विदेशी निवेश की संभावनाएं और चुनौतियां
नए वर्ष 2025 में एफडीआई बढ़ाने के लिए जरूरी होगा कि भारत विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने, नियामक बाधाएं हटाने, बुनियादी ढांचे के विकास, व्यापार-कारोबार में बेहतरी, निवेश की क्षेत्रीय सीमाओं को उदार बनाने, नियामक प्रक्रियाएं सुव्यवस्थित करने व नौकरशाही संबंधी बाधाओं को दूर करनेे की दिशा में कदम उठाये।
हाल ही में 5 जनवरी को वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने कहा कि देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ रहा है, खास तौर से पश्चिम एशिया, जापान, यूरोपीय यूनियन और अमेरिका के निवेशक भारत को सबसे महत्वपूर्ण निवेश गंतव्य के तौर पर मान्यता दे रहे हैं। लेकिन नए वर्ष 2025 में एफडीआई बढ़ाने के लिए यह जरूरी होगा कि भारत विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने, नियामक बाधाओं को हटाने, बुनियादी ढांचे के विकास, व्यापार-कारोबार में बेहतरी, निवेश की क्षेत्रीय सीमाओं को उदार बनाने, नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने, नौकरशाही संबंधी बाधाओं को कम करने और कॉर्पोरेट को उनके विवादों को सुलझाने में मदद करने के लिए न्यायिक परिवेश बेहतर बनाने को आगे बढ़े।
गौरतलब है कि वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का प्रवाह अप्रैल, 2000 से सितंबर, 2024 तक 1000 अरब डॉलर को पार कर गया है। खासतौर से चालू वित्त वर्ष 2024-25 में अप्रैल से सितंबर 2024 के दौरान 42.1 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया है। यह निवेश 60 सेक्टर, 31 राज्य और केंद्रशासित क्षेत्रों में रहा है। खास बात यह भी है कि वर्ष 2014 के बाद से अब तक पिछले 10 वर्षों में 667.4 अरब डॉलर का एफडीआई आया है। भारत के आर्थिक विकास की यात्रा में एफडीआई का यह विशाल आकार एक बड़ी उपलब्धि है। यदि हम भारत में एफडीआई के स्रोत देशों की ओर देखें तो पाते हैं कि भारत में एफडीआई का सबसे बड़ा स्रोत मॉरीशस रहा है। मॉरीशस ने कुल विदेशी निवेश में 25 प्रतिशत का योगदान दिया है। सिंगापुर 24 प्रतिशत एफडीआई के साथ दूसरे स्थान पर है। अमेरिका का 10 प्रतिशत निवेश के साथ तीसरा स्थान है। इसके अलावा बड़े निवेशक देशों में नीदरलैंड्स, जापान और ब्रिटेन शामिल हैं। भारत में जिन क्षेत्रों में विदेशी निवेश आकर्षित हुआ है, उनमें आईटी, फाइनेंशियल सर्विसेज, टेलीकम्युनिकेशंस, ट्रेडिंग, इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कंसल्टेंसी सहित सर्विस सेक्टर प्रमुख सेक्टर हैं।
निस्संदेह, देश को विदेशी निवेश का पसंदीदा देश बनाने में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की अहम भूमिका है। पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में देश की विकास दर अनुमानों से अधिक रही है और इस चालू वित्त वर्ष 2024-25 में भी यह करीब 7 फीसदी रह सकती है। भारत में तेजी से विदेशी निवेश आकर्षित होने के कई कारण हैं। भारत विश्व अर्थव्यवस्था में नई शक्ति प्राप्त कर रहा है। चार वैश्विक रुझान जनसांख्यिकी, डिजिटलीकरण, डीकार्बोनाइजेशन और डीग्लोबलाइजेशन न्यू इंडिया के पक्ष में हैं।
भारत में मजबूत राजनीतिक नेतृत्व है। जिन सुधारों से विदेशी निवेश आकर्षित हुए हैं, उनमें मेक इन इंडिया पहल, आर्थिक उदार नीतियां, जीएसटी, प्रतिस्पर्धी श्रमिक लागत और रणनीतिक प्रोत्साहन, कई सेक्टर में 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति, स्टार्टअप फंडिंग के लिए एंजेल टैक्स खत्म होना, विदेशी कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट टैक्स में कमी प्रमुख हैं। इतना ही नहीं, भारतीय बाजार बढ़ती डिमांड वाला बाजार है। देश में प्रतिभाशाली नई पीढ़ी की कौशल दक्षता, आउटसोर्सिंग और देश में बढ़ते हुए मध्यम वर्ग की चमकीली क्रयशक्ति के कारण विदेशी निवेश भारत की ओर तेजी से बढ़ने लगा है।
उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (अंकटाड) की वर्ल्ड इन्वेस्टमेंट रिपोर्ट सहित विभिन्न वैश्विक रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि भारत में उद्योग-कारोबार को आसान बनाने के लिए विगत 10 वर्षों में करीब 1,500 पुराने कानूनों और 40 हजार अनावश्यक अनुपालन को समाप्त कर दिया गया है। आर्थिक क्षेत्र में दिवालिया कानून जैसे सुधार किए गए हैं। बैंकिंग क्षेत्र में जोरदार सुधार करके मजबूत वृहद आर्थिक बुनियाद की मदद से अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया गया है। कानून के कई प्रावधानों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और एफडीआई के लिए नए रास्ते जैसे अभूतपूर्व कदमों से देश की ओर विदेशी निवेश का प्रवाह तेजी से बढ़ते हुए दिखाई दे रहा है।
निस्संदेह, वैश्विक स्तर पर सुस्त बाजारों और चीन की आर्थिक रफ्तार सुस्त होने के बीच भारत ने विदेशी निवेश प्राप्त करने का अब तक एक खास मुकाम हासिल किया है। विनिर्माता और निवेशक चीन का विकल्प तलाश रहे हैं और इस समय एशिया में अधिकांश निवेशकों को भारत से बेहतर कोई नहीं दिख रहा है। देश की अर्थव्यवस्था की चाल में लगातार सुधार और विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफपीआई) से अच्छा निवेश प्राप्त होने की बदौलत भारतीय शेयरों में तेजी दर्ज की जा रही है। देश में शेयर बाजार ने शानदार प्रदर्शन किया है। विदेशी निवेश की बदौलत भारत विश्व में नई परियोजनाओं की घोषणा करने वाला तीसरा देश बन गया है और अंतर्राष्ट्रीय परियोजना वित्त सौदों में दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को आगे बढ़ाने के लिए सरकार जिन रणनीतियों के साथ आगे बढ़ रही है, उससे देश में तेजी से विदेशी निवेश बढ़ रहा है।
निश्चित रूप से बढ़ता मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर देश में एफडीआई की बड़ी ताकत बन गया है। मैन्युफैक्चरिंग आउटपुट में चीन दुनिया में पहले स्थान पर है। साथ ही मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भारत 456 अरब डॉलर विनिर्माण मूल्य के साथ दुनिया में पांचवें स्थान पर है तथा अब नया विश्व मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की ओर अग्रसर है। भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को जिस तरह सुविधाओं के साथ तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है, उससे दुनियाभर के निवेशक भारत आने के लिए उत्सुक हैं। इस समय भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी पांचवीं अर्थव्यवस्था है। अब इसे तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने और भारत को विकसित देश बनाने की डगर पर आगे बढ़ाने के लिए उद्योगपतियों द्वारा अहम भूमिका निभाई जा रही है।
लेखक अर्थशास्त्री हैं।