मातृभूमि की सुगंध
भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण जी को आदेश दिया कि लंका जाकर विभीषण का राजतिलक संपन्न कराओ। लक्ष्मण लंका पहुंचे तो स्वर्णनगरी की अनूठी शोभा तथा चमक-दमक ने उन्हें मोह लिया। लंका की वाटिका के तरह-तरह के सुगंधित पुष्पों को वह काफी समय तक निहारते रहे। विभीषण का विधिपूर्वक राज-तिलक संपन्न कराने के बाद वे श्रीराम के पास लौट आए। उन्होंने श्रीराम के चरण दबाते हुए कहा, ‘महाराज लंका तो अत्यंत दिव्य सुंदर नगरी है। मन चाहता है कि मैं कुछ समय के लिए लंका में निवास करूं। आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा है।’ श्रीराम लक्ष्मण का लंका नगरी के प्रति आकर्षक देखकर बोले, ‘लक्ष्मण यह ठीक है कि लंका सचमुच स्वर्गपुरी के समान आकर्षक है, प्राकृतिक सुषमा से भरपूर है, किंतु यह ध्यान रखना कि अपनी मातृभूमि अयोध्या तो तीनों लोकों से कहीं अधिक सुंदर है। जहां मानव जन्म लेता है, वहां की मिट्टी की सुगंध की किसी से तुलना नहीं की जा सकती है।’ लक्ष्मण अपनी जन्मभूमि अयोध्या के महत्व को समझ गए। उन्होंने कहा ‘प्रभु वास्तव में हमारी अयोध्या तीनों लोकों से न्यारी है।’
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प्रस्तुति : डॉ. जयभगवान शर्मा