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यज्ञ-तपस्या का फल देता है व्रत

04:00 AM Jan 20, 2025 IST

चेतनादित्य आलोक

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प्रत्येक महीने दो एकादशी तिथियां आती हैं- एक शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में। इस प्रकार, एक वर्ष में कुल 24 एकादशियां होती हैं। एकादशी व्रत को ‘हरि वसारा’ एवं ‘हरि दिवस’ के नाम से भी जाना जाता है। सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है। यह व्रत जगत‍् के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होता है। एकादशी के व्रत में जगत‍् के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु और जगन्माता लक्ष्मी जी की विशेष पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि सनातन धर्म के अनुयायियों को एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।
एकादशी व्रत का महत्व
एकादशी व्रत का महत्व स्कंद पुराण और पद्म पुराण के पवित्र ग्रंथों में मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भक्त इस दिन व्रत रखकर विधि-विधान से भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह दिन घर में सुख, शांति और समृद्धि लाने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता के अनुसार भक्तिपूर्वक एवं पूर्ण श्रद्धा-भाव के साथ इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी दुःख एवं संकट समाप्त हो जाते हैं और जीवन में अंत में मोक्ष की प्राप्ति भी हो जाती है। एकादशी का व्रत व्यक्ति को जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति दिलाने में सक्षम है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति वर्षभर के सभी एकादशी व्रतों को पूर्ण श्रद्धा एवं विधिपूर्वक करता है, उसे बैकुंठ में स्थान मिलता है। यही कारण है कि अन्य सभी पर्वों और व्रत-उपवासों में एकादशी व्रत को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार एकादशी का व्रत लगभग 48 घंटों का होता है। दरअसल, व्रत करने वाले को दशमी तिथि से ही संयम और व्रत के नियमों के अनुसार आचार-विचार और व्यवहार का पालन करना होता है, जो कि एकादशी तिथि के अगले दिन सूर्योदय होने तक जारी रहता है।
षट्तिला एकादशी का महत्व
सनातन धर्म में षट्तिला एकादशी व्रत का बहुत बड़ा महत्व है। मान्यता है कि षट्तिला एकादशी का व्रत विशेष रूप से भगवान श्रीहरि विष्णु को अत्यंत प्रिय है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। इस व्रत के शुभ प्रभाव से दरिद्रता और दुखों से मुक्ति मिलती है। यहां तक कि यदि किसी कारणवश व्रत नहीं भी कर पाएं तो सिर्फ षट्तिला एकादशी व्रत की कथा सुन लेने भर से ही भक्त को वाजपेय यज्ञ के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। बता दें कि यह व्रत वाचिक, मानसिक और शारीरिक तीनों प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाता है। हमारे शास्त्रों में इस व्रत का पुण्य फल कन्यादान, दीर्घकालीन तपस्या तथा अनेक यज्ञों के बराबर बताया गया है।
तिल का महत्व
शास्त्रों में षट्तिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन ‘षट्’ यानी छह प्रकार से तिल का उपयोग किया जाता है, यथा- तिल का उबटन लगाना, तिल से स्नान करना, तिल से हवन करना, तिल से तर्पण करना, तिल मिला हुआ जल एवं तिल का पान और तिल का दान करना शामिल है। तिल के इन्हीं छह प्रकार के उपयोगों के कारण इस व्रत को ‘षट्तिला एकादशी’ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन तिल का दान करने से पापों का नाश होता है और भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा से स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।
शुभ मुहूर्त
षट्तिला एकादशी 24 जनवरी को संध्या 07:25 बजे प्रारंभ होकर 25 जनवरी को रात 08:31 बजे समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार षट्तिला एकादशी का व्रत शनिवार 25 जनवरी को रखा जाएगा।
तुलसी पूजन
षट्तिला एकादशी को तुलसी माता को गंगाजल से स्नान कराएं और उन्हें हल्दी, रोली तथा चंदन लगाएं। फिर तुलसी जी के पास घी का दीपक जलाएं। तत्पश्चात‍् तुलसी माता को लाल चुनरी, चूड़ियां, सिंदूर एवं अन्य शृंगार सामग्री अर्पित करें। इससे वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है और घर में सौभाग्य का वास होता है।
कदापि न करें
एकादशी के दिन तुलसी जी को जल नहीं चढ़ाना चाहिए और न ही इनके पत्ते तोड़ने चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस दिन माता तुलसी भगवान श्रीहरि विष्णु के निमित्त निर्जला व्रत रखती हैं।
पारण
षट्तिला एकादशी का संपूर्ण पूजा-विधान अगली सुबह यानी द्वादशी को भी दोहराएं। तत्पश्चात योग्य ब्राह्मण एवं निर्धनों को रुचिकर भोजन कराएं।

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