राष्ट्र के लिए त्याग
महान वैदिक विद्वान पंडित श्रीपाद दामोदर सातवलेकर जी एक कुशल चित्रकार थे। युवावस्था में अपनी तूलिका से बड़े-बड़े धनपतियों तथा अन्य लोगों के चित्र बनाते थे और कला से प्राप्त धन से अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। एक दिन उन्होंने सोचा, मातृभूमि को विदेशियों की गुलामी से स्वतंत्र कराने के लिए मुझे वेदज्ञान के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना जाग्रत करने में योगदान करना चाहिए। उसी दिन से उन्होंने चित्र बनाने बंद कर अपना समय वेद-ज्ञान के प्रचार-प्रसार में लगाना शुरू कर दिया। आमदनी बंद हो जाने से परिवार आर्थिक संकटों से घिरने लगा। एक दिन एक व्यक्ति सातवलेकर के पास आया और एक हजार रुपये उनके सामने रखकर कहा, ‘पंडित जी! आप हमारे अमुक नगर के रायबहादुर जी का चित्र बना दीजिए। शेष राशि चित्र लेते समय भेंट कर दी जाएगी।’ सातवलेकर जी ने उत्तर दिया, ‘मैं अंग्रेजों से ‘रायबहादुर’ की उपाधि प्राप्त किसी अंग्रेज परस्त व्यक्ति का चित्र बनाकर उससे मिले अपवित्र धन का स्पर्श भी नहीं करूंगा।’ वह व्यक्ति पंडित जी के स्वाभिमान को देखकर हतप्रभ रह गया। प्रस्तुति : डॉ. जयभगवान शर्मा