सभ्यता, संस्कृति और इतिहास की जीवंत धारा
सिंधु नदी इतिहास, संस्कृति और सभ्यता का एक प्रतीक है, जिसके किनारे सिंधु घाटी सभ्यता जैसी प्राचीन सभ्यताएं विकसित हुई थीं। यह नदी तिब्बत के कैलास पर्वत से निकलकर पाकिस्तान और भारत के रास्ते अरब सागर में समाहित होती है। सिंधु नदी न केवल भौगोलिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहलुओं से भी इसका विशेष महत्व है।
वीना गौतम
नदियां जीवनदायिनी होती हैं। नदी के किनारे ही इंसान जन्मा है और नदियों के किनारे ही दुनिया की सभी सभ्यताएं और संस्कृतियां फली-फूली हैं। धरती में नदियों के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन जलवायु परिवर्तन, बढ़ती आबादी और नदियों के प्रति आम लोगों की उदासीनता के चलते धरती में जल संकट तो गहराया ही है, अब नदियों के अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इसलिए नदियों का न केवल संरक्षण जरूरी है बल्कि हमें अपनी नई पीढ़ियों को इनके प्रति संवेदनशील बनाना भी जरूरी है ताकि इनका अस्तित्व बचा रहे और धरती में इंसानी सभ्यता और संस्कृति भी हमेशा की तरह फलती-फूलती रहे।
हिमालय के तिब्बती पठार से निकलने वाली सिंधु वह महत्वपूर्ण नदी है, जिसके किनारे ईसा के तीन हजार साल पहले समूची भारतीय सभ्यता (सिंधु नदी घाटी सभ्यता) जन्मी है। 3180 किलोमीटर लंबी, कुछ नए विवरणों के मुताबिक़ 3610 किलोमीटर, यह नदी दुनिया की सातवीं सबसे लंबी नदी है और इसका महत्व वैसा ही है, जैसे नील और टिगरिस-यूफ्रैटिस नदियों का है। सिंधु नदी भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे प्राचीन नदियों में से एक है। यह चीन, भारत और पाकिस्तान तीन देशों में बहती है तथा अंत में पाकिस्तान स्थित सिंधु प्रांत में अरब सागर में सम्माहित होती है। सिंधु एक विशाल नदी प्रणाली बनाती है, जिसमें झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज उसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं। यह तिब्बत में कैलास पर्वत के निकट सिन-का-बाब जलधारा से निकलती है। इसका जलग्रहण क्षेत्र 11 लाख वर्ग किलोमीटर तक फैला, जिसमें हिमालय क्षेत्र से लेकर थार का मरुस्थल तक आते हैं। पंजाब और हरियाणा की शानदार कृषि को जीवनदान देने वाली सिंधु नदी के किनारे ही हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे नगर विकसित हुए, जो सिंधु नदी घाटी सभ्यता के केंद्र थे।
सिंधु नदी घाटी सभ्यता दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। ऋग्वेद में 42 नदियों का उल्लेख है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण सिंधु नदी है, जिसका वर्णन कई बार आया है। यह नदी सप्त सैंधव क्षेत्र (सप्त सैंधव प्रदेश अथवा ‘सप्त सिंधु’) आर्य लोगों का प्रारंभिक निवास स्थल माना जाता है।
सप्त सैंधव भारतवर्ष का उत्तर पश्चिमी भाग था। इसे आर्यों का आदिदेश कहा गया है। धार्मिक दृष्टि से यह नदी हिंदू, जैन और बौद्ध धर्मों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। भारत को भारत नाम इसी सिंधु नदी के कारण मिला है। सिंधु नदी में पानी का स्रोत ग्लेशियर, बारिश और बर्फ का पिघलना है। माना जाता है कि भारतीय समाज की एक संगठित नींव सिंधु नदी के किनारे ही पड़ी। सिंधु नदी भारतीय मानसून को भी सार्वधिक प्रभावित करने वाली नदी है। यह सबसे लंबी हिमालयी नदी है, जहां अधिकांशतः हिमालयी नदियां पूर्व की ओर बहती हैं, वहीं यह उत्तर पश्चिम दिशा में बहती है। यह भारत तथा पाकिस्तान के बीच विभाजित भी है और कुछ अर्थों में अब विवादित भी, जबकि दूसरी नदियों के साथ ऐसा नहीं है। सिंधु हिमालय के ग्लेशियरों से पोषित ऐसी नदी है, जो पाकिस्तान के लिए 90 फीसदी कृषि जल उपलब्ध कराती है। सिंधु नदी दुर्लभ प्रजाति की डॉल्फिन का घर है। साथ ही इसके डेल्टा में मैंग्रोव वन पाये जाते हैं।
सिंधु नदी का सबसे बड़ा संकट हाल के दशकों में अत्यधिक जल दोहन के साथ-साथ भारी जल प्रदूषण है। जलवायु परिवर्तन के कारण इसके ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना भी इसका एक बड़ा संकट है। भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में सम्पन्न हुई सिंधु जल संधि एक महत्वपूर्ण नदी जल समझौता है, जिसके चलते सिंधु की तीन सहायक नदियां रावी, ब्यास और सतलुज भारत के नियंत्रण में हैं, जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब पाकिस्तान के लिए आरक्षित हैं। हालांकि, इन दिनों सिंधु नदी सीमा विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच बड़ा मसला है। लेकिन सिंधु जल संधि को दुनिया के सबसे सफल जल साझेदारी समझौतों में से एक माना जाता है। भारत में सिर्फ सिंधु का जल कृषि के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि बगलीहार और किशनगंगा जैसी जल परियोजनाओं का भी यह केंद्र है। ऐतिहासिक रूप से सिंधु नदी का उपयोग परिवहन और व्यापार के लिए भी किया जाता रहा है।
सिंधु नदी का अपना जितना सांस्कृतिक महत्व है, उससे कम आर्थिक महत्व नहीं है। भारत में मनाया जाने वाला ‘सिंधु महोत्सव’ विशुद्ध एक सांस्कृतिक महोत्सव है, जो हर साल मनाया जाता है। सिंधु नदी भारतीय उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक तो है ही, आज भी इस नदी के किनारे कई महत्वपूर्ण नगर बसे हुए हैं, जहां महत्वपूर्ण आधुनिक आर्थिक गतिविधियां सम्पन्न होती हैं। प्राचीनकाल के जहां मोहनजोदड़ों और हड़प्पा जैसे नगर इसी सिंधु नदी के किनारे स्थित रहे हैं। वहीं आज भारत में लेह और कारगिल जैसे शहर इसके किनारे स्थित हैं। पाकिस्तान में अटक, सक्खर, हैदराबाद और करांची जैसा विश्वविख्यात शहर सिंधु नदी के किनारे ही स्थित है। अगर इसकी सहायक नदियों के किनारे बसे शहरों को देखें तो रावी नदी के किनारे जहां अमृतसर और लाहौर स्थित हैं, वहीं ब्यास नदी के किनारे जालंधर और लुधियाना जैसे औद्योगिक शहर स्थित है, जबकि सतलुज के किनारे चंडीगढ़ जैसा मॉडर्न शहर स्थित है। सिंधु के किनारे कभी कोट्दीजी और चुहुंदड़ो जैसे शहर भी स्थित थे जो सिंधु घाटी सभ्यता के दिनों में व्यापार और कला के केंद्र थे। अब ये पूरी तरह से नष्ट हो चुके हैं। इस तरह देखें तो सिंधु नदी भारत की उत्तर पश्चिम में बहने वाली सबसे महत्वपूर्ण नदी है। इ.रि.सें.