रैल, 2004 को हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे।
सीबीआई ने अंततः 1997 से 2001 तक दायर 25 मामलों की जांच की और 30 लोगों को आरोपी बनाया। हालांकि, किसी न्यायिक अधिकारी पर आरोप नहीं लगाया गया।