हादसों की सड़क
यह शर्मनाक ही है कि भारत में दुनिया की सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। इन दुर्घटनाओं में अन्य कारणों के अलावा सबसे अधिक भूमिका तकनीकी व गुणवत्ता की खामियों वाली सड़कों की होती है। यह भयावह है कि वर्ष 2023 में देश में हुई पांच लाख दुर्घटनाओं में करीब पौने दो लाख लोगों की मौत हुई। उस पर सबसे दुखद यह है कि मरने वालों में एक लाख चौदह हजार लोग अट्ठारह से 45 वर्ष के बीच के युवा थे। जो परिवार के कमाने वाले व नई उम्मीद थे। इन हालात को देखते हुए ही केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय ने वर्ष 2030 तक इन सड़क दुर्घटनाओं को आधा करने का लक्ष्य रखा है। यह विडंबना ही है कि दुर्घटनाएं रोकने के लिये सख्त कानून बनाने एवं तकनीक के जरिये चालकों की लापरवाही पर नजर रखने जैसे उपायों के बावजूद आशातीत परिणाम सामने नहीं आए हैं। ऐसे में केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के बेबाक सुझाव से सहमत हुआ जा सकता है कि खराब सड़क निर्माण को गैर-जमानती अपराध बना दिया जाना चाहिए। इसके लिये ठेकेदार और इंजीनियर की जवाबदेही तय होनी चाहिए। हाल ही में भारतीय उद्योग परिसंघ के एक कार्यक्रम में उन्होंने दु:ख जताया कि विदेशों में होने वाले कार्यक्रमों में जब भारत में विश्व की सर्वाधिक सड़क दुर्घटना वाले देश के रूप में चर्चा होती है, तो उन्हें शर्म महसूस होती है। आखिर तमाम प्रयासों के बावजूद सड़क हादसे क्यों नहीं थम रहे हैं।
यह बात तय है कि अगले पांच सालों में सड़क दुर्घटनाओं को यदि आधा करना है, तो युद्ध स्तर पर प्रयास करने होंगे। उन कारणों को तलाशना होगा, जिनकी वजह से हर साल सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि होती है। आखिर क्या वजह है कि राजमार्गों के विस्तार और तेज गति के अनुकूल सड़कें बनने के बावजूद हादसे बढ़े हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि राजमार्गों व विभिन्न तीव्र गति वाली सड़कों में साम्य का अभाव है, वहीं मोड़ों को दुर्घटना मुक्त बनाने हेतु तकनीक में बदलाव की जरूरत है। ऐसे में केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय को उन कारणों की पड़ताल करनी होगी, जो पर्याप्त धन आवंटन के बावजूद सड़कों को दुर्घटनामुक्त बनाने में बाधक हैं। ऐसे में जरूरी है कि सड़कों की निर्माण सामग्री और डिजाइनों की निगरानी के लिये स्वतंत्र व सशक्त तंत्र बनाया जाए, जो बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के काम कर सके। साथ ही मंत्रालय का दायित्व बनता है कि इस बाबत स्पष्ट नीति को सख्ती से लागू किया जाए। यह जानते हुए कि सड़कों के ठेके में मोटे मुनाफे के लिए एक समांतर भ्रष्ट तंत्र देश में विकसित हुआ है, जो निर्माण कार्य की गुणवत्ता से समझौता करने से परहेज नहीं करता। जिसके खिलाफ उठने वाली ईमानदार आवाजें दबा दी जाती हैं। निस्संदेह, गुणवत्ता का मूल्यांकन करने वाली व्यवस्था की जवाबदेही तय करने की सख्त जरूरत है। तब हमें यह सुनने को नहीं मिलेगा कि उद्घाटन के कुछ ही बाद ही सड़क उखड़ गई या बारिश में घुल गई।