शरद ऋतु की सूचना देने वाले अद्भुत फूल
रेणु जैन
पौधारोपण कितना महत्वपूर्ण है, यह एक बार फिर स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ समय पूर्व बताया। ज्ञातव्य है कि अयोध्या में प्रभु श्रीराम के विशाल मंदिर की नींव का शिलान्यास करने के साथ ही उन्होंने वहां पारिजात का पौधारोपण भी किया था। जान लें कि हमारे शास्त्रों में एक पेड़ लगाना और उसकी देखभाल करना सौ गायों के दान देने के समान माना गया है। पारिजात फूल को हरसिंगार, प्राजक्ता, शैफाली, शिउली नाम से भी जाना जाता है। 10 से 15 फ़ीट ऊंचा यह पेड़ अगस्त से अक्तूबर तक अपने खूबसूरत फूल पारिजात से महकता रहता है। इस मौसम में यह पेड़ अपने पूरे शबाब पर होता है। हमारे शास्त्रों में इसे अत्यंत शुभ और पवित्र वृक्ष की श्रेणी में रखा गया है। देखने में अलौकिक पारिजात के फूल बेहद खुशबूदार होते हैं। दैवीय वृक्ष से नवाजे इस वृक्ष की विशेषता यह भी है कि फूल बहुत बड़ी मात्रा में लगते हैं। चाहे फूल प्रतिदिन तोड़े जाएं किंतु फिर भी अगले दिन फूलों से लकदक पेड़ सजा रहता है। ये फूल सूर्यास्त के बाद खिलना शुरू होते हैं तथा सूर्य के आगमन के साथ ही सारे फूल जमीन पर झर जाते हैं। तब ऐसा लगता है मानो सफेद नारंगी गलीचा बिछ गया हो।
हरसिंगार की उत्पति के विषय में एक कथा है कि हरसिंगार का जन्म समुद्रमंथन से हुआ था जिसे इंद्र ने स्वर्ग ले जाकर अपनी वाटिका में रोप दिया। पारिजात को शिवजी से भी जोड़ा जाता है। हरिवंश पुराण में कहा गया है कि माता कुंती हरसिंगार के फूलों से भगवान शिव की उपासना करती थीं। धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भी हरसिंगार के फूलों का प्रयोग किया जाता है। पुराणों में इस बात का भी ज़िक्र है कि हरसिंगार वृक्ष को छूने भर से थकान चंद मिनटों में गायब हो जाती है तथा शरीर पुनः स्फूर्ति प्राप्त कर लेता है। हरिवंश पुराण में यह बात दर्ज है कि स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी पारिजात के वृक्ष को छूकर ही अपनी थकान मिटाती थी। इसे दैवीय वृक्ष यों ही नहीं कहा जाता, पारिजात के फूलों से भगवान श्रीकृष्ण तथा रुक्मिणी की प्रेम कहानी भी जुड़ी है।
पूरे भारत में विशेषकर बाग-बगीचों में लगा यह वृक्ष मध्य भारत और हिमालय की निचली तराइयों में ज्यादातर होता है। इसका वनस्पतिक नाम निकटेन्थिस आरवो ट्रिस्टस है। शरद ऋतु की सूचना देने वाले ये फूल औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं।
हरसिंगार की कलम लगाना आसान नहीं है। इसलिए इसे दुर्लभ वृक्ष मानते हुए भारत सरकार ने इसे संरक्षित वृक्षों की श्रेणी में रखा है। भारत के ऋषि-मुनियों का मानना है कि पारिजात की गंध आत्मा की शुद्धि करती है। इस वृक्ष की उम्र की बात करें तो वैज्ञानिकों के अनुसार यह वृक्ष 1 हज़ार से 5 हज़ार साल तक जीवित रह सकता है। दुनिया में इसकी सिर्फ पांच प्रजातियां पाई जाती हैं। पारिजात डिजाइट प्रजाति का पेड़ है। पारिजात अपने अलौकिक सौंदर्य के कारण पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प है।
बौद्ध साहित्य में इन फूलों का उल्लेख मिलता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इन फूलों को सुखाकर बौद्ध भिक्षुओं के लिए भगवा वस्त्र रंगे जाते थे। जो स्वास्थ्यवर्धक भी होते थे। पांडवों की माता कुंती के नाम पर रखा गया किंटूर गांव जो बाराबांकी से लगा हुआ है। यहां प्राचीन मंदिर के पास एक पारिजात का पेड़ लगा है। सालों पुराने इस अद्वितीय पेड़ को बड़ी संख्या में पर्यटक देखने आते हैं। स्थानीय लोग इस पेड़ को उच्च सम्मान देते हैं। तथा वे इसकी पत्तियों तथा फूलों की रक्षा हर कीमत पर करते हैं।