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मानवीय क्षति के कारकों की गहरी पड़ताल जरूरी

04:00 AM Apr 01, 2025 IST

रिपोर्ट से पता चला है कि बीमार लोगों के शरीर में बहुत-सी भारी धातु पाई गई है। यही नहीं इन धातुओं की मात्रा सामान्य से कई गुना ज्यादा मिली। विशेषज्ञों के अनुसार ये भारी धातुएं जहर जैसा काम करती हैं।

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पंकज चतुर्वेदी

दो महीने पहले कश्मीर के राजौरी जिले के गांव बड्डाल में हुई 17 लोगों की संदिग्ध मौत की गुत्थी अब और उलझती जा रही है। सीएसआईआर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च प्रयोगशाला ने गहन जांच के बाद यह स्पष्ट किया कि मौत का कारण ग्रामीणों के शरीर में पाया गया क्लोरफेनेपायर नामक जहरीला रसायन था। इस गांव में 16 लोग ऐसे भी थे जो बीमार हुए, लेकिन डॉक्टर्स ने उन्हें मौत के मुंह से खींच लिया। लोगों का इलाज करने वाले पीजीआई, चंडीगढ़ के डॉक्टर्स का कहना था कि उन्होंने एंटीडोट के रूप में एट्रोपिन दवा का प्रयोग किया, और इसने 100 प्रतिशत परिणाम दिए। हालांकि, एट्रोपिन का इस्तेमाल ऑर्गेनोफॉस्फोरस विषाक्तता के लिए एक प्रभावी उपचार है, लेकिन आश्चर्यजनक यह है कि किसी भी बीमार या मृत व्यक्ति के शरीर में ऑर्गेनोफॉस्फोरस विषाक्तता के लक्षण नहीं दिखे। अब, जिस क्लोरफेनेपायर को मौत का कारण बताया जा रहा है, उसका यहां दूर-दूर तक कोई उपयोग नहीं होता।
समझना होगा कि क्लोरफेनेपायर एक व्यापक स्पेक्ट्रम कीटनाशक है जिसका उपयोग दीमक और फसलों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। मलेरिया के संभावित उपचार के रूप में भी इसको लेकर प्रयोग चल रहे हैं। क्लोरफेनेपायर सूक्ष्मजीवी रूप से उत्पादित यौगिकों के एक वर्ग से प्राप्त होता है, जिसे हैलोजेनेटेड पाइरोल्स के नाम से जाना जाता है। क्लोरफेनेपायर एक सहयोगी -कीटनाशक है, जिसका अर्थ है कि यह एक अन्य रसायन में सक्रिय होकर कीटों को मारता है। क्लोरफेनेपायर का सक्रिय मेटाबोलाइट ट्रालोपायरिल है, जो कीटों के माइटोकॉन्ड्रिया में एटीपी के उत्पादन को बाधित करता है। इससे कीट की कोशिका मर जाती है और अंततः जीव मृत्यु हो जाती है। डब्ल्यूएचओ द्वारा इसकी पहचान एक मध्यम विषाक्त कीटनाशक के रूप में की गई है, लेकिन विषाक्त रोगियों की मृत्यु दर बहुत अधिक है।
क्लोरफेनेपायर इंसान के साथ-साथ पक्षियों, मछलियों और जलीय अकशेरुकी जीवों के लिए अत्यधिक विषैला है। यदि इंसान पर इसका असर हो तो पहले पसीने आते हैं फिर तेज बुखार, रैबडोमायोलिसिस तथा तंत्रिका तंत्र के लक्षणों का बिगड़ना शुरू हो जाता है। वैसे बड्डाल के मरीजों में यह सभी लक्षण देखे गए थे। क्लोरफेनेपायर का उपयोग व्यावसायिक रूप से दीमक नियंत्रण और फसल सुरक्षा के लिए किया जाता है। मलेरिया वेक्टर नियंत्रण में इसके संभावित उपयोग का भी मूल्यांकन किया गया है। प्रयोगशाला अध्ययनों में क्लोरफेनेपायर को बहु-कीटनाशक-प्रतिरोधी मच्छरों के विरुद्ध प्रभावी पाया गया।
हालांकि, जब बड्डाल में बीमारी का हो-हल्ला हुआ तो एम्स दिल्ली सहित कई शीर्ष संस्थाओं की टीम वहां पहुंची। केन्द्रीय मंत्री ने जनवरी के दूसरे हफ्ते में ही कह दिया था कि मरने वालों के शरीर में कैडमियम की भारी मात्रा पाई गई और मौत का कारण यही है। वहीं 24 जनवरी को पीजीआई चंडीगढ़ की रिपोर्ट से पता चला है कि बीमार लोगों के शरीर में बहुत-सी भारी धातु पाई गई है। यही नहीं इन धातुओं की मात्रा सामान्य से कई गुना ज्यादा मिली। विशेषज्ञों के अनुसार ये भारी धातुएं जहर जैसा काम करती हैं। उसके बाद मरीजों के नमूनों को केंद्रीय एफएसएल, डीआरडीओ ग्वालियर व अन्य प्रतिष्ठित प्रयोगशालाओं को भी भेजा गया था।
इस बीमारी के बाद जिले की सभी कीटनाशक और कृषि सामग्री की बिक्री करने वाली दुकानें सील की गईं, वहां से नमूने उठाए गए लेकिन कहीं से भी न भारी धातु और न ही क्लोरफेनेपायर के कोई अवशेष मिले। यही नहीं, इस रसायन को आनलाइन स्टोर से खरीदने के भी कोई प्रमाण नहीं मिले। बड्डाल गांव हिमालय की पीर पंजाल शृंखला की गोद में है और यहां से बहुत सी जल धाराएं बहती हैं। चिनाब की सहायक नदी आन्सी, बड्डाल से होकर गुजरती है। सबसे बड़ी संभावना है कि पानी के माध्यम से भारी धातु इंसान के शरीर में पहुंची। विदित हो बड्डाल और उसके आसपास बहुत-सी नदियां और छोटी सरिताएं हैं। इसके अलावा चंदन, सुख, नील, हानडु सहित कई तालाब हैं। यहां की बड़ी आबादी पानी के लिए झरने या इन्हीं नैसर्गिक सरिताओं पर निर्भर है। चूंकि इस इलाके में कोयला, चूना, बाक्साइट, लौह अयस्क और बेन्टोनाइट जैसे अयस्क मिलते हैं और अवैध खनन यहां की बड़ी समस्या रहा है। ऐसे में खनन अवशेषों के जल धाराओं में मिलने से और उस जल के स्वयं से इस त्रासदी की आगमन की एक संभावना है। शक यह भी किया जा रहा है कि क्या कोई एजेंसी या फार्मा कंपनी गोपनीय और अवैध तरीके से क्लोरफेनेपायर के मलेरिया और मच्छर पर प्रयोग कर रही है और इसके लिए उसने इस गुमनाम गांव के गरीब श्रमिकों को चुना?
कड़वा सच यह भी है कि देश के सुदूर, छोटे कस्बों तक गैर प्रामाणिक व विदेश में बने सस्ते कीटनाशकों की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है। कम दाम और अच्छे नतीजों के आश्वासन पर किसान इन्हें लेता है और उचित परिणाम न देने पर कुछ बोल नहीं पाता, क्योंकि उसके पास इसकी खरीद का कोई प्रमाण होता नहीं।
केंद्र और राज्य सरकार के सामने चुनौती बीमारी के असली कारणों को पहचानने की है। बहुत से लोगों को आशंका है कि कहीं सीमा पार से या किसी देश विरोधी ने रासायनिक आतंकवाद का कोई प्रयोग न किया हो।

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