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राग रागनी

04:18 AM Jan 12, 2025 IST
राग रागनी
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संत निराळा-कर ग्या चाळा,संत इसे हों चंद दिखे।
जुगां-जुगां लग याद रहैंगै,संत बिबेकानंद दिखे।।

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धरम-करम के भरम कसुत्ते,थे पल म्हं तार बगाये।
परमहंस वै रामकिसन जी,रै जिस दिन गुरुवर पाये।
गुरू म्हेर तै खुलते आये, द्वार रहे जो बंद दिखे।
जुगां-जुगां लग याद रहैंगै,संत बिबेकानंद दिखे।।

संन्यासी बण सभतै पहलम, यो साच्चा धरम निभाया।
पायाँ-पायाँ देस नाप कै ,रै सोया देस जगाया।
धरम-ध्यान बेदांत बताया,दूर हटायी गंद दिखे।
जुगां-जुगां लग याद रहैंगै, संत बिबेकानंद दिखे।।

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सात समंदर पार देस का,वै तगड़ा मान बढ़ाग्ये।
हे अमरिकी भाइयो-भाणो!कहकै रै आन बताग्ये।
धरम-करम का मरम सिखाग्ये, क्यूँकर कटते फंद दिखे।
जुगां-जुगां लग याद रहैंगै, संत बिबेकानंद दिखे।।

दुनियाभर म्हं रुक्का पाट्या, जद धरम-सभा म्हं बोल्ये।
धरम-सनातन अमर रहैगा,रै भेद तुरत सभ खोल्ये।
कह ‘नाहड़िया’ पूरे तोल्ये,बोल कहे ज्यूँ छंद दिखे।
जुगां-जुगां लग याद रहैंगै, संत बिबेकानंद दिखे।।

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