संवेदनशीलता का मानदेय
विभाजन से पहले की घटना है। उर्दू के प्रसिद्ध शायर और अपने जमाने के क्रांतिकारी कवि तथा फिल्मी गीतकार साहिर लुधियानवी उन दिनों लाहौर से ‘साकी’ नामक उर्दू मासिक निकाल रहे थे। साहिर साहब बड़े खुशदिल और विशाल हृदय के व्यक्ति थे। वे सीमित साधनों तथा घाटे में रहने के बावजूद पत्रिका में लिखने वाले लेखकों को रचना के एवज में मुनासिब पारिश्रमिक अवश्य दिया करते। एक बार यथासमय वित्त का बंदोबस्त न होने के कारण लेखकों को पैसे समय पर न भेजे जा सके। शमा लाहोरी ने साहिर के ठिकाने पर आकर पत्रिका में प्रकाशित अपनी दो ग़ज़लों का पारिश्रमिक मांगा। पूस की भयंकर सर्दी में बेचारा दीन शायर थर-थर कांप रहा था। उसे पैसों की सख्त जरूरत थी। साहिर ने शायर को प्रेम से बैठाया और चाय पिलायी। फिर खड़े होकर खूंटी पर टंगा अपना नया कोट उतारा और उसे शमा लाहोरी को सौंपते हुए कहा, ‘इस बार हमने शायरों को ‘कैश’ की बजाय ‘काइंड’ से नवाजने की पहल की है।’ यह उदारता देखकर शायर की आंखों में पानी भर आया।
प्रस्तुति : राजकिशन नैन