मन का बंधन
एक कुम्हार था। वह हर दोपहर अपने गधों को पेड़ के नीचे बांध कर विश्राम करता था। एक रोज वह एक रस्सी कम लाया। सभी को बांध दिया, लेकिन एक के लिए रस्सी कम पड़ी। वह उस गधे को पकड़कर खड़ा हो गया। तभी वहां से एक फकीर गुजरा। बोला, ‘जहां रोज इसे बांधते हो, वहीं ले जाकर झूठ- मूठ इसके पांव में हाथ लगा दो। फिर वह कहीं नहीं जाएगा।’ कुम्हार ने ऐसा ही किया और गधा वहीं खड़ा का खड़ा रह गया। विश्राम करने के बाद कुम्हार ने सभी गधों की रस्सी खोली, लेकिन जिसे झूठ- मूठ बांधा था, वह गधा टस से मस नहीं हुआ। कुम्हार ने सोचा- बाबा ने कोई टोना- टोटका कर दिया है, जिस वजह से गधा चल नहीं रहा। इतने में, फकीर लौट कर आया। उसने बताया, ‘अरे भई, जैसे झूठ-मूठ बांधा है, वैसे ही झूठ-मूठ खोल दो।’ कुम्हार ने ऐसा ही किया, तो गधा चलने लगा। वास्तव में, गधे को गधे के मन ने बांधा था। कोई रिश्ते- नातेदार किसी को रस्सी से नहीं बांधता। सभी एक-दूसरे से मन के बंधन से बंधते हैं। मन के बंधन से बड़ा कोई बंधन दुनिया में नहीं है।
प्रस्तुति : अमिताभ स.