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हारे हुए का कष्ट, चमचा रहे मस्त

04:00 AM Feb 11, 2025 IST

आलोक पुराणिक

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चुनावी धंधे पर स्मार्ट विश्वविद्यालय ने निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया था, इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है :-
भारतीय अर्थव्यवस्था गांव प्रधान और चुनाव प्रधान है। चुनाव के कारोबार में बहुत धंधे हैं, टेंट हाउस, माइक वाले, बहुत कमाते हैं चुनाव से, पर कइयों की रकम डूब भी जाती है। इस विषय को समझने के लिए दो पत्रों का अध्ययन जरूरी है, एक पत्र तो हारे हुए नेता ने अपने चमचे को लिखा है और चमचे ने नेता को लिखा है :-
नेता का पत्र चमचे को : आपने तो कहा था कि हमारी हवा नहीं सुनामी चल रही है। हम तो बुरी तरह से हारे हैं। आपने करीब दो करोड़ रुपये लिये थे कि खाने-पीने का इंतजाम करना है, माइक, टैंट का जुगाड़ करना है। यह क्या हुआ क्या पब्लिक ने खाने-पीने के बाद भी हमें वोट न दिया। आपने कहा था कि मैं बहुत ही पॉपुलर हूं। आपने कहा था कि मैं तो अमेरिका में चुनाव लड़कर वहां का राष्ट्रपति भी बन सकता हूं। मेरी चर्चा मंगल व शुक्र पर भी होती है। यह हुआ क्या, मैं विधानसभा चुनाव न जीत पाया। अब माइक, टैंट हाउस वाले मुझसे भुगतान मांग रहे हैं, वह रकम कहां गयी, जो आपने मुझसे वसूली थी। आपने चुनाव से पहले जो तस्वीर खींची थी मेरे सामने, उसे देखकर तो मैं आश्वस्त हो गया था कि मैं अपनी विधानसभा सीट ही नहीं, भारत की हर सीट पर जीत सकता हूं। मतलब हुआ क्या है।
चमचे का पत्र : सर, आप यूं समझें कि आप जीते हुए थे, बिलकुल जीत ही गये थे। बस आखिरी वक्त में कुछ यूं हुआ कि आप हार गये। मेरी कोशिशों में कोई कमी नहीं थी, पर कुछ नसीब का खेल कि आप हार गये। माइक, टैंट हाउस वालों की जो रकम आपने दी थी, वह तो चुनाव प्रचार में ही खर्च हो गयी। इसका हिसाब दे पाना संभव नहीं है क्योंकि आयकर विभाग, सीबीआई के भय से हिसाब नहीं रखा, तो आपको हिसाब दे पाने की स्थिति में नहीं हूं। पर आप मानिये, आप भरोसा कीजिये कि सारी रकम खर्च हो गयी है आपके प्रचार में। भरोसा करना पड़ेगा, क्योंकि भरोसे पर ही दुनिया कायम है। कुछ और रकम भेज दीजिये ताकि माइक, टैंट वालों को भुगतान किये जा सके। पैसे की कोई कमी नहीं आपके पास, पाइप घोटाले और ब्रांडी घोटाले की रकम तो आपके पास होगी ही। कबीर भी कह गये हैं :-
चिड़ी चोंच भर ले गई, नदी न घट्यो नीर, दान दिए धन न घटे, कह गए दास कबीर।
आपकी नदी में कुछेक करोड़ मैंने ले लिये, तो समझिये कि चिड़ी चोंच भर ले गयी, नदी का पानी कुछ कम न होता। आप नदी नहीं हैं, आपके विरोधी कहते हैं कि आप तो भ्रष्टाचार के महासागर हैं। हम चिड़िया हैं। चिड़िया पर्यावरण के लिए बहुत ही जरूरी है।

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