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मौन की साधना से पुण्य की प्राप्ति

04:00 AM Jan 20, 2025 IST
मौन की साधना से पुण्य की प्राप्ति
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मौनी अमावस्या हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो माघ माह की कृष्ण पक्ष में आती है। इस दिन संगम तट पर स्नान, मौन व्रत और पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। विशेष रूप से 2025 में महाकुंभ के अवसर पर इसका महत्व और भी बढ़ जाता है, जब ग्रहों का दुर्लभ संयोग बनता है।

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आर.सी.शर्मा
माघ मास में पड़ने वाली मौनी अमावस्या हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। माना जाता है कि इस दिन मौन रहकर हम अपने तन, मन और आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है और चूंकि 29 जनवरी को पड़ने वाली मौनी अमावस्या महाकुंभ के बीच में पड़ रही है, इसलिए इसका बाकी सालों की अमावस्या से कुछ ज्यादा ही महत्व हो जाता है। गुरु और सूर्य के राशि परिवर्तन में कुंभ होता है, लेकिन इस साल 29 जनवरी को चंद्रमा का भी मकर राशि में आना महाकुंभ का और भी महत्व बढ़ा देता है। यही वजह है कि इस साल मौनी अमावस्या के स्नान को महास्नान माना गया है। इस साल मौनी अमावस्या यानी माघ माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या 28 जनवरी को शाम 7 बजकर 35 मिनट पर शुरू होगी और 29 जनवरी को शाम 6 बजकर 35 मिनट तक इसका शुभ मुहूर्त रहेगा।
मौनी अमावस्या के दिन देशभर में अलग-अलग जगहों पर रहने वाले लोग अपने आसपास की किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं। स्नान करने के बाद दान देने और दिनभर मौन रहने की परंपरा है। गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम त्रिवेणी में इस दिन नहाने का विशेष महत्व इसलिए है, क्योंकि माना जाता है कि त्रिवेणी के संगम में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का निवास है। इस साल तो यह और भी महत्वपूर्ण इसलिए बन रही है, क्योंकि 13 जनवरी से 28 फरवरी तक जो विभिन्न महास्नान, पर्व स्नान और अमृत स्नान पड़ रहे हैं, उनमें 29 जनवरी भी शामिल है। 29 जनवरी को महाकुंभ में अमृत स्नान पड़ रहा है। माना जाता है कि इस दिन जो भी त्रिवेणी में डुबकी लगायेगा, वह अपने जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्त हो जायेगा। इस दिन बन रहा ग्रह नक्षत्रों का मेल दुर्लभ है, इसलिए इस दिन महास्नान महाफलदायक होगा।
जैसा कि हम जानते हैं कि जब बृहस्पति वृष राशि में, सूर्य मकर राशि में और चंद्रमा भी मकर राशि में आता है तो कुंभ का पर्व बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है और 29 जनवरी यानी मौनी अमावस्या को यही संयोग पड़ रहा है। इसलिए अगर कहा जाए कि इस साल का महाकुंभ दुर्लभ है तो अतिश्ायोक्ति नहीं होगी। यही नहीं, प्रयाग में कल्पवास का भी अपना एक विशेष महत्व होता है। इसके लिए कुंभ, अर्धकुंभ या महाकुंभ की जरूरत नहीं होती, हर साल का कल्पवास अपने आपमें एक विशिष्ट काल होता है। माघ महीने में देश के कोने-कोने से हज़ारों लोग आकर गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम त्रिवेणी में अपनी कुटी बनाकर वास करते हैं और पूरे एक महीने तक यहां रहकर भगवत भजन करते हैं। कल्पवास का प्रारंभ माघ महीने के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से होता है, जिसकी शुरुआत 13 जनवरी से हो चुकी है। इसका मतलब यह है कि इस साल मौनी अमावस्या कल्पवासियों के लिए एक विशेष धार्मिक महत्व का अवसर होगी।
संगम के किनारे साधु, संन्यासी ही नहीं, सामान्य गृहस्थ लोग भी एक महीने का कल्पवास करते हैं। यही कारण है कि इस साल की मौनी अमावस्या बाकी सालों की मौनी अमावस्या से विशेष है। मौनी अमावस्या के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत रखने वाले लोग स्नान के बाद मौन रहते हैं। माना जाता है कि मौन रहने के कारण उनके पुण्य में कई गुना इजाफा हो जाता है। मौन रहने से मन शांत होता है और शांत मन से ध्यान करना तन, मन दोनों को प्रफुल्लित करता है। धर्मशास्त्र कहते हैं कि मौन व्रत रहने वाले व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती है। मौनी अमावस्या को कुछ लोग माघी अमावस्या के नाम से भी जानते हैं। जिस तरह इस बार महाकुंभ के कारण मौनी अमावस्या बहुत महत्वपूर्ण हो गई है, उसी तरह जब यह सोमवार के दिन पड़ती है, तो भी इसका महत्व कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है।
धर्मशास्त्र यह भी कहते हैं कि मौन रहकर मौनी अमावस्या का व्रत करने वालों को मोक्ष का मार्ग मिलता है। जिन लोगों को पितृदोष लगा होता है, वे लोग मौनी अमावस्या को पितरों के लिए दान-पुण्य कर सकते हैं। मौनी अमावस्या का व्रत रहने से मन में नियंत्रण बढ़ता है, वाणी में शुद्धता आती है, मोक्ष का मार्ग खुलता है और सभी तरह के सुख और संपदाओं का अक्षय वरदान मिलता है।
Ûइस दिन सुबह सूर्य उगने के पहले जग जाना चाहिए और प्रातःकालीन क्रियाएं सम्पन्न करने के बाद आसपास की किसी पवित्र नदी पर स्नान करने के लिए जाना चाहिए।
Ûअगर आसपास कोई बहती हुई पवित्र नदी या विशाल झील नहीं है तो घर में ही स्नान करें, लेकिन स्नान करने के लिए पानी में पहले गंगाजल की कुछ बूंदें मिला लें। ऐसे पानी में स्नान करने पर वही पुण्य और वही ताजगी भी प्राप्त होती है, जो गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान किये जाने पर हासिल होती है।
इस दिन स्नान करने के बाद व्रत रखना है तो मौन धारण कर लें और व्रत तोड़ने के पहले तक किसी भी वजह से न बोलें और अगर बीच में किसी तरह से बोल दें तो फिर व्रत तोड़कर सामान्य रूप से पूजा-पाठ करना चाहिए और अगली बार के मौनी अमावस्या व्रत को ज्यादा सजगता से पूरा करना चाहिए। शास्त्रों में वर्णित है कि मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर आचरण और स्नान, ध्यान करने का विशेष महत्व है। इ.रि.सें.

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