शुभ चिंतन से श्रेष्ठता
एक बार वनदेवी भ्रमण के लिए निकलीं। उन्होंने टहलते हुए एक सुन्दर-सा उद्यान देखा। वहां गुरुकुल के विद्यार्थी चहलकदमी कर रहे थे। वनदेवी ने रूप बदल लिया। वह एक भूखी प्यासी बालिका बनकर एक कुलीन विद्यार्थी के सामने याचना करने लगी। मगर उसने नजरअंदाज कर दिया और आगे बढ़ गया। तभी एक साधारण से किशोर ने उसकी बात सुनी। उसे जल तथा फल दिये। वह बालिका धन्यवाद स्वरूप उसके हाथ पर चमेली का एक फूल रखकर चली गई। तभी गुरुदेव पधारे। किशोर ने गुरुदेव को प्रणाम किया और फूल नीचे गिरा। मगर अब वह सामान्य नहीं था। चांदी का बन गया था। भौंचक किशोर ने गुरुदेव को सारी बात कह सुनाई। गुरुदेव बोले, ‘वनदेवी के आशीर्वाद से यह सब संभव है। वनदेवी प्रसन्न होती हैं तो केवल हमारे शुभ विचारों और अच्छे चिंतन से।’ फिर उस कुलीन शिष्य से बोले, ‘आज यह आशीर्वाद तुमको मिलता। याद रखना कि व्यक्ति धन से कभी बड़ा नहीं होता है, धन से वह सिर्फ बड़ा दिखता है। व्यक्तित्व में बड़प्पन और श्रेष्ठता तो केवल अच्छे विचारों से ही आती है।
प्रस्तुति : मुग्धा पांडे