राजशाही के स्याह-श्वेत सच
सुशील कुमार फुल्ल
गंगाराम राजी ने सामाजिक उपन्यासों के साथ-साथ ऐतिहासिक उपन्यासों के क्षेत्र में त्वरित नाम कमाया है। ‘एक थी रानी खैरागढ़ी’ की परंपरा में ही राजी का नव प्रकाशित उपन्यास ‘लोम हर्षक राजा सिद्धसेन’ हिमाचल के मंडी जनपद के राजशाही उपन्यास को कुरेदता हुआ सोलहवीं-सत्रहवीं शती के सेनवंशी राजाओं के इतिहास को पुनर्जीवित करता हुआ सिद्धसेन की वीरता, दूरदर्शिता एवं जनकल्याणकारी राजा की छवि को उकेरता है।
उपन्यास में चित्रित कतिपय पात्र, यथा पृथ्वीपाल सिंह, राजकुंवर असदि, सामंतवादी प्रवृत्तियों को भी प्रश्रय देते हैं। राजस्थानी रासो में वर्णित एक उक्ति के अनुसार ‘जाहि की बिटिया सुंदर देखी, ताही पर जाई धोर दिए हथियार’। सिद्धसेन का बेटा भी अभय चंद और जयचंद की बेटियों पर मोहित होकर उन दोनों से विवाह रचाता है। बीड़ का राजा पृथ्वीपालसिंह सिद्धसेन का दामाद होते हुए भी जब मंडी में मेहमान बनकर आता है तो अवैध संबंधों में पकड़ा जाता है। राजा सिद्धसेन उसका वध कर देता है। मरने से पहले राजा अपने पोते राजकुंवर को कुछ नसीहतें देता है कि राजा को प्रजा का ध्यान रखना चाहिए और जनकल्याण ही उसका कर्म होना चाहिए। स्त्री विमर्श की भी बात इस उपन्यास में की गई है। सिद्धसेन की बेटी स्वीकार करती है कि विवाहोपरांत कन्या को अपने ससुराल में ही अपनी समस्याओं से निपटना चाहिए।
उपन्यासकार ने धुगू नाई जैसा बुद्धिमान पात्र तराशा है जो अपनी बुद्धिमत्ता के आधार पर राजा को प्रभावित करता है। जापू, वीरसेन, विक्की दहिया, पंडित पुरोहित जैसे और भी बहुत से पात्र पाठकों को प्रभावित करते हैं।
उपन्यास की एक अन्य विशेषता यह है कि लेखक ने कुल्लू, सुकेत, बड़ा भंगाल, छोटा भंगाल के क्षेत्रों में चलते द्वंद्व को भी बड़ी कुशलता से उकेरा है। गंगाराम राजी छोटे-छोटे प्रसंगों को रोचकता से परोसते हुए अपनी बात को सहजता से आगे बढ़ाते हैं। उपन्यास मंडी जनपद के तत्कालीन परिदृश्य को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है।
पुस्तक : लोमहर्षक राजा सिद्धसेन रचनाकार : गंगाराम राजी प्रकाशक : स्वतंत्र प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 152 मूल्य : रु. 299.