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सड़कों पर खो जाता है निर्माण मजदूरों के बच्चों का भविष्य

05:06 AM Jan 10, 2025 IST
कुरुक्षेत्र में एक पाॅश काॅलोनी के निर्माणाधीन घर के पास ईंटों के पास खेलते मजदूरों के बच्चे।  -हप्र

विनोद जिंदल/हप्र
कुरुक्षेत्र, 9 जनवरी
क्या इन नौनिहालों का भी कोई रखवाला है और सरकार ने क्या इनके लिए भी कोई योजना बनाई हुई है ताकि इनका ठीक ढंग से इनका भरण-पोषण हो सके। ये बेचारे तिरपालों और सीमेंट के खाली कट्टों से खुले आसमान के नीचे बनी झुग्गी-झोपड़ियों में अपने अभिभावकों के साथ रह रहे हैं। इस कड़ाके की ठंड में भी इन्हें उन्हीं झुग्गी-झोपडियों में गुजारा करना पड़ता है। अपने भविष्य से अनभिज्ञ ये बच्चे प्रातः जल्दी अपने माता पिता के साथ ही उठ जाते हैं। माता-पिता तो अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए आस-पास के निर्माणाधीन भवनों में मेहनत-मजदूरी करने के लिए चले जाते हैं और बच्चे भी साथ ही झुग्गी-झोपडियों से बाहर निकलकर खेल-कटारियों में लग जाते हैं। इस कड़ाके की ठंड और पड़ रहा कोहरे में न उन्हें ये पता होता है कि वे बाहर खेलने से बीमार भी हो सकते हैं और न ही उन्हें ये पता कि वे कहां और क्या खेल रहे हैं, बस जो मन में आता है वह करते रहते हैं। ठंडे रेत, मिट्टी, बजरी, गटका, ईंटे तथा अन्य निर्माण सामग्री इनके लिए मुख्य रूप से खेल के साधन हैं। ये कभी रेत में नंगे पांव और थोड़े कपड़ों में घरौंदे बनाते हुए नजर आते हैं तो कभी वहीं पड़े ईंटों और रोडों से कुछ-कुछ बनाकर खेलते रहते हैं। इन्हें शायद पढ़ाई-लिखाई के बारे में तो कोई ज्ञान ही नहीं लगता। कुछ बच्चे कभी-कभार स्कूल जाते हैं तो कुछ बच्चे ऐसे ही पूरा दिन अपना व्यतीत करते रहते हैं। इनमें से कुछ अपने माता-पिता द्वारा जलाए गए अलाव का सहारा भी लेते हैं। यह भी देखने मंे आया है कि ये केवल अपने आपको ही नहीं संभालते बल्कि अपने से छोटे भाई-बहनों को भी संभालने का काम करते हैं। उन्हें गोद में उठाए या फिर उनकी उंगली पकड़कर घूमते रहते हैं। माता-पिता मेहनत-मजदूरी में लगे रहते हैं। इन झुग्गी-झोपड़ियों में जो लोग रोजी-रोटी कमाने के लिए रह रहे हैं वे लगभग सभी दूसरे राज्यों से यहां आकर काम करते हैं। इतना अवश्य है कि कभी-कभार कुछ सामाजिक संस्थाएं या फिर व्यक्तिगत रूप से कुछ लोग उन्हें खाने-पीने का सामान दे जाते हैं। कुछ लोग दान पुण्य समझकर कुछ पैसे भी दे जाते हैं। बच्चें भी तुरन्त आस-पास की दुकानों से कुछ खाने की सामग्री लेकर काम चलाते हैं। ऐसे बच्चें केवल एक ही स्थान पर नहीं हैं, बल्कि जगह-जगह जहां कहीं भी निर्माण के काम हो रहे हैं वहां रह रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार इस प्रकार के हजारों बच्चे कुरुक्षेत्र के आसपास रहते हैं। यह तो सही जनगणना करने पर ही पता चल सकता है कि कुरुक्षेत्र तथा इसके आस-पास दो-चार किलामीटर में कितने बच्चे रहते हैं लेकिन जहां कहीं भी निर्माण के काम चल रहे हैं वहां ये रह रहे हैं।
कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या
एक काॅलोनी में काम कर रही मध्य प्रदेश निवासी पार्वती ने बताया कि वह अपने बच्चों को इसलिए नहीं पढ़ा सकती, क्योंकि जब वे अपने काम पर जाते हैं तो बड़े बच्चे छोटों को संभालते हैं। उसका कहना है कि यदि कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या।
सरकार सर्वे करवाकर दस्तावेज तैयार करे
सामाजिक संस्था सेवा भारती के जिला प्रधान कृष्ण चंद रंगा ने कहा कि इस मामले में जागरूकता की आवश्यकता है। जहां कहीं अधिक बच्चे होते हैं वहां सेवा भारती अपना केन्द्र खोलने के लिए तैयार है। सरकार को इन सबका सर्वे करवाना चाहिए। इनके दस्तावेज पूरे करवाने चाहिए। शौच के लिए मोबाइल वैन चलानी चाहिए। स्वास्थ्य जांच, पढ़ाई का प्रबंध, ठंड और गरमी से बचने के उपाय तथा अन्य सुविधाएं दी जानी चाहिए ताकि ये बच्चे भी अन्य बच्चों की तरह अपने भविष्य को बना सके और ठीक ढंग से अपना जीवन-बसर कर सके, नहीं तो ये बच्चे अपने अभिभावकों की तरह ही छोटी आयु में मेहनत मजदूरी का काम करने लगेंगे।
जिले में 1075 केंद्र खोले सरकार ने
जिला बाल कल्याण अधिकारी नीतू रानी ने बताया कि सरकार ने सलम एरिया में रहने वालों के लिए बहुत सारी योजनाएं बनाई हुई हैं। वहां के बच्चों को समय-समय पर सरकारी योजना के अनुसार लाभ भी दिया जाता है। कुरुक्षेत्र जिले के गांवों और शहरों में लगभग 1075 केन्द्र खोले हुए हैं। वहां सरकारी योजना के अनुसार सुविधाएं पहुंचाई जाती हैं। पढ़ाई के लिए भी योजनानुसार काम किया जाता है।

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