मां की आखिरी ख्वाहिश
उसे अपने सभी प्रश्नों का हल मिल गया था, मां ने अपनी आखिरी सांस में भी आलोक का नाम लिया था, तो वह समझ गया था कि मां के मन में आलोक के लिए कितना प्यार था और बात रही भविष्य के संबंधों की, तो रह-रह कर मां की आखिरी बात उसके कानों में गूंज रही थी- ‘तुम और आलोक हमेशा प्यार से रहना।’
आशमा कौल
मां की तस्वीर के आगे सिर झुकाए और नैन मूंदे खड़ा अभय, अपने भीतर उठ रहे झंझावात पर काबू पाने की कोशिश कर रहा है। आज मां को यह लोक त्यागे पूरा एक महीना हो चुका है लेकिन आंखों ने बहना नहीं छोड़ा है।
एक वर्ष के भीतर ही पहले पिता जी और अब मां का चले जाना, जैसे उसकी दुनिया ही खाली हो गई। आज याद आ रहे हैं उसे बचपन के दिन जब वह मां, पिता जी और बड़े भाई आलोक के साथ खूब मस्ती किया करता था। मां दोनों बेटों का प्यार देख-देखकर निहाल होती और दोनों की बलैया लिया करती कि उनके प्यार को किसी की नज़र न लग जाए।
बचपन के दिन कब चिड़िया जैसे फुर्र से उड़ गए, पता ही न चला। दोनों भाइयों का विवाह हो गया और दोनों अपनी-अपनी घर-गृहस्थी में व्यस्त हो गए। मां और पिता जी छोटे बेटे अभय के साथ रह रहे थे और हर छोटे-बड़े दिनों में आलोक भी परिवार के संग छोटे भाई के घर आ जाता और सब मिल-जुलकर त्योहार का आनंद लेते। लेकिन आए दिन बातों-बातों में आलोक सबको जताता कि मां हमेशा से अभय को ज्यादा प्यार करती रही है और आज भी ऐसा ही है। आलोक के इस ताने को अभय मज़ाक में ही लेता और हंस कर रह जाता।
लेकिन मां आलोक को समझाती कि यह उसकी गलतफहमी है, मां का प्यार तो सब बच्चों में बराबर बंटता है, पर हां, क्योंकि अभय बचपन में बहुत कमजोर था इसलिए उसकी ओर थोड़ा अधिक ध्यान जाना स्वाभाविक ही था। यह सब जानते हुए भी न जाने आलोक के मन में यह बात कैसे घर कर गयी थी कि मां अभय को उससे ज्यादा चाहती है और वह अपना रोष किसी न किसी रूप में प्रकट कर ही देता था।
आलोक की इन बातों का असर अब दोनों परिवारों पर भी पड़ने लगा और आपसी रिश्तों की मिठास धीरे-धीरे कम होने लगी। अब आलोक और उसके परिवार का छोटे भाई के घर आना भी कम हो गया। वह गर्मी की छुट्टियों में बच्चे लेकर कभी शिमला तो कभी मसूरी निकल जाता और मां हर छुट्टी में उन सबका इंतजार करती रहती। मां के परेशान होने पर पिता जी उसे समझाते—
‘अब आलोक के बच्चे बड़े हो रहे हैं और उनकी ख्वाहिशें भी तो आलोक को ही पूरी करनी हैं, वह हमेशा तो तुम्हारी बगल में नहीं बैठा रहेगा।’
मां आंसू के घूंट पी कर चुप हो जाती लेकिन मन ही मन दुखी थी क्योंकि वह आलोक के बदलते मिज़ाज़ से परेशान थी। मां महसूस कर रही थी कि आलोक और अभय के रिश्तों में खिंचाव आने लगा है और इसका कारण है आलोक का हर बात पर अभय को छोटा दिखाना और उसकी खिल्ली उड़ाना।
अभय तो चुप रहता लेकिन उसकी पत्नी राधा को यह सब अच्छा नहीं लगता था फिर भी वह जेठ-जेठानी की खातिरदारी में कभी कोई कमी नहीं रखती थी और अपने मन की बात कभी ज़ाहिर नहीं होने देती थी।
दिवाली का दिन था, अभय और आलोक के बच्चे आतिशबाज़ी में लगे थे। तभी अचानक दोनों के बेटों में कुछ बहस हुई तो दादा जी बोले –
‘अरे बच्चों बहस क्यों कर रहे हो, प्यार से खेलो, पटाकों पर झगड़ा नहीं करते, मैं और ले आऊंगा।’
दादा जी की बात को बीच में ही टोकते हुए आलोक का बेटा चिल्ला कर बोला, ‘दादा जी आप चुप रहो, यह मेरा और भैया का मामला है, यह हमेशा ऐसा ही करता है लेकिन मैं अपने पापा की तरह दब्बू नहीं हूं कि इस पक्षपात को सह लूंगा।’ दादी जो वहां खड़ी यह तमाशा देख रही थी, पोते की इस बदसलूकी से गुस्सा होकर उसने उसे एक थप्पड़ दिखाया ही था कि बड़ी बहू ने सासु मां का हाथ पकड़ लिया– ‘बहुत हुआ मां जी, मेरे बच्चे आपके यहां आपका थप्पड़ खाने नहीं आते, मैं तो आपके पक्षपात से पहले ही वाकिफ हूं और आज तो अपनी आंखों से देख भी लिया।’
‘बहू तुम्हें गलतफहमी हो गई है, तुम्हारे बेटे ने आज दादा जी से बदतमीजी की है तो कल वह तुम्हारे साथ भी करेगा, इसलिए उसे समझाना ज़रूरी था’ –मां ने अपने आंसू छिपाते हुए कहा।
‘चलो जी, बस मना ली हमने खूब दीपावली, अब और ज़लील होना है या घर चलें।’ –बड़ी बहू बच्चों को खींचते और पैर पटकते हुए गुस्से में बुदबुदाती हुई घर से बाहर निकल गई।
‘अरे बहू बड़े दिन में ऐसे नहीं जाते हैं, छोटी बहू तुम ही इसे ज़रा समझाओ।’ -सासु मां रुआंसी होकर बोली तो छोटी बहू ने समझाते हुए कहा- ‘भाभी आज बड़ा दिन है, मैंने सबके लिए खाना बनाया है, आज बड़े दिन खाए बिना जाने नहीं दूंगी।’
‘यह खाना तुम्हें ही मुबारक हो, ऐसा खाना तो मैं अपनी कामवालियों में बांट देती हूं।’ –लगभग चिल्लाते हुए आलोक की पत्नी अपने पति और बच्चों के साथ चली गई।
सबका मन बहुत खराब हुआ और मां तो बहुत देर तक रोती रही, उसे लग रहा था कि इस सबकी जिम्मेदार वही है लेकिन पिता जी ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा– ‘आलोक की मां शांत हो जाओ, इस सब में तुम्हारी कोई गलती नहीं है, तुम बच्चों को तमीज़ नहीं सिखाओगी तो और कौन सिखाएगा।’
‘लेकिन मेरा मन घबरा रहा है, मेरे दोनों बच्चों के प्यार को नज़र लग गई है। बड़ी बहू ने भी हद कर दी, अपने बेटे को समझाने की बजाय वह मुझ पर ही भड़कने लगी।’ –मां सिसकियां भरते हुए बोल रही थी।
अभय जो अभी तक चुप बैठा था, बोल पड़ा, ‘मां जी आप फिक्र न करें, मैं आलोक भैया और भाभी को प्यार से समझाऊंगा और मनाऊंगा।’
मां ने अभय के माथे को प्यार से चूमा और वह शांत हो गई।
कुछ दिन भाइयों के बीच बोलचाल बंद रही और फिर एक दिन अभय ने आलोक से फोन पर बात की और बिना किसी गुनाह के ही उसने भाई-भाभी से माफी मांगी तो मामला कुछ संभल गया। उन्हीं दिनों पूरे शहर में कोरोना का आतंक फैल गया था। हर एक परिवार कोरोना वायरस के इन्फेक्शन की चपेट में था। आग की तरह फैलते इस वायरस से लोग भयभीत थे। अस्पतालों में लोग लंबी-लंबी कतारों में लगकर इस वायरस के निगेटिव या पॉज़िटिव होने का परीक्षण करवा रहे थे।
अभय भी इस वायरस से अछूता न रहा, वह भी दफ्तर से इस वायरस को घर तक ले आया और पिता जी और पत्नी भी उसकी चपेट में आ गए। उधर दूसरी तरफ आलोक के घर में भी उसकी पत्नी और बेटे को भी कोरोना पॉज़िटिव की रिपोर्ट मिली। हालात यह थे कि हर कोई मास्क लगा कर भी किसी से बात करने से घबरा रहा था। एक ही परिवार के सदस्य अलग-अलग कमरों में पड़े हुए वीडियो से बात कर रहे थे। दवाइयां और वेक्सिनेशन लेने के बावजूद सबकी जान पर संकट बना हुआ था।
ऐसे संकट के समय में मां शायद ये सब देखकर घबरा गई और एक दिन चक्कर खा कर गिर गई। दादी और पोता एक ही कमरे में थे उन दिनों बेटे और पोते ने दिन-रात जाग कर दादी की खूब सेवा की। घर के बाकी लोग भी कुछ समय के बाद ठीक हो गए, तब दादी का कोरोना परीक्षण घर पर ही करवाया गया लेकिन रिपोर्ट निगेटिव आई। दो दिन दादी स्वस्थ लग रही थी लेकिन तीसरे दिन अचानक ही उनका आक्सीजन का स्तर बहुत नीचे चला गया। वह अभय के हाथ अपने हाथ में लेकर अपनी सांसें निकलने से पहले इतना ही बोल पायी, ‘अभय अब मैं जा रही हूं।’
अभय रोते हुए इतना ही बोला– ‘मां तुम ठीक हो जाओगी, डॉक्टर आने ही वाला है।’
‘नहीं मेरी बात सुनो, तुम मुझसे वादा करो कि तुम और आलोक हमेशा प्यार से रहोगे, तभी मैं शांति से जा पाऊंगी– बहुत मुश्किल से कह पाई मां और डॉक्टर के आने से पहले ही सबको रोता-बिलखता छोड़ गई। घर में चीख पुकार मच गई, अभय ने आलोक को फोन करके बताया– ‘भाई मां नहीं रही, जल्दी आ जाओ।’
दूसरी तरफ से आवाज़ आई- ‘तुम्हारी भाभी ठीक नहीं है, उसे तेज़ बुखार है और हमारा निकलना मुश्किल है इसलिए तुम्हें जैसे ठीक लगे वैसे कर लो और पिता जी को मेरी तरफ से भी तसल्ली दे देना।’
बड़े भाई की बात सुनकर अभय के पैरों तले जैसे जमीन निकल गई, उसने तो ऐसा सपने में भी नहीं सोचा था कि वह अंतिम समय में मां का मुंह भी देखने नहीं आएगा। ऐसे समय में अपने नहीं तो कोरोना की बदौलत दूर के भी नहीं आए और पड़ोसियों की मदद से ही चार कंधे पूरे हो पाए। मां की चिता को मुखाग्नि छोटे बेटे अभय ने दी और सारे क्रियाकर्म भी उसी ने किए। वह अपने बड़े भाई की इस हरकत से बहुत हैरान था। अस्थि विसर्जन के समय भी आलोक ने अपने पत्नी की बीमारी की दुहाई दी और घाट पर नहीं आया।
समय को कोई रोक सका है क्या। यह मुश्किल का दौर भी निकल गया लेकिन यह समय अभय के भीतर एक खालीपन छोड़ गया। उसके मन में कई सवाल तैरते रहते जिनका जवाब उसे नहीं मिल पा रहा था, वह सोचता कि क्या सच में मां उसे आलोक से ज्यादा प्यार करती थी, क्या इसी वजह से आलोक मां की मृत्यु पर नहीं आया। उसने अंतिम समय पर भी मां का मुंह नहीं देखा और इस सबके बाद मुझे आलोक से संबंध रखना चाहिए कि नहीं?
अभय मां की तस्वीर के सामने खड़ा इन प्रश्नों के झंझावात से गुज़र रहा था कि अचानक मां की तस्वीर से एक फूल अभय की हथेली में आ गिरा और वह अपनी पिछली यादों से बाहर आ गया।
उसे अपने सभी प्रश्नों का हल मिल गया था, मां ने अपनी आखिरी सांस में भी आलोक का नाम लिया था, तो वह समझ गया था कि मां के मन में आलोक के लिए कितना प्यार था और बात रही भविष्य के संबंधों की, तो रह-रह कर मां की आखिरी बात उसके कानों में गूंज रही थी- ‘तुम और आलोक हमेशा प्यार से रहना।’
अभय की आंखों से आंसू की दो बूंदें टपकी और वह बुदबुदाया- ‘मां अगर तुमने आलोक भैया को माफ़ कर दिया तो मैं भी अपने मन को उसकी तरफ से साफ करता हूं और यह कसम खाता हूं कि तुम्हारी अंतिम इच्छा को मैं हर कीमत पर पूरा करूंगा।’