नयी दिल्ली, 4 मई (एजेंसी)विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत के साथ गहरे संबंध विकसित करने के लिए यूरोप को कुछ संवेदनशीलता दिखाने और पारस्परिक हितों को ध्यान में रखने की सलाह देते हुए रविवार को कहा कि भारत भागीदारों की तलाश कर रहा है, न कि उपदेशकों की। जयशंकर ने एक संवादात्मक सत्र में कहा कि भारत ने हमेशा रूसी यथार्थवाद की वकालत की है और संसाधन प्रदाता एवं उपभोक्ता के रूप में भारत और रूस के बीच महत्वपूर्ण सामंजस्य है और वे इस मामले में एक दूसरे के पूरक हैं। विदेश मंत्री ने रूस-यूक्रेन संघर्ष का समाधान रूस को शामिल किए बिना खोजने के पश्चिम के पहले के प्रयासों की भी आलोचना करते हुए कहा कि इसने यथार्थवाद की बुनियादी बातों को चुनौती दी है। उन्होंने ‘आर्कटिक सर्किल इंडिया फोरम' में कहा, ‘मैं जैसे रूस के यथार्थवाद का समर्थक हूं, वैसे ही मैं अमेरिका के यथार्थवाद का भी समर्थक हूं।' उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि आज के अमेरिका के साथ जुड़ने का सबसे अच्छा तरीका हितों की पारस्परिकता को खोजना है, न कि वैचारिक मतभेदों को आगे रखकर मिलकर काम करने की संभावनाओं को कमजोर होने देना।' जयशंकर ने यूरोप से भारत की अपेक्षाओं संबंधी एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि उसे उपदेश देने के बजाय पारस्परिकता के ढांचे के आधार पर कार्य करना शुरू करना होगा। विदेश मंत्री ने कहा, ‘मुझे लगता है कि यूरोप का कुछ हिस्सा अब भी इस समस्या से जूझ रहा है। कुछ हिस्से में बदलाव आया है।' उन्होंने कहा कि यूरोप को ‘कुछ हद तक वास्तविकता का एहसास' हुआ है। उन्होंने कहा, ‘अब हमें यह देखना होगा कि वे इस पर आगे बढ़ पाते हैं या नहीं।'