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हरियाणा में नशा विरोधी रणनीतियों काे नई धार

04:00 AM Dec 14, 2024 IST
हरियाणा में नशा विरोधी रणनीतियों काे नई धार
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हरियाणा में नशा विरोधी मुहिम की रणनीतियां नये ढंग से निर्मित की गयी हैं। इस दिशा में नशा विरोधी संचार मॉडल के तौर पर एक परिवर्तनकारी पहल है जो परंपरागत तरीकों से हटकर है। नशा मुक्ति के मामले में देश के दूसरे राज्य भी हरियाणा के इस इनोवेटिव मॉडल से सीख ले सकते हैं। अपनी-अपनी खास परिस्थितियों व संदर्भों में ये रणनीतियां अपना सकते हैं।

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ओ.पी. सिंह

भारत नशाखोरी की महामारी की चपेट में है, जिसका असर न केवल व्यक्तिगत जीवन बल्कि यह राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक नींव को भी खतरे में डालता है। यह त्रासदी परिवारों, समुदायों और जनस्वास्थ्य प्रणाली तक में व्याप्त है, जिसके लिए तत्काल और नूतन समाधान की आवश्यकता है। हालांकि कानून लागू करने वाले विभागों ने आपूर्ति शृंखला पर अंकुश लगाने में काफी प्रगति की है, लेकिन इसकी मांग को जड़ से खत्म करने संबंधी उपाय एक कठिन चुनौती बने हुए हैं। इस जंग में, प्रभावी संचार एवं जागरूकता मुहिम अपरिहार्य हैं। लेकिन पारंपरिक ढंग जैसे व्याख्यान और डर पैदा करने वाले संदेश, अपना असर करने में विफल रहे हैं विशेष रूप से युवाओं में, जो मादक द्रव्यों के सेवन के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं।
हरियाणा ने परिवर्तनकारी नशा विरोधी संचार मॉडल में पहलकदमी की है। जो कि पुराने तौर-तरीकों से जुदा है। सांस्कृतिक प्रासंगिकता में निहित, व्यवहार विज्ञान से सीखते हुए और प्रौद्योगिकी द्वारा संवर्धित, यह समग्र रणनीति न केवल नशीली दवाओं के उपयोग के खिलाफ चेताती है बल्कि लोगों को सूझबूझ पूर्ण निर्णय लेने और लचीलापन विकसित करने हेतु सशक्त भी बनाती है। हरियाणा का यह तरीका मिसाल है कि कैसे नवीन उपाय और जन-केंद्रित रणनीति स्थायी असर पैदा कर सकती है।
पारंपरिक नशा विरोधी प्रचार अक्सर एकतरफा संचार पर निर्भर रहते हैं, जिसमें नशीली दवाओं के उपयोग करने के खतरों पर जोर देना या कड़ी चेतावनी जारी करना शामिल हैंै। नेक इरादे से किए जाने के बावजूद, ये ढंग शायद ही कभी मादक द्रव्यों के सेवन के गहन कारक जैसे कि साथियों का दबाव, तनाव, भावनात्मक अलगाव और दूसरों से होड़ के कारण बनने वाली मानसिक स्थिति को छूते हैं। इसीलिए युवाओं को ऐसे अभियान अक्सर उनकी वास्तविकताओं से कटे हुए महसूस होते हैं, जिससे उनकी प्रभावशीलता नगण्य हो जाती है।
इन कमियों को पहचानते हुए, हरियाणा ने लोगों को सार्थक रूप से जोड़ने के वास्ते, अपनी प्रचार रणनीति को नए सिरे से तैयार किया है और भय-आधारित संदेश देने के बजाय उनके अंदर अपने सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भों से सहभागिता, सरोकार और सशक्तीकरण पैदा करने वाले बदलाव लाने का प्रयास किया है। जागरूकता बनाने और इसको मूर्त रूप देने के बीच की खाई को पाटने में यह आमूल-चूल बदलाव महत्वपूर्ण साबित हुआ है।
हरियाणा के इस अभिनव दृष्टिकोण के केंद्र में ‘चक्रव्यूह’ नामक कार्यक्रम है, जोकि इस विषय में शिक्षित करने के ढंग में परिवर्तन है, यह प्रतिभागियों में रुचि जगाकर, उन्हें जीवन जीने और नशों से दूर रहने की अभिनव कला सिखाता है। इसमें प्रतिभागी टीम में काम करते हुए असली जिंदगी जैसी समस्याओं को सुलझाने, कठिनाई जनित जिन चुनौतियों को हल करने में युक्तिपूर्ण विचार की जरूरत होती है, वह क्षमता पैदा करती है। साथ ही नैतिकतापूर्ण निर्णय लेना और सबके साथ मिलकर काम करने की भावना। इस किस्म के परस्पर औपचारिक और वैचारिक आदान-प्रदान का प्रभाव केवल भय बनाकर नशे से तौबा करने वाले ढंग से कहीं असरदायक है। यह भागीदार को अनिवार्य कौशल जैसे कि लचीलापन, एकाग्रता और सहभागिता से युक्त करता है, जो साथियों के दबावों को नकारने और सकारात्मक विकल्प बनाने में अहम है।
रिवायती भाषणबाजी की तरह न होकर-जिससे कोई जुड़ाव महसूस नहीं करता- हरियाणा का ‘चक्रव्यूह’ नामक यह कार्यक्रम प्रेरक उपायों को यादगार एवं प्रभावशाली अनुभव बनाता है। प्रशिक्षित प्रतिभागी उस समझ एवं व्यावहारिक ज्ञान के साथ निकलते हैं, जिनका उपयोग वे अपनी रोजाना की जिंदगी में कर सकेंगे। हरियाणा ने ‘चक्रव्यूह’ की पहुंच व्यापक बनाने के लिए इसे डिजिटल प्रारूप में ढाला है। हैकाथॉन के माध्यम से डेवलपर्स के साथ सहयोग करते हुए, सरकार ने ‘एस्केप रूम’ अनुभव की तर्ज पर एक मोबाइल गेम बनाया है। खेल-खेल में दृष्टिकोण पैदा करने वाला यह तरीका युवाओं के बीच डिजिटल मंचों की लोकप्रियता को भुनाता है जिससे नशा-विरोधी अभियान आकर्षक और सुलभ बन जाता है। यह तकनीकी नूतन प्रयोग शहरी-ग्रामीण अंतर को पाटने में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। वंचित क्षेत्रों में इंटरेक्टिव सामग्री प्रदान करते हुए, यह डिजिटल पहल समावेशिता सुनिश्चित करती है। इसके अतिरिक्त, यह निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए भी राह खोलता है, जिससे आगे नवाचार और इसके विस्तार को बढ़ावा मिलेगा। हरियाणा के यह मॉडल सांस्कृतिक-आध्यात्मिक तत्वों को शामिल करते हुए लोगों को जोड़ता है। इसके तहत बेहतरीन पहल है ‘राम गुरुकुल गमन’ जो कि भगवान राम के वनवास की कहानी से प्रेरित संगीत-रूपक है। इसका कथानक जीवन की कठिनाइयों पर काबू पाने में लचीलेपन और साहस का एक उदाहरण है, जो संदेश देता है : ‘चुनौतियां आयेंगी ही, लेकिन उनका सामना शक्ति व दृढ़ संकल्प से किया जा सकता है’।
इस नाटक को व्यापक प्रशंसा मिली है। इसे पुणे में राष्ट्रीय युवा महोत्सव जैसे प्रमुख कार्यक्रमों में प्रदर्शित किया गया। स्कूलों और कॉलेजों में ऐसे रूपकों को पेश कर, प्रशासन सुनिश्चित करना चाहता है कि नशा विरोधी संदेश प्रासंगिक और प्रभावशाली बने।
हरियाणा की रणनीति का एक और कदम है, ‘लोटा नमक अभियान’, जो छोटा-मोटा नशा करने वालों और तस्करों के पुनर्वास पर केंद्रित जमीनी पहल है। प्रतिभागी बुजुर्गों की मौजूदगी में सबके सामने शपथ लेकर नशीली दवाओं से तौबा करने का वचन देते हैं। यह सामाजिक जवाबदेही और बदलाव के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। यह कार्यक्रम समाज में पुनः एकीकरण को बढ़ावा देता है और समुदाय में सामूहिक जिम्मेदारी को मजबूत करता है। यह प्रक्रिया, जिसमें बुजुर्ग और समुदाय के प्रभावशाली सदस्य उपस्थित होते हैं, एकजुटता और बुराई छोड़ने का एक शक्तिशाली संदेश देती है। यह उदाहरण है कि स्थानीय समुदाय नशीली दवाओं के खतरे से निपटने में किस प्रकार अहम भूमिका निभा सकते हैं।
हरियाणा का तरीका इस किस्म की चुनौतियों से जूझ रहे अन्य राज्यों को मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा। प्रथम, सांस्कृतिक प्रासंगिकता-जाने-पहचाने सांस्कृतिक तौर-तरीकों में नशा विरोधी संदेशों को शामिल करते हुए उनके प्रसार और असर को बढ़ाना। दूसरा, इंटरेक्टिव समावेश- ‘चक्रव्यूह’ और खेल-खेल में शिक्षा देने जैसे सहभागी तरीके पारंपरिक, भाषण-आधारित अभियानों से बेहतर प्रभावी रहते हैं। तीसरा, ‘लोटा नमक अभियान’ जैसे सामुदायिक भागीदारी उपाय, जोकि सामूहिक जवाबदेही और समर्थन के महत्व को रेखांकित करता है। और चौथा है तकनीकी एकीकरण– डिजिटल मॉडल्स ऐसे प्लेटफ़ॉर्म को स्केलेबल और अभिनव दृष्टिकोण बनाने में मददगार है, जो तकनीक-पसंद युवा पीढ़ी को आकर्षित करता है। इन अवयवों को मिलाकर, हरियाणा ने नशाखोरी की मांग और आपूर्ति, दोनों पहलुओं, को ध्यान में रखते हुए एक टिकाऊ मॉडल तैयार किया है।
नशाखोरी के खिलाफ लड़ाई लंबी और कठिन है, लेकिन हरियाणा का अभिनव दृष्टिकोण उम्मीद की किरण प्रदान करता है। सशक्तीकरण, सांस्कृतिक प्रासंगिकता और सामुदायिक भागीदारी को प्राथमिकता देकर, राज्य सरकार ने परिभाषित किया है कि नशा विरोधी प्रचार कैसे चलाना चाहिए। इसकी सफलता सार्थक बदलाव लाने के लिए विचारशील, जन-केंद्रित रणनीतियों की क्षमता को रेखांकित करती है।
अन्य राज्य हरियाणा के इस मॉडल से प्रेरणा लेकर, अपनी रणनीतियां अलहदा परिवेश के संदर्भों में ढाल सकते हैं। वे व्यक्तियों और समुदायों को स्वस्थ विकल्प चुनने को सशक्त कर सकते हैं, ताकि नशा मुक्त समाज को बढ़ावा मिले। आगे की राह चुनौतीपूर्ण हो सकती है, लेकिन हरियाणा का उदाहरण दर्शाता है कि प्रगति संभव है।

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लेखक हरियाणा पुलिस में महानिदेशक और मादक पदार्थ नियंत्रण विभाग के मुखिया हैं।

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