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सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ गठित, 12 को सुनवाई

04:55 AM Dec 08, 2024 IST
सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ गठित  12 को सुनवाई
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नयी दिल्ली, 7 दिसंबर (एजेंसी)
उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेष पीठ का गठन किया है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ 12 दिसंबर को अपराह्न 3:30 बजे इस मामले पर सुनवाई कर सकती है।
शीर्ष अदालत के समक्ष अश्विनी उपाध्याय, पूर्व राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका सहित कई याचिकाएं हैं, जिनमें निवेदन किया गया है कि उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 2, 3 और 4 को रद्द कर दिया जाए। याचिकाओं में कहा गया है कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के उपासना स्थल को पुनः प्राप्त करने के लिए न्यायिक उपचार के अधिकार को छीनते हैं।
इस मामले की सुनवाई वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद से संबंधित वादों सहित सहित विभिन्न अदालतों में दायर मुकदमों की पृष्ठभूमि में की जाएगी। याचिकाओं में दावा किया गया है कि इन मस्जिदों का निर्माण प्राचीन मंदिरों को नष्ट करने के बाद किया गया था और हिंदुओं को वहां पूजा-अर्चना करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी का कहना है कि शीर्ष अदालत कुछ प्रावधानों को ‘पढ़े’, ताकि वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा स्थित शाही ईदगाह मस्जिद पर हिंदू दावा कर सकें। वहीं, उपाध्याय का कहना है कि पूरा कानून असंवैधानिक है और इसे पढ़ने का कोई सवाल ही नहीं उठता। दूसरी ओर, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मालिकाना हक मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए तर्क दिया गया था कि अब कानून को दरकिनार नहीं किया जा सकता।
शीर्ष अदालत ने 12 मार्च, 2022 को कानून के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली उपाध्याय की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था। संबंधित कानून 15 अगस्त 1947 को मौजूद धार्मिक स्थलों पर पुन: दावा करने के लिए वाद दायर करने तथा उनके चरित्र में बदलाव की मांग पर रोक लगाता है। कानून में अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से संबंधित विवाद को अपवाद के रूप में माना गया था।

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पूर्व जस्टिस नरीमन ने अयोध्या फैसले कोबताया न्याय का उपहास

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आरएफ नरीमन ने रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मामले में शीर्ष अदालत के 2019 के निर्णय की आलोचना करते हुए इसे न्याय का उपहास बताया। ‘पंथनिरपेक्षता और भारतीय संविधान’ विषय पर प्रथम न्यायमूर्ति एएम अहमदी स्मारक व्याख्यान में जस्टिस नरीमन ने हालांकि कहा कि इस फैसले में एक ‘सकारात्मक पहलू’ भी है, क्योंकि इसमें उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को बरकरार रखा गया है। उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि न्याय का सबसे बड़ा उपहास यह है कि इन निर्णयों में पंथनिरपेक्षता को उचित स्थान नहीं दिया गया।’

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