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महाकाल की धरा पर हनुमान अष्टमी

04:00 AM Dec 23, 2024 IST
महाकाल की धरा पर हनुमान अष्टमी
Hanuman
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लंकाविजय के उपरांत अयोध्या लौटने पर भगवान राम के राज्याभिषेक के समय हनुमानजी पृथ्वी की सभी पवित्र नदियों व सरोवरों का पावन जल एकत्र करने के निमित्त निकले थे। इसी दौरान हनुमानजी उज्जैन में मां शिप्रा व श्री महाकाल मंदिर स्थित पवित्र कोटितीर्थ का पावन जल लेने यहां आए थे।

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योगेन्द्र माथुर
पौष कृष्ण अष्टमी उज्जैन में हनुमान अष्टमी के रूप में मनाई जाती है। देश में केवल उज्जैन में ही इस तिथि को हनुमान अष्टमी के रूप में मनाए जाने की पुराणकालीन परम्परा रही है। हालांकि उज्जैन में भी इस मत के मानने वाले कई लोग हैं, लेकिन वे ऐसा अज्ञानता या जानकारी के अभाव में करते हैं। व्यापक मान्यता तो यही है कि हनुमानजी का जन्म चैत्र मास की पूर्णिमा को हुआ था और समूचे देश मे श्रद्धालु इसी तिथि को हनुमान जयंती मनाते हैं।
उज्जैन में हनुमान अष्टमी का पर्व मनाए जाने का सन्दर्भ जन्मोत्सव से अलग है। यहां ऐसी आस्था है कि इस तिथि को पवनपुत्र हनुमान जी का उज्जयिनी में आगमन हुआ था। लंकाविजय के उपरांत अयोध्या लौटने पर भगवान राम के राज्याभिषेक के समय हनुमानजी पृथ्वी की सभी पवित्र नदियों व सरोवरों का पावन जल एकत्र करने के निमित्त निकले थे। इसी दौरान हनुमानजी उज्जैन में मां शिप्रा व श्री महाकाल मंदिर स्थित पवित्र कोटितीर्थ का पावन जल लेने यहां आए थे। ऐसा भी माना जाता है कि सभी पवन नदियों के एकत्र जल के कलश में से कुछ बूंदे यहां कोटितीर्थ में छलक गई थीं। इस प्रसंग की स्मृति स्वरूप यहां हनुमानजी का हाथ में कलश लिए प्रतिमा भी अधिष्ठित है। इसी पवन प्रसंग के संदर्भ में यहां हनुमान अष्टमी का पर्व पूरे भक्तिभाव, उत्साह व धार्मिक अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है। समूचा शहर राम भक्त हनुमान की भक्ति में लीन होता है। हालांकि, कुछ अन्य धार्मिक प्रसंग भी इस पर्व से जुड़े हैं। इन्हें लेकर मतभेद हो सकते हैं लेकिन आस्था व श्रद्धा सबकी एक-सी ही है।
वैसे तो अजर-अमर हनुमान जी वहां सदैव उपस्थित रहते हैं जहां भगवान राम की चर्चा या भक्ति-आराधना होती है लेकिन ऐसी आस्था है कि पौष कृष्ण अष्टमी तिथि को हनुमानजी उज्जैन में ही वास करते हैं और भक्तों की सभी कामनाएं पूर्ण करते हैं। इस अवसर पर नगर के श्री हनुमान मंदिरों की यात्रा के साथ सभी मंदिरों में अखंड रामायण, सुंदरकांड, हनुमान चालीसा पाठ एवं महाप्रसादी (भंडारा) आदि के भव्य आयोजन होते हैं। सभी मंदिरों में अपनी मनोकामना लिए दर्शनार्थियों का तांता लगता है।

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