मानव-वन्य जीव सामंजस्य की तरफ बढ़े सार्थक कदम
साल 2024 वन्य जीवन संरक्षण के क्षेत्र में भारत के लिए महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। चीतों की पुनर्स्थापना, बाघों और एशियाई शेरों की संख्या में वृद्धि, और हिम तेंदुओं के संरक्षण में सुधार के साथ-साथ मानव-वन्यजीव संघर्ष के समाधान के लिए भी कदम उठाए गए। भारत ने वन्य जीवन के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहल की है। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप भारत में वन्य जीवन का संरक्षण और बढ़ी हुई जागरूकता दिखाई दी।
के.पी. सिंह
वन्य जीवन के लिहाज से साल 2024 कई महत्वपूर्ण घटनाओं और उपलब्धियों का साल माना गया। मसलन साल 2024 में देश में चीतों की पुनर्स्थापना का प्रयास किया गया। मध्य प्रदेश स्थित कुनो नेशनल पार्क में चीता परियोजना 2024 देश ही नहीं, पूरी दुनिया में चर्चा का विषय रही। हालांकि, इस साल कई चीतों की मौत हो गई, जिससे उजागर हुआ कि इस प्रोजेक्ट की चुनौतियां कितनी विकट हैं? लेकिन सरकार ने चीतों के संरक्षण और अनुकूलन के लिए सभी प्रयास जारी रखे। नतीजतन भारत अब इनकी बेहतर निगरानी और प्रबंधन के लिए किसी हद तक तकनीकी विशेषज्ञता हासिल कर चुका है।
साल 2024 गुजरात के गिर वनों में एशियाई शेरों की संख्या में वृद्धि हुई। यह हमारे सफल संरक्षण प्रयासों का नतीजा है। एशियाई शेरों की तरह ही प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलिफेंट के अंतर्गत बाघों और हाथियों की संख्या को स्थिर बनाये रखने के लिए भारत सरकार ने कुछ गैर-सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर इस साल कई सकारात्मक कदम उठाए हैं। यही कारण है कि बाघों की संख्या में इस साल बढ़ोतरी देखी गई है। इस समय देश में बाघों की संख्या कुल 3682 हैं।
इस संख्या से पता चलता है कि 2018 और 2022 के बीच बाघों की आबादी में 24.1 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है। क्योंकि 2018 में बाघों की संख्या 2967 थी। बहरहाल, भारत में दुनिया के 75 फीसदी बाघ हैं और सबसे ज्यादा बाघ मध्य प्रदेश में हैं। नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में 785, कर्नाटक में 563, उत्तराखंड में 560, उत्तर प्रदेश में 205 और बिहार में इनकी संख्या 54 है। हालांकि, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में बाघों की संख्या में कुछ गिरावट दर्ज की गई है। साथ ही भारत में 18 टाइगर रिजर्व ऐसे हैं, जहां बाघों की संख्या 10 से भी कम है। अगर किसी एक रिजर्व में सबसे ज्यादा बाघों की बात करें तो देश में सबसे ज्यादा बाघ उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हैं, जहां इनकी संख्या 260 है।
हालांकि, हाथियों के संरक्षण के लिए भी कई नई परियोजनाएं शुरू की गई हैं। लेकिन हाथियों का इंसानों के साथ हाल के सालों में संघर्ष काफी ज्यादा बढ़ गया है। इस साल मानव-वन्य जीव संघर्ष खास तौर पर चिंता का विषय रहा। महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा और असम ये चार ऐसे राज्य हैं, जहां हाथियों और तेंदुओं की इंसानों के साथ संघर्ष की घटनाएं बढ़ी हैं। इन संघर्षों को रोकने के लिए सरकार ने स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर बायोफेंसिंग और बफर जोन जैसे तरीकों पर काम किया है। उत्तराखंड, असम और पश्चिम बंगाल में हाथी दांत, बाघ की खाल और अन्य प्रजातियों की तस्करी रोकने के लिए सख्त कदम उठाये गये हैं। इस साल भारत सरकार ने वन्य जीव संरक्षण के लिए दक्षिण एशियाई देशों के साथ मिलकर, ‘साउथ एशिया वाइल्ड लाइफ इन्फोर्समेंट नेटवर्क’ के तहत बेहतर निगरानी तंत्र विकसित किया है।
बाघों, हाथियों और एशियाई शेरों के सफल और कुशल संरक्षण के बाद भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा 2019 में शुरू किया गया हिम तेंदुआ का इस साल हुआ सर्वेक्षण बताता है कि हिम तेंदुओं की संख्या में अब मामूली ही सही, वृद्धि हो रही है। इस साल देश में हिम तेंदुओं की कुल संख्या 718 थीं, जो 6 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में फैली हुई है। देश में सबसे ज्यादा हिम तेंदुए लद्दाख में 477 हैं। इसके बाद उत्तराखंड में 124, हिमाचल प्रदेश में 51, अरुणाचल प्रदेश में 36, सिक्किम में 21 और जम्मू-कश्मीर में कुल 9 हैं। अगर सिर्फ तेंदुओं की बात करें तो भारत में इस समय तेंदुओं की सख्या 13,874 हैं, जिनमें सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में 3907 हैं। मध्य प्रदेश के बाद तेंदुओं की ठीकठाक संख्या महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी हैं। महाराष्ट्र में 1985 और कर्नाटक में 1879 हैं।
भारत में रामसर स्थलों की संख्या में भी इस साल इजाफा हुआ है। रामसर स्थल दरअसल आर्द्रभूमि क्षेत्र होते हैं, जो जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए जरूरी हैं। वास्तव में आर्द्र भूमि संरक्षण हेतु साल 1971 में ईरान के रामसर में एक सम्मेलन हुआ था, जिसके समझौते साल 1975 से प्रभावित हुए थे। भारत के कुल 85 रामसर स्थल 13,58,068 हेक्टेयर क्षेत्र कवर करता है। इस साल जिन 10 नये रामसर स्थलों को संरक्षण में शामिल किया गया। उसमें 3 कर्नाटक में, 4 तमिलनाडु में, 2 बिहार में और 1 मध्य प्रदेश में है। इन्हें फरवरी, 2024 से अगस्त, 2024 के बीच शामिल किया गया। इनके नाम हैं- नंजरायण पक्षी अभ्यारण्य तमिलनाडु, काजुवैली पक्षी अभ्यारण्य तमिलनाडु और तमिलनाडु में ही कराइवेटी पक्षी अभ्यारण्य तथा लांगवुड शोला रिजर्व वन क्षेत्र भी शामिल हैं। इस तरह साल 2024 वन्य जीवन के लिहाज से काफी शानदार साल रहा। इ.रि.सें.