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मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक राजयोग स्नान

04:00 AM Dec 16, 2024 IST
मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक राजयोग स्नान
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शाही स्नान का महत्व इसलिए भी बहुत है, क्योंकि कुंभ का आयोजन ब्रह्मांडीय घटनाओं के आधार पर होता है, जब सूर्य, चंद्रमा और गुरु ग्रहों की स्थिति विशिष्ट होती है। उसी समय शाही स्नान आयोजित होता है। यह स्नान आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ जीवन में भी उन्नति और सकारात्मक ऊर्जा के लिए शुभ माना जाता है। यही वजह है कि शाही स्नान के दिन लाखों, लाख भारतीय कुंभ के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं।

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धीरज बसाक
हिंदू धर्म के सबसे पवित्र सांस्कृतिक पर्व कुंभ में होने वाले शाही स्नान को सबसे अहम अनुष्ठान और सबसे पवित्र घटना माना जाता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक यह स्नान पापों से मुक्ति, आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक है। शाही स्नान को राजयोग स्नान भी कहा जाता है। शाही स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है। इन मान्यताओं के कारण ही शाही स्नान का दिन कुंभ मेले में सबसे संवेदनशील दिन भी होता है, क्योंकि इस दिन देशभर के 13 अखाड़ों के साधु-संत शाही स्नान के लिए एकत्र होते हैं। यही कारण है कि अंग्रेजों के ज़माने से लेकर आज तक प्रशासन के लिए साधु-संतों का शाही स्नान सबसे ज्यादा चिंता का कारण बनता रहा है।
अंग्रेजों ने 19वीं सदी से ही कुंभ मेले के प्रबंधन के लिए विशेष व्यवस्थाएं कीं। आज के समय में कुंभ की भीड़ का प्रबंधन करने के लिए ड्रोन सर्विलांस, सीसीटीवी कैमरा, ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन और ग्रीन कॉरिडोर का उपयोग किया जाता है। आगामी 14 जनवरी से शुरू होने वाला प्रयागराज महाकुंभ तो शाही स्नान की दृष्टि से इसलिए भी बेहद संवेदनशील है, क्योंकि यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है। इसलिए प्रयागराज के महाकुंभ के दौरान शाही स्नान का कुछ अलग ही और विशेष महत्व है। माना जाता है कि संगम में शाही स्नान के दौरान डुबकी लगाने वाले के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
शाही स्नान समूचे कुंभ आयोजन का एक सबसे विशिष्ट हिस्सा होता है। इस दिन विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत अपनी भव्य शोभा यात्रा के साथ शाही स्नान के लिए स्नान घाट पहुंचते हैं। वहां ये साधु-संन्यासी अमृतमयी जल में डुबकी लगाते हैं। पहले कौन स्नान करे, इस बात को लेकर भी अखाड़ों में बहस छिड़ जाती है। इसलिए कई महीनों पहले से ही प्रशासन अखाड़ा परिषद के बीच बैठकर शांति से यह तय कर लेता है कि कौन अखाड़ा पहले स्नान करेगा? ताकि एक ऐन मौके पर किसी तरह की गफलत न हो। साधु-संतों के अखाड़ों को प्रशासन भी बड़ी विनम्रता से संभालता है; क्योंकि साधु-संत हिंदू धर्म की परंपराओं और सनातन संस्कृति के संरक्षक माने जाते हैं। इस दिन अलग-अलग अखाड़ों के साधु-संत अपनी पारंपरिक वेशभूषा और धर्म ध्वजा के साथ शाही स्नान के लिए पहुंचते हैं। शाही स्नान को भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का अद्वितीय पर्व माना जाता है।
शाही स्नान का महत्व इसलिए भी बहुत है, क्योंकि कुंभ का आयोजन ब्रह्मांडीय घटनाओं के आधार पर होता है, जब सूर्य, चंद्रमा और गुरु ग्रहों की स्थिति विशिष्ट होती है। उसी समय शाही स्नान आयोजित होता है। यह स्नान आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ जीवन में भी उन्नति और सकारात्मक ऊर्जा के लिए शुभ माना जाता है। यही वजह है कि शाही स्नान के दिन लाखों, लाख भारतीय कुंभ के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। आमतौर पर नागा साधु सबसे पहले शाही स्नान के तहत डुबकी लगाते हैं। माना जाता है कि शैव अखाड़े के ये साधु-संत हिंदू धर्म के अग्रिम रक्षक हैं, इसलिए आमतौर पर सबसे पहले स्नान का हक उन्हें ही दिया जाता है। लेकिन यह हमेशा जरूरी नहीं होता, कई बार किसी दूसरे अखाड़े के संतों को भी पहली डुबकी लगाते देखा जा सकता है। साल 2017 में यूनेस्को ने कुंभ मेले को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का दर्जा दिया है। यह मान्यता कुंभ मेले की सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक महत्ता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली स्वीकृति है।
कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण धार्मिक आयोजन है, जिसमें करोड़ों लोग शामिल होते हैं। यह भारतीय संस्कृति, सनातन धर्म और परंपराओं का अनूठा संगम है। कुंभ में जाति, धर्म और सामाजिक स्तर विलीन हो जाते हैं। यह सभी को एक मंच पर लाता है। कुंभ हजारों साल पुरानी परंपराओं से जुड़ा है। यही वजह है कि इसमें शामिल होने के लिए और इसका अपनी आंखों से दर्शन करने के लिए हर कुंभ में लाखों, लाख विदेशी सैलानी भी आते हैं। इसे कवर करने के लिए पूरी दुनिया से मीडिया की टीमें और कई हजार पत्रकार आते हैं। कुंभ के आयोजन से आयोजन स्थलों के लोगों को आर्थिक लाभ होता है।
कुल मिलाकर कुंभ हर पहलू से मानवता की भलाई करता है। आज के समय कुंभ मेला अपनी भव्यता, दिव्यता और धार्मिक आस्था के कारण सिर्फ भारतीय लोगों के बीच ही नहीं बल्कि विदेशियों के बीच भी श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक बन गया है। हर कुंभ मेले में दुनियाभर के विभिन्न धर्मों के लोग नजदीक से इसकी आध्यात्मिक अनुभूति के लिए भारत आते हैं। दुनियाभर के लोग हिंदुओं की इस आस्था को बेहद सम्मान से देखते हैं। इ.रि.सें.

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