स्वस्थ-सुखी समाज की आस
डॉ. सुदर्शन गासो
डॉ. रमा कांता एक बहु-आयामी लेखिका हैं। इनकी कविता, कहानी, लघुकथा, नाटक, निबंध और समीक्षा आदि विधाओं में पैंतीस पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। हरियाणवी में भी रचनाएं लिखी हैं। संग्रह की 101 कविताओं को रचनाकार बचपन की यादों से शुरू करती हैं और पारिवारिक रिश्तों की मिठास तक लेकर जाती हैं। लेखिका का जीवन की नई खोजों पर अटूट विश्वास है और वह कहती हैं कि चांद की खोज भी आने वाले समय में धरती को बहुत कुछ देगी। लेखिका पर्यावरण के बिगड़ते हुए संतुलन पर भी चिंता व्यक्त करती हैं।
उन्होंने आज की नारी के स्वरूप को भी पेश किया है, जिसमें नारी दुर्गा बनकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष भी करती हुई दिखती है। अब वह बेजुबान वस्तु नहीं रही। आज वह समाज से सवाल पूछती है:
‘मैं नारी/ मां रूपा, बहन, बेटी, पत्नी कर्तव्य निभाती/ आंच आती अस्तित्व पर, तोड़ देती व्रजनाएं/ करती स्वीकार चुनौतियां।’
‘दीपक’ कविता बताती है कि जो लोग दुनिया का अंधेरा और अंधकार दूर करते हैं वे खुद अनेक मुसीबतों में घिरे रहते हैं :-
‘मैं नन्हा दीपक/ घी, बाती संग जलता/ हरता तिमर निरन्तर/ स्वयं अंधकारों में रहता/ पथ करता आलोकित।’
लेखिका एक ऐसे समाज की खोज में हैं, जिसमें सभी के लिए दुख-सुख साझे हों। सभी प्राणियों में आपसी प्रेम और सौहार्द हो।
जीवन में ‘जैसा बीजोगे, वैसा ही काटोगे’ की उक्ति को सार्थक ढंग से पेश किया गया है और स्थापित किया गया है कि हमें अपने जीवन में स्नेह और खुशियां ही बीजनी चाहिए, तभी समाज एक स्वस्थ समाज बन सकता है।
‘उत्तम फसल’ कविता में कवयित्री ने आज के दौर में लालच, स्वार्थ, संकीर्णता जैसी प्रवृत्तियों से समाज की गति को रोकने वाली बताया है। महानगर के जीवन के बारे में लेखिका ने सही विश्लेषण किया है। महानगरों की जिंदगी केवल अपने तक सिमटकर रह गई है। ऐसे जीवन में खुशियां हमसे दूर भाग जाती हैं, जबकि खुशियां ही जीवन का आधार हैं। लेखिका जीवन में जीत-हार की परवाह किए बिना चुनौतियों से लड़ने और मन में विश्वास भरकर आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करती हैं। इन कविताओं में लेखिका का संघर्ष भी दिखाई देता है।
पुस्तक : विप्लव गान लेखिका : डाॅ. रमा कांता प्रकाशक : निर्मला प्रकाशन, चरखी दादरी हरियाणा पृष्ठ : 119 मूल्य : 200.