साधना की दिशा
एक बार गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को एक काम सौंपा। एक बगीचे में कुछ पौधों को भली प्रकार से सींचना था। सबको एक एक घड़ा दे दिया गया। और बताया गया कि अमुक झील से जल भरकर यहां पौधों को सींचना है। सब यह कार्य करने को तैयार हो गये। बस एक शिष्य एकदम अनमना-सा था। बुद्ध ने उसे अपने पास बुलाया और शंका का कारण पूछ लिया। वो कहने लगा कि, ‘गुरुवर, यह कैसा काम है। मैं तो साधना करने आपके पास आया और यह काम मुझे साधक बनाने में किस प्रकार सहायक है?’ बुद्ध यह सवाल सुनकर धीरे से मुस्कुराने लगे और उसकी शंका का समाधान किया कि, वत्स!, तुम जानते हो न, कि नदी आखिरकार समंदर में मिल जाती है। लेकिन उससे पहले वो अपनी एक पहचान बना लेती है। तुम इस जल सेवा के दौरान प्रकृति सेवा करते हुए समूह को कुछ संवेदना दोगे और कुछ हासिल भी करोगे। याद रखो, हमारा हर काम हवा की तरह बहता है और अपने साथ एक गंध ले जाता है।’अब वह शिष्य सही समझ गया था। इस बोध के साथ वो खुशी से जल लाया और पौधों को सींचने लगा।
प्रस्तुति : पूनम पांडे