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स्वतः अकेले

04:00 AM May 04, 2025 IST

राजेंद्र कनौजिया

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तो क्या हुआ जो
तुम नहीं मेरे साथ में,
तुम्हारी गुफ़्तगू,
वो खिलखिलाहट
और हंसी के पल—
हैं आज भी मेरी
याद में सहमे से।

संताप से गलबहियां
करते, सहज
और असहज को
संभाल रहे हैं।

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प्रीत अभी कुछ तो
शेष है—
चुक गई
गुलाब की महक
की तरह।

इजाज़त हो तो
कोई गीत गा लूं,
अवसाद में
उम्मीद वाला।

सांवले चेहरे पर
जैसे चांद टांक दूं—
कत्थई वाला।

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