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संघर्ष से उपजी चुनौतियों के बीच व्यापार घाटे की चिंता

04:00 AM Jun 19, 2025 IST
Chennai: A container ship being unloaded at the Chennai Port Trust, in Chennai, Sunday, Feb. 25, 2024. (PTI Photo/R Senthilkumar)(PTI02_25_2024_000262A)

ईरान-इस्राइल युद्ध और वैश्विक भू-राजनीतिक संकटों के चलते कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आई है, जिससे भारत का आयात बिल और व्यापार घाटा बढ़ने की आशंका है। चीन पर निर्भरता घटाने, सेवा निर्यात बढ़ाने और नए व्यापार समझौतों से भारत इस चुनौती का समाधान खोज सकता है।

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डॉ. जयंतीलाल भंडारी

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इस्राइल और ईरान के बीच युद्ध से जहां दुनिया में तेल के दाम में पिछले मई माह की तुलना में तेजी है, वहीं इससे भारत के समक्ष व्यापार घाटे की चुनौती बढ़ गई है। साथ ही इससे रुपये पर दबाव पड़ने की भी आशंका है। चूंकि भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का करीब 85 प्रतिशत आयात करता है, ऐसे में इस युद्ध के लंबा खिंचने और रूस-यूक्रेन संघर्ष के साथ-साथ लाल सागर संकट के कारण वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं से कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि भारत के आयात बिल को बढ़ाते हुए व्यापार घाटे को और बढ़ा सकती है।
गौरतलब है कि वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान भारत से कुल माल और सेवाओं का निर्यात 824 अरब डॉलर रहा है। जबकि भारत का कुल आयात 918 अरब डॉलर रहा। ऐसे में पिछले वर्ष व्यापार घाटा करीब 94 अरब डॉलर रहा है। इसके पूर्ववर्ती वर्ष 2023-24 में भारत का व्यापार घाटा करीब 78 अरब डॉलर रहा था। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के साथ वैश्विक व्यापार में कमी आने की आशंका से भारत का व्यापार घाटा इस वर्ष 2025-26 में और बढ़ सकता है।
मौजूदा हालात में भारत आयात बिल बढ़ने की चुनौती के मद्देनजर रणनीतिपूर्वक कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की चुनौती को कम कर सकता है। भारत ने अमेरिका की रूस से कच्चा तेल न खरीदने संबंधी किसी चेतावनी पर ध्यान न देते हुए पिछले वर्ष 2024-25 में 50 अरब डॉलर मूल्य का रूसी कच्चा तेल खरीदा है। यह भारत के कच्चे तेल के कुल आयात बिल का करीब 35 फीसदी है। यूक्रेन के साथ युद्ध के कारण प्रतिबंध लगने के बाद रूस ने रियायती कीमतों पर अपना कच्चा तेल बेचना शुरू किया था। भारत ने इस मौके का फायदा उठाते हुए अपने कुल कच्चे तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी बढ़ाई। ऐसे में भारत रूस का सहारा मिलने से कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों के उछाल से बचते हुए व्यापार घाटे की चिंताओं से भी कुछ बच सकेगा। इतना ही नहीं, भारत ने सफलतापूर्वक अपने तेल आयात के स्रोतों का विस्तार कर लिया है और जरूरत के हिसाब से इन स्रोतों का उपयोग करके व्यापार घाटे में बढ़ोतरी रोकी जा सकेगी।
नि:संदेह युद्ध की चुनौती के बीच चीन से आयात में कमी लाकर व्यापार घाटा नियंत्रित करना होगा। हाल ही प्रकाशित नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक चीन के साथ द्विपक्षीय कारोबार में भारत लगातार घाटे की स्थिति में बना हुआ है। पिछले वित्त वर्ष 2024-25 में चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़कर 99.2 अरब डॉलर हो गया, जो 2023-24 में 85.07 अरब डॉलर था। चीन 2024-25 में 127.7 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा। दोनों देशों के बीच 2023-24 में 118.4 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। वस्तुतः चीन पर निर्भरता कम करने के जो रणनीतिक कदम उठाए गए हैं, उनका अभी जमीनी तौर पर कोई विशेष असर नहीं दिखा है। ऐसे में भारत के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार कर रहे चीन से व्यापार घाटा कम करने के लिए सरकार को और अधिक कारगर प्रयास करने होंगे। साथ ही अब एक बार फिर से देश के करोड़ों लोगों को चीनी उत्पादों की जगह स्वदेशी उत्पादों के उपयोग के नए संकल्प के साथ आगे बढ़ना होगा।
निश्चित रूप से सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम (एमएसएमई) से निर्यात बढ़ाते हुए आयात नियंत्रित करके व्यापार घाटा कम कर सकते हैं। इस समय नए व्यापार युग के बदलाव के दौर में भारत के एमएसएमई के लिए चुनौतियों के बीच दुनिया में आगे बढ़ने के ऐतिहासिक अवसर भी हैं। ये उद्योग वैश्विक आपूर्ति शृंखला में प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि टैरिफ वार से एमएसएमई क्षेत्र को जो झटका लग रहा है, उसके मद्देनजर सरकार को एमएसएमई के समक्ष दिखाई दे रही चुनौतियों के समाधान के लिए रणनीति बनाकर निर्यातकों को सहारा देना होगा। वहीं एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमियों और निर्यातकों को भी नई चुनौतियों के मद्देनजर तैयार होना होगा। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि देश से सेवा निर्यात बढ़ाकर व्यापार घाटे में कमी लाई जा सकती है। इस समय पूरी दुनिया में भारत सेवा निर्यात की डगर पर छलांगें लगाकर आगे बढ़ रहा है। भारत को सेवा निर्यात की नई वैश्विक राजधानी के रूप में रेखांकित किया जा रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत का सेवा निर्यात करीब 387.5 अरब डॉलर का रहा है। भारत में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) की तेजी से नई स्थापनाओं के कारण भी सेवा निर्यात तेजी से बढ़ रहा है।
भारत को नए मुक्त व्यापार समझौतों और द्विपक्षीय व्यापार समझौतों से व्यापार घाटे में कमी लानी होगी। भारत द्वारा ब्रिटेन के साथ किए गए मुक्त व्यापार समझौते के बाद अब अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के साथ-साथ मुक्त व्यापार समझौतों को 31 दिसंबर, 2025 तक पूर्ण किए जाने के लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ना होगा। इस समय भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय कारोबार समझौते (बीटीए) के शुरुआती चरण के लिए वार्ता तेजी से आगे बढ़ रही है। भारत द्वारा ओमान, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, इस्राइल, भारत गल्फ कंट्रीज काउंसिल सहित अन्य प्रमुख देशों के साथ भी एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप दिया जाना होगा।

लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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