महाकुंभ परंपरा के इतिहास में दर्ज रोचक घटनाएं
प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में महाकुंभ का आयोजन आध्यात्मिक महत्व का है, जहां श्रद्धालु विशेष स्नान-योग में भाग लेते हैं। यह पर्व देव-दानवों की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है, जो अमृत प्राप्ति के संघर्ष को दर्शाता है।
डॉ. श्रीगोपाल नारसन
प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में जब भी महाकुम्भ या कुंभ होता है, श्रद्धालु बड़ी संख्या कुंभ स्नान करते हैं। इन स्थानों पर प्रति बारहवें वर्ष महाकुम्भ का आयोजन होता है। हरिद्वार और प्रयागराज में दो महाकुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। प्रयागराज में इससे पूर्व सन् 2013 में महाकुम्भ में हुआ था। यह महाकुम्भ मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है। मकर संक्रांति के इस योग को ‘महाकुम्भ स्नान-योग’ भी कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलमय पर्व माना जाता है।
महाकुंभ के आयोजन की प्रचलित पौराणिक कथाओं में से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूंदें गिरने को लेकर है। इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने उन्हें दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र ‘जयंत’ अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के निर्देश पर दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ लिया। इस दौरान पृथ्वी के चार स्थानों प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक पर कलश से छलक कर अमृत बूंदें गिरी थीं। अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध हुआ था। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं। इस कारण कुंभ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं।
जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय महाकुंभ का योग होता है अर्थात् जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहां-जहां अमृत बूंद गिरी थी, वहां-वहां महाकुंभ होता है।
महाकुम्भ में अखाड़ों के स्नान का भी विशेष महत्व है। सर्वप्रथम आगम अखाड़े की स्थापना हुई कालांतर में विखंडन होकर अन्य अखाड़े बने। 547 ईसवी में अभान नामक सबसे प्रारम्भिक अखाड़े का लिखित प्रतिवेदन हुआ था। 904 ईसवी में निरंजनी अखाड़े का गठन हुआ था जबकि 1146 ईसवी में जूना अखाड़े का गठन हुआ। 1398 ईसवी में तैमूर, हिन्दुओं के प्रति सुल्तान की सहिष्णुता के विरुद्ध दिल्ली को ध्वस्त करता है और फिर हरिद्वार मेले की ओर कूच करता है और हजारों श्रद्धालुओं का संहार करता है। 565 ईसवी में मधुसूदन सरस्वती द्वारा दसनामी व्यवस्था की गई और लड़ाका इकाइयों का गठन किया गया। ईसवी 1684 में फ़्रांसीसी यात्री तवेर्निए ने भारत में 12 लाख हिन्दू साधुओं के होने का अनुमान लगाया था। ईसवी 1690 में नासिक में शैव और वैष्णव साम्प्रदायों में संघर्ष की कहानी आज भी रोंगटे खड़े करती है, जिसमें हजारों लोग मरे थेे। 1760 ईसवी में शैवों और वैष्णवों के बीच हरिद्वार मेले में संघर्ष के तहत सैकड़ों लोगों के मरने का इतिहास है। 1780 ईसवी मे ब्रिटिशों द्वारा मठवासी समूहों के शाही स्नान के लिए व्यवस्था की स्थापना हुई। सन् 1820 में हरिद्वार मेले में हुई भगदड़ से 430 लोग मारे गए। 1954 में चालीस लाख लोगों ने प्रयागराज में आयोजित महाकुम्भ में भागीदारी की थी। उस समय वहां हुई भगदड़ में कई सौ लोग मरे थे। सन् 1989 में गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने 6 फ़रवरी के प्रयागराज मेले में डेढ़ करोड़ लोगों की मौजूदगी प्रमाणित की थी, जो कि उस समय तक किसी एक उद्देश्य के लिए एकत्रित लोगों की सबसे बड़ी भीड़ थी।