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मंज़र

04:00 AM Apr 13, 2025 IST
चित्रांकन : संदीप जोशी

रश्मि ‘कबीरन’

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कैसा ख़ूनी मंज़र है,
हरेक आंख इक खंजर है!

खौल रहा हर इक इंसा,
जाने क्या कुछ अंदर है!

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हर चेहरा जैसे सहरा,
रूह तक फैला बंजर है!

सुकूं जो दिल को पहुंचाए,
मस्जिद है ना मंदिर है!

जाने दरिया का क्या हो,
प्यासा आज समंदर है!

जीत के ये सारी दुनिया,
ख़ाली हाथ सिकंदर है!

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