Murli Manohar Sawroop हिट हुए गीत मगर शोहरत न मिली
श्री राधे गोविंदा, आरती कुंज बिहारी, रामजी करेंगे बेड़ा पार जैसे भजन व दाता एक राम जैसे एलबम व ‘हनुमान चालीसा’ के संगीतकार मुरली मनोहर स्वरूप थे। देश में एलपी रिकार्ड की शुरुआत में उनका योगदान रहा। उनके संगीतबद्ध गीत देशभर में गूंजते रहे लेकिन वाजिब शोहरत व श्रेय नहीं मिले।
वेद विलास उनियाल
भारतीय फिल्म संगीत के स्वर्णिम दौर कहे जाने वाले समय के संगीत की चर्चा में कई दिग्गज संगीतज्ञों का जिक्र होता है। हर संगीतकार की अपनी खास शैली रही। गीत-संगीत को सुनते ही संगीत के चाहने वाले संगीतकार और गीतकार के नाम का भी आभास कर लेते थे। तब संगीतकारों ने अपने संगीत में कई प्रयोग किए। शास्त्रीयता पर आधारित धुन बनाई वहीं लोकधुनों से भी उनका संगीत सजता रहा। हर विधा पर संगीत रचा गया। ऐसे में कुछ संगीतकारों को अपार शोहरत मिली। लेकिन कुछ संगीतकार विलक्षण प्रतिभा के बावजूद कुछ गीतों के संगीत तक सीमित रहे। हालांकि उनके वो गीत भी कालजयी बने। ऐसे संगीतकारों में दानसिंह, सरदार मलिक, सीएन त्रिपाठी व सपन जगमोहन जैसे नाम हैं। लेकिन फिर भी वो जाने -पहचाने रहे। लेकिन इस दौर में मुरली मनोहर स्वरूप जैसे संगीतकार भी रहे जिसके संगीत में सजे गीत, आरती, गजल भारत में गूंजते रहे लेकिन उन्हें वो शोहरत नहीं मिली जिसके वे हकदार थे।
‘आरती कुंज बिहारी...’ के संगीतकार
प्रख्यात भजन गायक हरी ओम शरण ने श्री राधे गोविंदा, मन भजले हर का प्यारा नाम है, मैली चादर ओढ़ के कैसे.., आरती कुंज बिहारी, रामजी करेंगे बेड़ा पार जैसे भजनों को गाया। उन्होंने हनुमान चालीसा भी गाई। दाता एक राम जैसे भजन एलबम घर-घर गूंजे। उस दौर में टेपरिकॉर्ड पर लोग सुबह-शाम इन भजनों को सुनते थे जो आज भी लोकप्रिय हैं। इन भजनों के संगीतकार मुरली मनोहर स्वरूप ही थे। उन्होंने ढोलक, हारमोनियम, तबला, सारंगी, खड़ताल व बांसुरी जैसे साजों से भजनों की मधुर झंकार भरी।
रामचरित मानस को किया संगीतबद्ध
प्रख्यात गायक मुकेश की गाई रामचरित मानस भाव विभोर करती है। साल 1976 के बाद एचएमवी के लिए मुकेश की गाई राम चरित मानस बहुत लोकप्रिय हुई। मुरली मनोहर स्वरूप ने ही मुकेश की गाई रामचरित मानस को संगीतबद्ध किया था। उन्होंने मानस के संगीत के हर कांड में कथा प्रसंगों के अनुरूप संगीत रचा व श्लोकों को शुद्धता -मधुरता से मुकेश से गवाया।
संगीत की माटी में पले-बसे
यूपी में कासगंज की माटी में संगीत रचा-बसा है जहां भारतीय शास्त्रीय संगीत में ख्याल गायन शैली को सामने लाने वाले अमीर खुसरो ने जन्म लिया। कासगंज में ही तुलसीदास के संगीत शिक्षक हरिहरदास की संगीत पाठशाला भी थी। वर्तमान में स्थानीय रिचा शर्मा के गीत लोगों को भाते हैं। कासगंज में ही पले-बसे मुरली मनोहर स्वरूप ने गीत-संगीत में सुरों की बरसात की।
एलपी रिकार्ड की शुरुआत में योगदान
मुरली मनोहर स्वरूप ने पचास से लेकर नब्बे के दशक तक भारतीय संगीत की सेवा की। उन्होंने भारतीय जनमानस को अद्भुत भजनों की सौगात दी। वहीं उनका योगदान भारत में एलपी रिकार्ड की शुरुआत कराने का भी है। साल 1930 में वह अपने पिता के साथ कोलकाता चले गए थे। फिर ग्रामोफोन म्यूजिक कंपनी में काम करने इंग्लैंड गए। पचास के दशक में इंग्लैड की म्यूजिक रिकॉर्ड कंपनी हिज मास्टर्स वायस एमएमपी के साथ मिलकर भारत में म्यूजिक रिकार्ड और एलबम की शुरुआत की। एक तरह से भारत में यह संगीत के प्रचार-प्रसार की क्रांति थी।
गजलों, लोकगीतों को भी निखारा अपने साजों से
मुरली मनोहर के संगीत निर्देशन में मुकेश,लता मंगेशकर, हरिओम शरण, बेगम अख्तर, शारदा सिन्हा, मोहम्मद रफी व किशोर कुमार आदि सबने गीत गाए। लेकिन मुरली मनोहर स्वरूप कलाकारों और म्यूजिक इंडस्ट्री के बीच तो चर्चित नाम रहा पर जनमानस में उन्हें बहुत चर्चा नहीं मिली। कितने लोग जानते होंगे कि सत्तर के दशक में हरिओम शरण की गाई प्रसिद्ध एलबम ‘दाता एक राम’ के संगीत रचनाकार मुरली मनोहर ही थे। जिस हनुमान चालीसा को घर-घर गाया जाता है उसकी धुन मनोहर ने तैयार की थी। वहीं बेगम अख्तर की मशहूर गजल ‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया’ का संगीत भी मनोहर स्वरूप के साजों से निखरा। इसी तरह की मुकेश की गायी ‘बराबर से बचकर निकलने वाले, मेरे महबूब मेरे दोस्त’ को बेहतरीन संगीत के लिए याद किया जाता है। मन्ना डे की ‘हैरान हूं सनम’ बहुत लोकप्रिय हुई। भारतीय लोकजीवन में शारदा सिन्हा का गायन अनमोल है। उन्होंने छठ पर्व के गीतों को सजाया। लोकमंगल के गीत गाए।
मुरली मनोहर स्वरूप के साजों में शारदा सिन्हा के विवाह विदाई गीत लोकजीवन की धरोहर बन गए हैं। मुरली मनोहर स्वरूप नब्बे के दशक में अपनी बेटी के पास लंदन चले गए थे। इसके बाद वह गुमनामी में रहे। ‘अग्निपथ अग्निपथ’ तो सुर संगीत में सज गया, लेकिन मुरली मनोहर स्वरूप को याद किसी ने नहीं किया। भारतीय संगीत में नौशाद, शंकर जयकिशन, मदन मोहन, एसडी बर्मन, कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल व खैय्याम सबको अपने सृजन पर शोहरत मिली। मुरली मनोहर स्वरूप इसी स्तर के साधक थे। संगीत में रमे लोगों को उन्हें उनका श्रेय देना चाहिए।