श्रीनगर का संदेश
निस्संदेह, हाल के वर्षों में भारत दुनिया के बड़े मंचों पर अपनी रीति-नीतियों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने में सफल रहा है। हालिया जी-20 सम्मेलन से जी-7 सम्मेलन तक में भारत की प्रभावपूर्ण उपस्थिति इस तथ्य का परिचायक है। कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किये जाने और जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाये जाने का पाक और चीन पुरजोर विरोध करते रहे हैं। इतना ही नहीं, इस्लामिक देशों के संगठन में तुर्की व इंडोनेशिया तक हमारी कश्मीर नीति के मुखर विरोधी रहे हैं। अब श्रीनगर में हो रही जी-20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की तीन दिवसीय बैठक का पाक के साथ चीन द्वारा बहिष्कार किया जाना बताता है कि चीन कितना हमारा विरोधी देश है। जो निस्संदेह चीन के दोहरेपन को ही उजागर करता है। नैतिक दृष्टि से भी यह बीजिंग की दुर्भावना को उजागर करता है। जाहिर है चीन ऐसा अपने आर्थिक साझेदार पाक को खुश करने तथा भारत को चिढ़ाने के लिये कर रहा है। बहरहाल, भारत ने दुनिया को बता दिया कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि अपने पड़ोसियों की जमीन हड़पने के लिये कुख्यात चीन किस मुंह से भारत के अटूट हिस्से कश्मीर पर सवाल उठा रहा है। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करना भारत का अंदरूनी मामला था। चीन द्वारा 1962 में अवैध रूप से कब्जायी भारतीय जमीन तथा 1963 में पाक के साथ समझौते से हासिल हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन को भारत ने कभी मान्यता नहीं दी। इतना ही नहीं, चीन अपनी महत्वाकांक्षी बहुराष्ट्रीय योजना ‘वन बेल्ट, वन रोड’ योजना को इस विवादित क्षेत्र में अंजाम देता रहा है। यह योजना पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरती है। इसके बावजूद चीन कश्मीर के कथित विवाद को संयुक्त राष्ट्र चार्टर व सुरक्षा परिषद के समझौतों के अनुसार सुलझाने के कुतर्क देता रहा है। जबकि खुद चीन का अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के उल्लंघन का रिकॉर्ड शर्मनाक ही रहा है।
बहरहाल, चीन, पाक व तुर्की आदि के जी-20 सम्मेलन के बहिष्कार के बावजूद भारत द्वारा इसे सफलतापूर्वक आयोजित करना, भारत की साख को बढ़ाने वाला ही है। यही वजह है कि भारत ने जम्मू-कश्मीर में जी-20 से जुड़े आयोजन को भव्य बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। भारत तमाम देशों को संदेश देने में सफल रहा कि बदलते कश्मीर में स्थितियां सामान्य व उम्मीद जगाने वाली हैं। साथ ही चीन व टर्की जैसे देशों को सफलता से यह संदेश दे दिया गया कि भारत के आंतरिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है। भारत ने इन देशों के रवैये zwj;व बयानों को नजरअंदाज करते हुए करारा जवाब भी दिया है। यह भी कि भारत अपने किसी भी क्षेत्र में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय आयोजन करने का हकदार है। इनके विरोध के बावजूद साठ से अधिक विदेशी प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में भाग लिया। इससे पहले भी चीन लद्दाख व अरुणाचल में आयोजित होने वाली जी-20 की बैठक में भाग लेने से इनकार कर चुका है। एक तरफ तो चीन अपने देश में मुस्लिम अल्पसंख्यकों का दमन करता रहता है, वहीं कश्मीरी मुसलमानों के आत्मनिर्णय के कुतर्क देता रहता है। निस्संदेह चीन को उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए। इतना ही नहीं चीन की दुखती रग तिब्बत आदि मुद्दों पर भी दबाव बनाना चाहिए। निस्संदेह, इस सम्मेलन के जरिये विदेशी मेहमानों को कश्मीर के बदलावों को करीब से देखने का अवसर मिला है। साथ ही दुनिया के बड़े वैश्विक मंचों पर भारत का कद भी बढ़ा है। निस्संदेह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तमाम अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भारत की दखल बढ़ी है। दुनिया ने जी-20 के इतर हिरोशिमा में जी-7, पापुआ न्यू गिनी तथा आस्ट्रेलिया में हालिया आयोजनों में भारत के बढ़ते कद को महसूस किया है। यही वजह है कि चीन, पाक व तुर्की इस सम्मेलन से नदारद हैं। तुर्की के राष्ट्रपति रेचब तैयब्बा का सम्मेलन से बाहर रहना वहां के राष्ट्रपति चुनावों में खुद को दुनिया के मुसलमानों का नेता साबित करना है। इसके बावजूद भारत पूरी दुनिया को यह संदेश देने में कामयाब रहा है कि वर्ष 2019 के बाद कश्मीर में विकास हुआ है और वहां शांतिपूर्ण स्थितियां बनी हैं।