महान आदर्शों के सामाजिक विमर्श
सुदर्शन
प्रकाश मनु द्वारा लिखित पुस्तक ‘फिर आए राम अयोध्या में’ पढ़ते हुए स्पष्ट होता है कि लेखक ने रामायण के पात्रों और उनके आदर्शों को समाज के विभिन्न पहलुओं से जोड़ते हुए प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक में भक्ति, ज्ञान, धर्म, और योग के विषयों का गहन निरूपण किया गया है।
रामायण के सात काण्डों का आधार लेकर समाज के आदर्शों को समझाने का प्रयास किया गया है। लेखक ने राम के चरित्र और उनके आदर्शों को ऐसे रूप में प्रस्तुत किया है, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि मानवता, नीति और सामाजिकता से भी जुड़े हुए हैं।
श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिनके द्वारा किए गए कार्यों में सत्यनिष्ठा, दया, त्याग, और एक आदर्श राजधर्म का पालन प्रमुख रूप से देखने को मिलता है। उनका जीवन हमें परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराता है।
पुस्तक में श्रीराम के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, जैसे उनके बाल्यकाल, पिता की आज्ञा से राज का त्याग, भाइयों के प्रति प्रेम, जातिवाद से ऊपर उठकर हर किसी के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार, और सीता की अग्नि परीक्षा में उनका निष्कलंक विश्वास। इन प्रसंगों से यह सिद्ध होता है कि श्रीराम एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे।
श्रीराम को नायक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिनमें शील, शक्ति और सौंदर्य का अद्भुत समन्वय है। पुस्तक में भक्ति, नीति, धर्म, राजनीति, परिवार, गुरु-शिष्य संबंध, राजा-प्रजा और स्वामी-सेवक जैसे विभिन्न पहलुओं का गहन विश्लेषण किया गया है। इन सभी विषयों के माध्यम से श्रीराम के जीवन के आदर्श और उनके विविध गुणों को विस्तार से चित्रित किया गया है।
‘फिर आए राम अयोध्या में’ पुस्तक न केवल रामायण के घटनाक्रमों का वर्णन करती है, बल्कि यह हमारे सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन चिंतन करने के लिए प्रेरित करती है। यह पुस्तक पाठकों को परिस्थिति में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
पुस्तक : फिर आए राम अयोध्या में लेखक : प्रकाश मनु प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 255 मूल्य : रु. 250.