विनम्रता की सीख
एक बार ठिठुरती सर्दी में महाराज कृष्णदेव राय अपने नगर के कारीगरों से मिलने राजमहल से निकले। कोतवाल तथा सेवी भी उनके साथ थे। कृष्णदेव राय उन सभी से खुद अभिवादन कर उनके हालचाल पूछ रहे थे। यह कोतवाल को कुछ अजीब लगा। उसने पूछा, ‘महाराज इन गरीबों से इतना अधिक विनम्र होने की जरूरत क्या है, यह आपकी प्रजा है?’ कृष्णदेव राय ने अपनी सहज मुस्कान के साथ कहा, ‘जिस तरह से नदी में पानी का बहाव ऊंचे तल से नीचे के तल की ओर ही होता है उसी तरह हमारी जिन्दगी में भी प्रेम भाव का प्रवाह बड़े से छोटे की ओर होता है। प्रकृति ही कहती है कि आचरण में अनुशासन बनाकर रखो और कभी भी अपने आप को दूसरों के सामने बहुत महत्वपूर्ण या खास बताने की जरूरत नहीं है। सबसे गलत यह होगा कि प्रेम भाव हम तक बहकर कभी नहीं आयेगा, जीवन रसहीन ही रहेगा।’ उनके अपनी प्रजा से प्रेम का ही परिणाम था कि एक साधारण पंडित रामाकृष्णन की प्रतिभा को भांपकर कृष्णदेव ने उसे तेनालीराम नाम से अपना विशेष सलाहकार नियुक्त किया।
प्रस्तुति : मुग्धा पांडे