नयी दिल्ली, 4 जनवरी (एजेंसी)देश में 1974 और 1998 के परमाणु परीक्षणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रतिष्ठित वैज्ञानिक राजगोपाल चिदंबरम का शुक्रवार देर रात निधन हो गया। वह 88 वर्ष के थे। परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) के एक अधिकारी ने बताया कि परमाणु हथियार कार्यक्रम से जुड़े रहे चिदंबरम ने मुंबई के जसलोक अस्पताल में देर रात 3.20 बजे अंतिम सांस ली।पीएम मोदी ने कहा कि वह चिदंबरम के निधन से बहुत दुखी हैं। मोदी ने कहा, ‘वह भारत के परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख वास्तुकारों में से एक थे और उन्होंने भारत की वैज्ञानिक एवं सामरिक क्षमताओं को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें पूरा देश कृतज्ञता के साथ याद करेगा और उनके प्रयास भावी पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।' डीएई की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, ‘भारत की वैज्ञानिक और रणनीतिक क्षमताओं में डॉ. चिदंबरम के अद्वितीय योगदान और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में उनके दूरदर्शी नेतृत्व को हमेशा याद किया जाएगा।'विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने चिदंबरम के परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की। उन्हें 17 साल तक भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार रहने का गौरव भी प्राप्त है।'वर्ष 1936 में जन्मे चिदंबरम चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज और बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के पूर्व छात्र थे। चिदंबरम ने भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (2001-2018), भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के निदेशक (1990-1993), परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष और भारत सरकार के सचिव, डीएई (1993-2000) समेत कई प्रतिष्ठित पदों पर सेवाएं दीं। उन्होंने 1994 से 1995 तक अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के ‘बोर्ड ऑफ गवर्नर्स' के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ‘एक्स' पर लिखा, ‘‘राष्ट्र प्रतिभाशाली वैज्ञानिक चिदंबरम का अत्यंत ऋणी है और हम उनके उल्लेखनीय योगदान को हमेशा संजोकर रखेंगे।' परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव अजीत कुमार मोहंती ने चिदंबरम के निधन को एक अपूरणीय क्षति बताया। डॉ. चिदमंबरम ने 1974 में देश के पहले परमाणु परीक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1998 में पोखरण-2 परमाणु परीक्षण के दौरान परमाणु ऊर्जा विभाग की टीम का नेतृत्व किया। उनके योगदान ने भारत को वैश्विक मंच पर एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया।