रूस-चीन संबंधों की नई इबारत लिखते ट्रंप
ट्रम्प रूस व चीन के साथ अमेरिकी संबंधों को नये सिरे से तय कर रहे हैं। हाल-फिलहाल राष्ट्रपति ट्रंप की मंशा है कि चीन की जगह भारत को संतुलन के तौर पर इस्तेमाल करे। वैसे भारत को अभी भी अमेरिकी सहयोग की आवश्यकता है।
जी. पार्थसारथी
वर्ष 2024 के अंत में अपनी सालाना पत्रकार वार्ता में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने घोषणा की : ‘मैं कहूंगा कि स्थिति नाटकीय रूप से बदल रही है’। उन्होंने आगे कहा : ‘हर दिन समूचे अग्रिम मोर्चे पर हलचल हो रही है’। पुतिन के बारे में माना जाता है कि वे अपने शब्दों का चयन बहुत सावधानी से करते हैं। अब यह स्पष्ट है कि यह केवल कुछ वक्त की बात है जब रूस यूक्रेन को शेष बचे रूसी क्षेत्र से खदेड़ कर, अपने इलाकाई उद्देश्यों की प्राप्ति कर लेगा, जिस पर जल्द से जल्द पुनः नियंत्रण बनाने को अब वह बेताब है। यह दक्षिण तटों सहित वह इलाका है जिस पर रूस का नियंत्रण ऐतिहासिक रूप से रहा था। अब ऐसा लग रहा है कि यूक्रेन को उस क्षेत्र से बेदखल होना पड़ेगा, जिस पर लड़ाई शुरू होने से पहले उसका नियंत्रण था। फिलहाल, रूस वह इलाका दुबारा पाने की कोशिश में लगा है, जो युद्ध शुरू होने के बाद हाथ से निकल गया था।
साथ ही, इसमें कोई संदेह नहीं है कि यहां मामला युवा और अनुभवहीन यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की का भी है, जिन्हें बाइडेन प्रशासन और उसके नाटो सहयोगियों ने अपने दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र पर नियंत्रण बढ़ाने के लिए उकसाया था। अब यह स्पष्ट है कि बाइडेन प्रशासन के विपरीत, ट्रम्प की सरकार पुतिन के सैनिकों से निबटने के लिए यूक्रेन के सैन्य अभियानों में उनका साथ नहीं देने वाली। इस सारी प्रक्रिया में, ऐसा लगता है कि अमेरिका यह भूल गया कि रूसियों का एक मुख्य उद्देश्य ऐतिहासिक रूप से ‘गर्म पानी’ वाले तटों पर अपना नियंत्रण और निर्बाध पहुंच बनाए रखना है। साफ है जो बाइडेन ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि रूस के लिए वे अपने पूर्व में मौजूद इलाके कितने महत्वपूर्ण हैं, जिनपर कभी उसका नियंत्रण रहा था और जिससे होकर समुद्र तक उसकी पहुंच साल भर बनी रहती है, विशेषकर वर्तमान में यूक्रेन के तटों वाला।
ट्रम्प के आगमन के साथ देखा जा रहा सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन यह होगा कि इन मुद्दों को हल करने के लिए एक गंभीर प्रयास चल निकलेगा, ताकि यह सुनिश्चित हो पाए कि समुद्र तक रूस की पहुंच पूर्णतः सुरक्षित रह सके। इसके अलावा, ऐसे संकेत हैं कि पूर्वी यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र में भी इलाका कब्जाने में रूसी सावधानीपूर्वक लगे हुए हैं। हालांकि, राष्ट्रपति ट्रम्प रूस के क्षेत्रीय दावों पर यूरोपीय मुल्कों की चिंताओं से जानबूझकर अनजान बने प्रतीत होते हैं। उन्होंने पुतिन के क्षेत्रीय दावों का जिक्र इस प्रकार किया है : ‘क्या दिमाग है। पुतिन यूक्रेन के एक बड़े हिस्से को आजाद घोषित कर रहे हैं। यह अद्भुत है’! यह हैरानी जनक है क्योंकि कोई यह उम्मीद नहीं कर सकता था कि अमेरिका इस प्रकार से रूस के क्षेत्रीय दावों का समर्थन करेगा!
राष्ट्रपति ट्रम्प के राज में अमेरिका-चीन संबंधों के बारे में, ऐसे वक्त पर जब भारत चीन के साथ अपनी सीमाओं पर तनाव को खत्म करने के प्रयास करने में लगा है, चीन के साथ ट्रम्प के संबंधों में कोई गंभीर सफलता मिलने की संभावना कम ही है। ट्रम्प ने चीन की नीतियों के साथ अपने मतभेद व्यक्त करने में कभी संकोच नहीं किया है। इसकी पुष्टि सीनेटर मार्को रुबियो को अपना विदेश मंत्री और सांसद माइक वाल्ट्ज को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त करने से होती है।
रुबियो और वाल्ट्ज, दोनों को, वाशिंगटन में ‘कट्टर चीन विरोधी’ के रूप में जाना जाता है। चीन ने साल 2020 में रुबियो को अपने यहां प्रवेश देने से दो बार रोका था। किसी को हैरानी हो सकती है कि क्या यह प्रतिबंध आगे भी लागू रहेगा। ट्रम्प द्वारा इन दोनों की नियुक्ति का चीन जरा भी स्वागत नहीं करेगा। फिर भी, ट्रम्प के एक अन्य सहयोगी, अरबोंपति एलन मस्क के चीन में बड़े वाणिज्यिक हित हैं, जिनका मूल्य अरबों डॉलर में है। ट्रम्प स्पष्ट रूप से चीनियों को लेकर अपने इरादों के बारे में अनिश्चितता से भरे हुए हैं। ब्यानबाजी के बावजूद, यह भी साफ है कि ट्रंप चीन के साथ अपने विकल्प खुले रखेंगे। हाल-फिलहाल राष्ट्रपति ट्रंप को चीन को उसकी जगह पर रखने के लिए, भारत को संतुलन के तौर पर इस्तेमाल करना चाहेंगे। बदले में भारत को अभी भी अमेरिका की जरूरत है। उच्च तकनीक, रक्षा उत्पादन और अंतरिक्ष से लेकर सुरक्षा आदान-प्रदान और आर्थिक सहयोग के अन्य क्षेत्रों में सहयोग की। यह ऐसे वक्त में हो रहा है जब अमेरिका में बसे उच्च शिक्षित भारतीयों की आबादी बढ़ रही है, जोकि वर्तमान में लगभग 51 लाख है।
हालांकि, अमेरिका-चीन संबंध कठिन दौर से गुजर रहे हैं, जो दोनों शक्तियों के नेताओं के बीच काफी आपसी अविश्वास और नापसंदगी से पैदा हुआ है। विश्वास और सहयोग की बहाली में समय लगेगा, खासकर जब ट्रम्प के ब्यानबाजी के लहजे ने 'मध्य साम्राज्य' (कभी चीनी खुद को धरती का धुरा मानते थे) के लोगों को चौंका दिया होगा। लेकिन, चीनियों के साथ मतभेदों को दूर करने के लिए ट्रंप के पास एलन मस्क के साथ उनके बढ़िया रिश्ते का उपयोग करने वाला पत्ता सदा हाथ में रहेगा,क्योंकि 'मध्य साम्राज्य' के साथ मस्क के संबंध काफी प्रगाढ़ और निहित स्वार्थ से जुड़े हैं। पहले से ही, ऐसी अटकलें हैं कि चीन अमेरिका में टिकटॉक के कारोबार का मस्क द्वारा अधिग्रहण किए जाने को मंजूरी देने की सोच रहा है। जो भारतीय मस्क के साथ सौदा करने का अवसर ढूंढ़ रहे हैं, उन्हें यह ध्यान में रखना चाहिए।
एक और महत्वपूर्ण कारक जिसे किसी को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए, वह यह है कि ट्रम्प के राष्ट्रपति पुतिन के साथ संबंध बहुत बढ़िया हैं और दुनिया भर के देश इसे स्पष्ट रूप से समझते हैं। इन घटनाक्रमों से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले व्यक्ति हैं, यूक्रेन के घिरे बैठे राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की। वे यह मानकर गंभीर रूप से गलत अनुमान लगा बैठे कि जो बाइडेन के नेतृत्व वाले अमेरिका का समर्थन पाकर वे पुतिन के रूस के साथ इलाकाई विवाद में भिड़ने के काबिल हो गए हैं। दुख की बात है कि बाइडेन के उत्तराधिकारी डोनाल्ड ट्रम्प ज़ेलेंस्की का साथ देने के मूड में नहीं हैं।
ट्रम्प के हाथ में समझौता करवाने का जो औजार है, वह है अमेरिका के नेतृत्व में रूस पर लगाए गए दंडात्मक प्रतिबंधों की शृंखला। निवर्तमान बाइडेन प्रशासन के अंतिम कार्यों में से एक था रूस के ऊर्जा क्षेत्र को लक्षित करते हुए एक व्यापक प्रतिबंध निजाम लागू करना, जो 10 जनवरी, 2025 से प्रभावी हुआ है। ट्रम्प ने अक्सर प्रतिबंधों की बतौर औजार प्रभावशीलता के बारे में संदेह व्यक्त किया है और रूस को समझौते की मेज पर लाने को इन्हें घटाने अथवा हटाने को राज़ी होने का संकेत दिया है। इस दृष्टिकोण में, रूस द्वारा यूक्रेन को रियायत देने की एवज़ में प्रतिबंधों में राहत की पेशकश शामिल हो सकती है, मसलन, डोनबास जैसे विवादित 'स्वतंत्र' क्षेत्र में युद्धविराम या इलाका संबंधी समझौते पर सहमति बनना।
भारत के लिए, जिसने प्रतिबंधों के कसते फंदे के बावजूद रियायती रूसी कच्चे तेल के अपने आयात में उल्लेखनीय वृद्धि की है, कोई भी संभावित ढील एक महत्वपूर्ण राहत हो सकती है, जिससे वैश्विक ऊर्जा बाजार में स्थिरता बन सकेगी और आपूर्ति शृंखलाओं को फिर से व्यवस्थित किया जा सकेगा। वास्तव में, 10 जनवरी की प्रतिबंध सूची में दो भारतीय कंपनियों का भी नाम था, जिन पर रूस की आर्कटिक एलएनजी 2 परियोजना से एलएनजी की ढुलाई के प्रबंधन में उनकी कथित संलिप्तता के लिए प्रतिबंध लगाया गया है। तेजी से बदलती इन स्थितियों के मद्देनज़र,भारत को अपने भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक संबंधों को सावधानीपूर्वक फिर से व्यवस्थित करने की आवश्यकता होगी, यह सुनिश्चित करते हुए कि राष्ट्रपति ट्रम्प के तहत अमेरिका-रूस और अमेरिका-चीन संबंधों की उभरती रूपरेखा से अनुकूलता बनाते हुए अपने हितों की रक्षा की जाए।
लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।