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वित्तीय अनुशासन से खुलेगी विकास की राह

04:00 AM Mar 25, 2025 IST
वित्तीय अनुशासन से खुलेगी विकास की राह
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सुक्खू सरकार ने दीर्घकालिक स्थिरता व आत्मनिर्भरता पर जोर दिया है। इसके लिये बाहरी उधारी पर निर्भरता कम करने, पर्यटन को पुनर्जीवित करने, पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा परियोजनाओं और कल्याणकारी योजनाओं से ग्रामीण अाजीविका बढ़ाने आदि की रणनीति बनायी है।

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के.एस. तोमर

एक लाख करोड़ से अधिक के कर्ज़ के बोझ तले दबे, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू उम्मीदों के सहारे केंद्र सरकार से राज्य के लोगों के लिए आर्थिक मदद की अपील कर रहे हैं। मकसद है इस गंभीर वित्तीय संकट से प्रदेश को उबारा जा सके। उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने भी केंद्र सरकार से पहाड़ी राज्यों के लिए विशेष वित्तीय प्रावधान करने की मांग की। यह रेखांकित करते हुए कि जटिल भौगोलिक परिस्थितियों और सीमित राजस्व स्रोतों के कारण राज्य को आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
वित्त विभाग संभाल रहे सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हाल ही में 2025-26 का बजट पेश किया। इस बजट का लक्ष्य वित्तीय अनुशासन और महत्वाकांक्षी विकास पहलों के बीच संतुलन साधना है। बजट का फोकस पर्यटन विस्तार, हरित ऊर्जा संवर्धन और ग्रामीण सशक्तीकरण पर है, जो आर्थिक वृद्धि के प्रमुख चालक माने जा रहे हैं। हालांकि, राज्य वित्तीय चुनौतियों से जूझ रहा है, जिनमें केंद्रीय अनुदानों में गिरावट, बढ़ता कर्ज और राजस्व व्यय में वृद्धि जैसी समस्याएं शामिल हैं, जो वित्तीय योजना के लिए बड़ी बाधाएं हैं।
आर्थिक दबावों के बावजूद, सुक्खू ने दीर्घकालिक स्थिरता और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया है और बाहरी उधारी पर निर्भरता कम करने की रणनीति अपनाई है। इस रणनीति में पर्यटन को पुनर्जीवित करने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करना, पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देना और कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण आजीविका को सशक्त बनाना शामिल है। हालांकि, सीमित राजस्व स्रोतों और ब्याज भुगतान के बढ़ते बोझ के कारण सरकार के लिए विकासोन्मुख और वित्तीय रूप से जिम्मेदार दृष्टिकोण बनाए रखना कठिन चुनौती है।
बजट में वैकल्पिक राजस्व स्रोतों को बढ़ाने के लिए उच्च कर संग्रह, सार्वजनिक-निजी भागीदारी और राज्य संसाधनों का कुशल उपयोग शामिल है। हालांकि, सवाल यह है कि क्या ये उपाय वित्तीय घाटे को कम करने के लिए पर्याप्त होंगे, बिना विकास लक्ष्यों को प्रभावित किए।
दरअसल, हिमाचल प्रदेश की मौजूदा वित्तीय स्थिति कई संरचनात्मक और नीतिगत कारणों से प्रभावित हुई है। सबसे बड़ी चुनौती केंद्रीय अनुदानों में तेज गिरावट रही है। विशेष रूप से राजस्व घाटा अनुदान, जो 2021-22 में रु. 10,949 करोड़ था वह 2025-26 में घटकर रु. 3,257 करोड़ रह गया है। इसके अलावा, जीएसटी मुआवजा बंद होने से रु. 9,478 करोड़ का राजस्व घाटा हुआ है, जिससे वित्तीय असंतुलन और बढ़ गया है। राज्य का कुल कर्ज रु. 1,04,729 करोड़ तक पहुंच गया है, जिसमें से रु. 29,046 करोड़ वर्तमान सरकार के कार्यकाल में उधार लिया गया है।
राज्य को पूंजीगत व्यय में 46.58 प्रतिशत की भारी गिरावट का सामना करना पड़ा है। इससे दीर्घकालिक बुनियादी ढांचे में निवेश की संभावनाएं सीमित हो गई हैं। राजस्व घाटा रु. 361 करोड़ है, जो सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 0.83 प्रतिशत है। वहीं, कुल राजस्व घाटा रु. 96 करोड़ की मामूली गिरावट के साथ रु. 6,486 करोड़ से रु. 6,390 करोड़ हो गया है, जो जीएसडीपी का 1.43 प्रतिशत है। वित्तीय घाटा रु. 10,338 करोड़ बना हुआ है, जो राज्य के जीएसडीपी का 4.04 प्रतिशत है, जिससे स्पष्ट होता है कि व्यय को नियंत्रित करने के प्रयासों के बावजूद वित्तीय दबाव बना हुआ है। आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए धार्मिक और इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है। कानून व्यवस्था को मजबूत करने तथा नशीली दवाओं पर अंकुश को एसटीएफ का गठन किया गया। वहीं हिमाचल प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (2025) माफिया गतिविधियों को रोकने के उद्देश्य से लाया गया है।
बजट में पर्यावरण के अनुकूल बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता दी गई है, जिसमें 500 इलेक्ट्रिक बसों की शुरुआत और शिमला रोपवे प्रोजेक्ट का काम 2025-26 में शुरू करने की योजना शामिल है। सामाजिक कल्याण योजनाओं के तहत 70-75 वर्ष के वरिष्ठ नागरिकों की बकाया पेंशन मई तक चुकाने का प्रस्ताव है, जबकि सरकारी कर्मचारियों के रु. 10,000 करोड़ के बकाया एरियर को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। शिक्षा प्रशासन के पुनर्गठन के तहत स्कूलों और कॉलेजों के लिए अलग-अलग निदेशालय बनाए जाएंगे। हिमाचल प्रदेश का 2025-26 बजट में वेतन और पेंशन पर कुल व्यय का 45 प्रतिशत है। विकास कार्यों के लिए 24 प्रतिशत और ब्याज भुगतान व कर्ज की अदायगी में 22 प्रतिशत खर्च किया जा रहा है। राजस्व वृद्धि के लिए राज्य को बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी। राज्य संपत्तियों का मौद्रीकरण, प्रदेश को पारिस्थितिक योगदान के लिए वित्तीय मान्यता दिलाना, इको-टूरिज्म और धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना, हरित ऊर्जा परियोजनाओं से निजी निवेश आकर्षित करना, और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को प्रोत्साहित करना जरूरी है।
कर्ज प्रबंधन और वित्तीय दबाव चिंताजनक स्थिति में हैं, क्योंकि कुल उधारी का 70 प्रतिशत पिछले कर्जों की अदायगी में चला गया। पेंशन व्यय और ऊंचे ब्याज भुगतान ने वित्तीय लचीलेपन को सीमित कर दिया है। वित्तीय अनुशासन और सतत विकास के बीच संतुलन बनाना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण रहेगा।

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लेखक राजनीतिक विश्लेषक और स्तंभकार हैं।

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