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संविधान की प्रस्तावना बदल नहीं सकती, लेकिन आपातकाल में जोड़े शब्द नासूर : उपराष्ट्रपति

05:00 AM Jun 29, 2025 IST
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़
नयी दिल्ली, 28 जून (एजेंसी)

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि संविधान की प्रस्तावना ‘परिवर्तनशील नहीं' है, लेकिन भारत में आपातकाल के दौरान इसे बदल दिया गया, जो संविधान निर्माताओं की ‘बुद्धिमत्ता के साथ विश्वासघात का संकेत है।' उन्होंने कहा कि 1976 में आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में जो शब्द जोड़े गए, वे ‘नासूर' थे और उथल-पुथल पैदा कर सकते हैं। उपराष्ट्रपति ने यहां एक पुस्तक विमोचन समारोह में कहा, ‘यह हजारों वर्षों से इस देश की सभ्यतागत संपदा और ज्ञान को कमतर आंकने के अलावा और कुछ नहीं है। यह सनातन की भावना का अपमान है।'

धनखड़ ने प्रस्तावना को एक ‘बीज' बताया जिस पर संविधान विकसित होता है। उन्होंने कहा कि भारत के अलावा किसी दूसरे देश में संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं किया गया। धनखड़ ने कहा, ‘इस प्रस्तावना में 1976 के 42वें संविधान (संशोधन) अधिनियम के जरिये बदलाव किया गया था। संशोधन के माध्यम से इसमें ‘समाजवादी', ‘धर्मनिरपेक्ष' और ‘अखंडता' शब्द जोड़े गए थे।' उन्होंने कहा कि यह न्याय का उपहास है कि जिस चीज को बदला नहीं जा सकता, उसे आसान ढंग से, हास्यास्पद तरीके से और बिना किसी औचित्य के बदल दिया गया और वह भी आपातकाल के दौरान जब कई विपक्षी नेता जेल में थे। धनखड़ ने कहा, ‘और इस प्रक्रिया में, यदि आप गहराई से सोचें, तो पाएंगे कि हम अस्तित्वगत चुनौतियों को पंख दे रहे हैं। हमें इस पर विचार करना चाहिए।'

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उपराष्ट्रपति ने कहा कि बीआर अंबेडकर ने संविधान पर कड़ी मेहनत की थी और उन्होंने ‘निश्चित रूप से इस पर ध्यान केंद्रित किया होगा। धनखड़ ने यह टिप्पणी ऐसे समय में की, जब आरएसएस ने बृहस्पतिवार को संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी' और ‘धर्मनिरपेक्ष' शब्दों की समीक्षा करने का आह्वान किया था।

 

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