विलुप्ति के कगार पर एक सर्दी का मेहमान
भारत में सर्दियों के इन मेहमानों को बचाने के लिए हमें उनके आवासों की रक्षा करनी होगी। तटीय पारिस्थितिक तंत्रों को संरक्षित कर हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि ये नाजुक यात्री हमारी जैव विविधता को समृद्ध करते रहें और हमारी प्राकृतिक विरासत का हिस्सा बने रहें।
प्रदीप नामदेव चोगले
हर सर्दी में भारत की विविध जलभूमियां, और तटीय क्षेत्र में आर्कटिक की कठोर ठंड से बचने के लिए आने वाले प्रवासी पक्षियों का ठिकाना बन जाते हैं। इन प्रवासी मेहमानों में कर्लू सैंडपाइपर नामक एक छोटा पक्षी भी शामिल है, जो अपनी बनावट और लंबी प्रवास यात्रा के कारण पक्षी प्रेमियों को आकर्षित करता है। लेकिन भारत में इस पक्षी की उपस्थिति लगातार घटती जा रही है, जिससे यह संरक्षण की उच्च प्राथमिकता वाली प्रजातियों में शामिल हो गया है।
कर्लू सैंडपाइपर एक प्रवासी जलपक्षी है जो जलाशयों पर निर्भर रहता है। यह पक्षी साइबेरिया के आर्कटिक टुंड्रा में प्रजनन करता है और सर्दी आते ही अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और भारतीय उपमहाद्वीप के गर्म इलाकों में हजारों किलोमीटर की यात्रा करता है। भारत में इसे कच्छ की खाड़ी, महाराष्ट्र के ठाणे क्रीक, चिल्का झील, और पॉइंट कैलिमेर जैसे तटीय इलाकों में देखा जा सकता है। यहां यह कीचड़भरे मैदानों और अकशेरुकी जीवों से भरपूर भोजन स्थलों पर निर्भर रहता है। महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले जैसे क्षेत्रों में, जो प्रवासी पक्षियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है, कर्लू सैंडपाइपर जैसे पक्षी बड़ी संख्या में देखे जाते हैं।
कर्लू सैंडपाइपर की स्थिति ‘नियर थ्रेटेंड’ के रूप में आईयूसीएन रेड लिस्ट में दर्ज है, जो इसकी घटती संख्या को दर्शाती है। वर्ष 1980 के दशक में मन्नार की खाड़ी में जहां 10,000 से अधिक कर्लू सैंडपाइपर देखे जाते थे, वहां 2005 तक इनकी संख्या घटकर 1,000 से कम हो गई। चिल्का झील में, जो कभी 54,000 पक्षियों का घर हुआ करती थी, अब इनकी संख्या 8,000 से भी कम रह गई है।
कर्लू सैंडपाइपर के सर्दियों के महीनों के लिए आवश्यक तटीय आवास भारी दबाव में हैं। कीचड़भरे मैदान, ज्वारनदीमुख, रेतीले तट, और मैंग्रोव जैसे क्षेत्र इस पक्षी और अन्य जलपक्षियों के लिए महत्वपूर्ण हैं। विकास, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों के कारण इन आवासों का विनाश पक्षियों के अस्तित्व पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
भारत में कर्लू सैंडपाइपर को उच्च संरक्षण प्राथमिकता वाली प्रजाति के रूप में पहचाना गया है। हरियाणा जैसे राज्यों ने इसे उन प्रजातियों में सूचीबद्ध किया है जिन्हें तत्काल संरक्षण की आवश्यकता है। भारत में यह पक्षी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची II के तहत संरक्षित है, लेकिन इस कानूनी सुरक्षा को जमीनी स्तर पर प्रभावी संरक्षण उपायों में बदलने की आवश्यकता है।
कर्लू सैंडपाइपर अपनी सर्दियों की जलभूमियों पर निर्भरता के कारण पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है। मन्नार की खाड़ी और चिल्का झील जैसे स्थानों में इसकी घटती संख्या न केवल इस पक्षी की स्थिति को उजागर करती है, बल्कि उन पारिस्थितिकी तंत्रों की चुनौतियों को भी सामने लाती है, जो इन स्थानों पर निर्भर अन्य प्रजातियों को भी प्रभावित कर रही हैं।
कर्लू सैंडपाइपर और अन्य प्रवासी पक्षियों की रक्षा के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। तटीय क्षेत्रों और आर्द्रभूमियों को अतिक्रमण, प्रदूषण और विकास के खतरों से बचाना होगा। समुदायों को जागरूक कर उनके साथ मिलकर संरक्षण प्रयासों को सफल बनाया जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी इन प्रयासों को मजबूत कर सकता है, क्योंकि प्रवासी पक्षी अपनी वार्षिक यात्रा के दौरान कई देशों पर निर्भर रहते हैं।
कर्लू सैंडपाइपर का सिमटता अस्तित्व प्रवासी पक्षियों के सामने आने वाली वैश्विक चुनौतियों का प्रतीक है। भारत में सर्दियों के इन मेहमानों को बचाने के लिए हमें उनके आवासों की रक्षा करनी होगी। तटीय पारिस्थितिक तंत्रों को संरक्षित कर हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि ये नाजुक यात्री हमारी जैव विविधता को समृद्ध करते रहें और हमारी प्राकृतिक विरासत का हिस्सा बने रहें।
चित्र : अमोल लोखंडे