शब्दों का मर्म
एक बार स्वामी विवेकानंद सत्संग कर रहे थे। वे शब्दों की व्याख्या और उसके महत्व पर प्रकाश डाल रहे थे। तभी एक व्यक्ति ने प्रश्न किया, ‘स्वामी जी, कोरे शब्दों में क्या रखा है? ये तो बस शब्द हैं, इन्हें समझने से क्या फायदा?’ स्वामीजी थोड़ी देर चुप रहे और उसके बाद एक कहानी सुनाते हुए नालायक, मूर्ख कहकर उसी व्यक्ति की ओर संकेत करने लगे। यह सुनकर उस व्यक्ति को बहुत दुख हुआ। उसने कहा, ‘स्वामीजी, आप मेरी ओर संकेत करके अपशब्द क्यों कह रहे हैं। मेरे लिए कैसे शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं।’ स्वामीजी बोले, ‘भाई ये तो कोरे शब्द ही हैं। मैंने कोई पत्थर-भाला तो नहीं फेंका जो आपको चोट लग गई।’ प्रश्नकर्ता के साथ-साथ वहां उपस्थित सभी श्रोताओं को उत्तर मिल चुका था। शब्द हमें आहत कर सकते हैं, तो हमें ईश्वर के नजदीक भी पहुंचाते हैं। इसीलिए हम जब भी कुछ बोलें तो सोच-समझकर बोलें। प्रस्तुति : पूनम पांडे