सुप्रीम कोर्ट का अभूतपूर्व मत : राष्ट्रपति तय समय सीमा में मंजूर करें विधेयक
सत्य प्रकाश/ट्रिन्यू
नयी दिल्ली, 12 अप्रैल
सुप्रीम कोर्ट ने अभूतपूर्व मत व्यक्त करते हुए कहा है कि राष्ट्रपति को तय समय सीमा में विधेयकों को मंजूर करना चाहिए। पीठ ने यह विचार संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राज्यपालों द्वारा भेजे गए विधेयकों के संबंध में व्यक्त किए।
जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचार के लिए रखे गए विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने की अवधि के भीतर निर्णय लेना आवश्यक है। इस अवधि से परे किसी भी देरी के मामले में, उचित कारणों को दर्ज करना होगा और संबंधित राज्य को सूचित करना होगा।’ पीठ में जस्टिस आर. महादेवन भी शामिल हैं।
पीठ ने कहा, ‘जब अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के समक्ष मंजूरी के लिए कोई विधेयक प्रस्तुत किया जाता है और वह निर्णय लेने में निष्िक्रयता प्रदर्शित करते हैं और उनकी यह निष्िक्रयता समय-सीमा (तीन महीने की) से अधिक हो जाती है, तो राज्य सरकार के लिए इस न्यायालय से परमादेश रिट मांगने का विकल्प खुला होगा।’ पीठ के अनुसार इस अवधि से परे किसी भी देरी के मामले में, उचित कारणों को दर्ज करना होगा और संबंधित राज्य को सूचित
करना होगा।
पीठ ने यह भी कहा कि मामले में राज्यों को सहयोगात्मक होना चाहिए और यदि प्रश्न उठते हैं तो उनका उत्तर देकर सहयोग करना चाहिए और केंद्र सरकार द्वारा दिए गए सुझावों पर शीघ्रता से विचार करना चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों द्वारा सहमति को रोकना संवैधानिक लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के तहत अस्वीकार्य होगा।
यह पहली बार है कि राष्ट्रपति के लिए इस तरह की समय-सीमा निर्धारित की गई है। यह मत इस तथ्य के मद्देनजर महत्वपूर्ण है कि संविधान राष्ट्रपति के लिए दया याचिकाओं और न्यायिक नियुक्तियों सहित कई मुद्दों पर अपनी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए ऐसी कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं करता है।
शीर्ष अदालत की राय लें
पीठ ने कहा कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 201 के तहत राज्यपाल द्वारा विचार के लिए भेजे गए विधेयकों पर संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट की राय लेनी चाहिए।