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समता-ममता और मानवता का संदेश

04:00 AM Dec 23, 2024 IST

प्रभु यीशु मसीह के जन्म पर मनाए जाने वाला पर्व क्रिसमिस, प्रेम और भाईचारे का संदेश देता है। यह पर्व न केवल धार्मिक रीति-रिवाजों से जुड़ा है, बल्कि यह हमें मानवता, दया और आध्यात्मिकता की दिशा में मार्गदर्शन भी करता है। इसके माध्यम से हम अपने जीवन में प्रेम, सद्भाव और आत्मिक शांति की खोज करते हैं।

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राजेंद्र कुमार शर्मा
भारत की सबसे बड़ी सुंदरता यही है कि इस गुलदस्ते में भिन्न-भिन्न धर्मों को फूलों की तरह बड़ी सुंदरता से संजोया गया है। विभिन्न धर्मों और समुदायों के अलग अलग पर्वों में सभी लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। दिवाली हो या फिर गुरुपर्व और या फिर क्रिसमस। प्रत्येक पर्व भाईचारे और प्रेम का ही संदेश देता है। सभी पर्व जीवन में एक नई ऊर्जा का संचार करने आते हैं और नीरस होती जिंदगी को जीवंत बना देते है। पर्वों के प्रति उल्लास, खुशी, दूसरों के साथ मिलना-जुलना, उपहारों का आदान-प्रदान करना लगभग सभी धर्मों में एक समानता को प्रदर्शित करता है।
विशिष्ट परंपराएं
क्रिसमस ईसाई समुदाय द्वारा मनाए जाना वाला एक विशेष पर्व है। क्रिसमस प्रभु ईसा मसीह के जन्म को हर्षोल्लास से मनाने के लिए, प्रभु यीशु को स्मरण करने के लिए प्रत्येक वर्ष 25 दिसंबर को पूरे विश्व में मनाया जाता है। ईसाई धार्मिक परंपराओं और प्रथाओं के साथ क्रिसमस मनाते हैं। भारत और दुनिया भर में क्रिसमस समारोह के लिए लोकप्रिय रीति-रिवाजों में चर्च में शामिल होना, घरों को सजाना, क्रिसमस-ट्री लगाना, दोस्तों और परिवार के साथ मिलना जुलना, उपहारों का आदान-प्रदान करना और सांता क्लॉज का इंतजार करना आिद इस पर्व के परंपराओं में सम्मिलित हैं।
मानवता के लिए संदेश
संतों ने परमात्मा को निराकार माना है, उन्होंने परमात्मा को हर शरीर में विद्यमान होने का संदेश दिया है। जरूरत है हमें परमात्मा के बताए हुए मार्ग पर चलकर अपने अंतर को शुद्ध कर, उस परम दिव्य शक्ति के दर्शन करना है। वो ही आत्मा का अंतिम गंतव्य है। क्रिसमस उसी मार्ग पर चलने का संदेश देने वाला पर्व है। हमें क्रिसमस में समाहित अध्यात्म को समझना होगा। प्रभु यीशु के उस संदेश को जीवन में उतारने का प्रयास करना होगा, जिसमें धर्म नहीं, मनुष्यता, दयालुता विशेष है।
यीशु का शाब्दिक अर्थ
प्रभु यीशु या जीसस यूनानी शब्द जेशुआ या जोशुआ जिसका शाब्दिक अर्थ सुरक्षा, मुक्तिदाता, उद्धारकर्ता या फिर समृद्ध करने वाला है। मरियम के पुत्र और वर्तमान ईसाई मान्यता के अनुसार, मानव जाति के उद्धारकर्ता, जो लोगों की उनके पापों से रक्षा करेगा।
यीशु मनुष्य के बारे में परमेश्वर के विचार को व्यक्त करते हैं। मान्यता है कि यीशु मसीह मनुष्य रूप में प्रभु अवतार ही था और उन्होंने उन सभी जीवन पहलुओं को जिया जिनसे एक आम आदमी गुजरता है। हम पाएंगे कि अवतार मनुष्य रूप में रहते हुए एक साधारण मनुष्य का जीवन जीते हैं परंतु फिर भी पाप रहित होते हैं, अर्थात‍् बुरे विचारों के प्रभुत्व में नहीं आते हैं।
अहम‍् का त्याग
हम नए मनुष्यत्व को धारण कर सकते हैं अर्थात‍्, अपने अंदर दैवीय गुणों को जन्म दे सकते हैं या परमात्मा से आत्म साक्षात्कार कर सकते हैं। सर्वप्रथम ‘मैं’ अर्थात‍् अहम का त्याग करना होगा। फिर दृढ़ विश्वास के साथ अपने अस्तित्व की सच्चाई को स्वीकारना होगा। तदोपरांत विचार, कर्म में सत्य को जीना होगा। मसीह वह मनुष्य है जिसे ईश्वर ने भेजा है, वह पूर्ण-विचार वाला मनुष्य है, जिसे पूर्ण अभिव्यक्ति और प्रकटीकरण में लाया गया है ।
जीवन क्षणभंगुर, दिव्यता स्थायी
यीशु ने प्रदर्शित किया कि ईश्वर से आत्म साक्षात्कार मनुष्य के लिए भी संभव है। उसके लिए हमारे भीतर भी वही मन होना चाहिए जो परमपिता परमात्मा में होता है। जिसका अर्थ है कि सभी लोग वैसा ही प्रदर्शन कर सकते हैं जैसा कि ईश्वर करता है। इस उपलब्धि को प्राप्त करने के लिए विचारों की शुद्धता और ध्यान मनन की आवश्यकता होती है। प्रभु यीशु में परमेश्वर मन था, संतों में परम तत्व विद्यमान रहता है। हमें भी परिपूर्ण होना चाहिए जैसे कि स्वर्ग में परम पिता परिपूर्ण है। मनुष्यता को दूर कर, दिव्यता को स्थापित करना होगा। मनुष्यता क्षणभंगुर और त्रुटिपूर्ण हो सकती है, परंतु दिव्यता सदैव स्थायी और सभी त्रुटियों से रहित होती है।
आध्यात्मिक संदेश
प्रभु यीशु का शहरों और गांवों में घूमना, शिक्षा उपदेश देना, रोगियों को स्वास्थ्य प्रदान करना, एक उपदेशक द्वारा मानसिक और शारीरिक विचारों में सामंजस्य स्थापित कर, अपनी सार्वभौमिक क्षमता का परिचय देना है। प्रभु बाहरी दिखावे के बजाय, आध्यात्मिक उद्देश्य की खोज में दिव्य मन को प्राथमिकता देता हैं। जब हम यीशु या परमात्मा का अनुसरण करते हैं तो हम शरीर और इंद्रियों के प्रलोभनों से ऊपर उठ जाते हैं।
आध्यात्मिकता की खोज
कई लोगों ने प्रभु को मानसिक मृगतृष्णा में ही देखा है। लेकिन हम ईश्वर को तब तक नहीं देख पाएंगे जब तक हम उनके बताए सद‍्मार्ग पर नहीं चलते। यदि मन ने आध्यात्मिक विचारों की क्षमता और शक्ति को समझ और पहचान लिया है तो नि:संदेह यीशु या परमात्मा का हमारे अंदर प्रकट होना भी निश्चित है।
25 दिसंबर के ‘बड़ा दिन’ अर्थात‍् प्रभु यीशु के जन्म पर्व को इस उद्देश्य के साथ मनाना तर्कसंगत होगा कि बाहरी दिखावे से दूर, क्रिसमस के माध्यम से सत्य, दिव्य आध्यात्मिकता की खोज की जा सके।

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