लामणी की रौनक, सोशल मीडिया पर सन्नाटा
शमीम शर्मा
आजकल के टांट झुलसाने वाले दिनों में लामणी करती हुई किसी हरियाणवी युवती से कोई लड़का अगर गलती से ये कहे कि मेरा दिल ले ले बैरण तो वो कहेगी- दिल का के मैं अचार घाल्लूंगी, देणी है तो एक ट्राली तूड़ी दे दे। गेहूं कटाई की चाहे कितनी ही मशीनंे आ जायें पर जिन्हें सही किस्म की तूड़ी चाहिये, वे तो आज भी हाथ से ही कटाई करते हैं।
लोग तो बैशाखी का पर्व मनाने की तैयारी कर रहे हैं पर गर्मियों में गेहूं काटने वालों से पूछो कि ये त्योहार धूप में उनका कितना रंग उड़ा देता है। पूरे परिवार के परिवार सिर पर मंडासा मार, रोटी-चटनी, लस्सी साथ लेकर सुबह पहले खेतों में गेहूं-चने की कटाई के लिये निकल पड़ते हैं। इसी काम को ‘लामणी’ कहा जाता है। शाम को लौटते समय इनकी शक्ल देखने लायक होती है। जैसे चने की टांट होलिका दहन में भुनकर होले बन जाती है। या फिर शक्ल एकदम उस फोटो से मिलने लगती है जो आधार कार्ड पर लगी होती है। वैसे तो सूरज धरती से करोड़ों मील दूर है पर गेहूं काटते समय लगता है कि सूरज ने घर बदल लिया है, मानो वह हमारे पास ही आकर बैठ गया है।
लामणी के इन दिनों में हर सुख-दुख में साथ देने वाले प्रेमी अब फोन ही नहीं उठा रहे। इसीलिये एक वियोगिनी की प्रार्थना है :-
ना छोड़ मुझे इस तन्हाई में
तेरा साथ चाहिये गेहूं की कटाई में।
गेहूं कटाई के दिनांे में लड़कियां अपने ब्वॉय फ्रेंड को धमकी भी दे रही हैं- म्हारी लामणी करवा दिये अर नहीं तो नंबर ब्लॉक कर द्यूंगी। मरता हर-हर करता। यार बेचारे भी चुपचाप दिहाड़िये की सी वेशभूषा में दरांती लेकर पहुंच जाते हैं। वैसे ये ब्लॉक करने की धमकी भी जानलेवा सी है और आजकल ब्लॉक करने का ट्रेंड बढ़ता ही जा रहा है।
शक्ल तो छोड़ो, गेहूं कटाई के दिनों में तो भंगड़ा गिद्दा करते समय बोलियों के बोल भी बदल जाते हैं। अब ये देखो :-
बारा बरसी खटण गया सी खट के ल्यान्दी चूड़ी।
लोगां की कटी भी कोणी अर यारां नैं ढो ली तूड़ी।
एक सर्वे के मुताबिक गेहूं कटाई के इन दिनों में लड़कियां न तो रील बना रही हैं और व्हाट्सएप से भी गायब-सी हैं। खेतों में रौनक है और तूड़ी के चाहे ढेर लग रहे हैं पर सोशल मीडिया पर सन्नाटा है।
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एक बर की बात है अक नत्थू का बाब्बू गुस्सा करते होये बोल्या- तू एक भी काम ढंगसिर नीं करता। तेरे तै भेज्या था पुदीना ल्याण अर लियाया धनिया। ईब न्यूं जी करै अक तेरे ताहिं घर तै काढ़ द्यूं। नत्थू बोल्या- चालो तो फेर कट्ठे ही चाल्लां। मां न्यूं कह्वै थी अक या मेथी है।