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भारतीय समृद्धि और जीवन रक्षा को संबल

04:00 AM Jan 17, 2025 IST
भारतीय समृद्धि और जीवन रक्षा को संबल
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आईएमडी ने मौसम-निगरानी और विज्ञान-आधारित मौसमीय एवं जलवायु पूर्वानुमानों के माध्यम से, राष्ट्र की सेवा करने में हर संभव प्रयास किया है। इसकी गतिविधियों ने कृषि उत्पादन बढ़ाने, जल संसाधनों का प्रबंधन, विमानन सुरक्षा सुनिश्चित करने और आपदाओं की ताब कम करने में मदद की है।

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रंजन केलकर

कई सरकारी संगठनों का काम वैज्ञानिक अनुसंधान करना है और कई अदारे सीधे तौर पर जन-कल्याण से जुड़े काम करते हैं। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) इस मायने में अद्वितीय है कि इसके हिस्से दोनों जिम्मेवारियां हैं। एक और खासियत जो आईएमडी को अन्य संगठनों से अलग करती है, वह यह है कि इसके लिए भविष्य की सटीक भविष्यवाणी देना एक अनिवार्यता है। यह अवधि अगले कुछ घंटों से लेकर दिनों, महीनों, वर्षों या दशकों तक हो सकती है और कार्यक्षेत्र की परिधि का पैमाना एक हवाई अड्डे या गांव से लेकर एक जिले, राज्य, देश, महाद्वीप या महासागर तक होता है।
15 जनवरी, 1875 को स्थापित हुए आईएमडी ने मौसम-निगरानी और विज्ञान-आधारित मौसमीय एवं जलवायु पूर्वानुमानों के माध्यम से, राष्ट्र की सेवा करने में हर संभव मौसम विज्ञान विधा का उपयोग करने का प्रयास किया है। इसकी गतिविधियों ने कृषि उत्पादन बढ़ाने, जल संसाधनों का प्रबंधन, विमानन सुरक्षा सुनिश्चित करने और आपदाओं की ताब कम करने में मदद की है। आईएमडी लोगों के जीवन से सीधे जुड़ा है, नीतियों को प्रभावित करता है और भविष्य की कल्पना करने में मदद करता है। वास्तव में, आईएमडी ने अपने 150 वर्षों के सफर में एक लंबा रास्ता तय किया है।
पिछले दशक में, विशेष रूप से स्थान एवं समय के तमाम पैमानों पर, आईएमडी के पूर्वानुमानों के दायरे और सटीकता में एक उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। राडार, उपग्रहों और सुपर कंप्यूटरों का उपयोग कर बनाए गए उन्नत भविष्यवाणी मॉडल आईएमडी की तकनीकी-वैज्ञानिक बुनियाद में विस्तार होने का स्पष्ट परिणाम है। उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की वजह से होने वाला जानी नुकसान कई हज़ारों की संख्या से घटकर लगभग शून्य हो गया है। सूखा और बाढ़, जो कि मानसून की बारम्बार घटने वाली प्रवृत्ति है, अब पूरी तरह से प्रबंधनीय हो गए हैं। भारत के ब्रिटिश शासकों को वेधशालाओं के प्रति स्वाभाविक आकर्षण था : खगोलीय, भूकंपीय, भूचुंबकीय और ज़ाहिर है, मौसम संबंधी। आईएमडी के अस्तित्व में आने से लगभग 80 साल पहले भी, स्थानीय सरकारों, रेलवे और बंदरगाह प्राधिकरण ने मौसम रिकॉर्ड करने के लिए अपनी वेधशालाएं स्थापित कर रखी थीं।
ऐसे कई व्यक्ति भी थे जिनके लिए खगोल विज्ञान और मौसम विज्ञान एक गंभीर शौक था। इनमें सिविल नागरिक और सेना के अधिकारी, डॉक्टर, प्रोफेसर, भूगोलवेत्ता, नाविक, सर्वेक्षक और मिशनरी शामिल थे, जो यत्नपूर्वक मौसम संबंधी रिकॉर्ड सहेजकर रखते थे। अपवाद स्वरूप, भारत की सबसे पहली वेधशालाओं में से एक, त्रिवेंद्रम में, अंग्रेजों ने नहीं बल्कि त्रावणकोर के महाराजा द्वारा स्थापित की गई थी। इसलिए, भारत इस मामले में भाग्यशाली है कि उसके पास दो शताब्दियों तक का मौसम संबंधी रिकॉर्ड मौजूद है, जो जलवायु परिवर्तन अध्ययन के लिए एक मूल्यवान भंडार है। वर्ष 1875 तक, भारत में 86 मौसम संबंधी वेधशालाएं खुल चुकी थीं और अब वक्त था उन्हें एक एजेंसी के तहत लाने का। भारत सरकार ने इसका नामकरण ‘भारत मौसम विज्ञान विभाग’ करने का फैसला लिया, जिसका कार्यक्षेत्र क्वेटा से रंगून और लेह से कोलंबो तक फैला हुआ था। आरंभ में इसके नेतृत्व के लिए ‘भारत सरकार का इंपीरियल मौसम विज्ञान रिपोर्टर’ नामक पद सृजित किया गया। बाद में इस पदनाम को ‘महानिदेशक, वेधशालाएं’ और फिर आगे चलकर यह ‘महानिदेशक, मौसम विज्ञान’ हुआ।
इस विभाग की एक खासियत यह भी रही कि इसका कामकाज मालिक-गुलाम वाले औपनिवेशिक ढंग से नहीं चला, भारतीय वैज्ञानिकों की भर्ती 1885 से ही आईएमडी में होने लगी थी और 1920 तक अधिकांश वरिष्ठ पदों पर भारतीय ही आसीन थे। भारत को स्वतंत्रता मिलने से भी काफी पहले, आईएमडी का मुखिया एक भारतीय रह चुका था। यूं आईएमडी में कई ब्रिटिश मौसम विज्ञानी भी थे। जिनके उल्लेखनीय काम ने मानसून और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को बूझने में हमारे ज्ञान में महत्वपूर्ण वृद्धि की। आईएमडी में कार्यरत कई भारतीय मौसम विज्ञानियों ने नए वैज्ञानिक संस्थानों के निर्माण में मदद की। आईएमडी के प्रतीक चिन्ह में शामिल संस्कृत शब्द ‘आदित्यात‍् जयते वृष्टिः’ भारत के सदियों पुराने ज्ञान साहित्य से लिया गया है। जिसका भाव है कि जब तक सूरज चमकता रहेगा, तब तक हमारे लिए मानसून की बारिश होती रहेगी। यह तथ्य है कि प्रत्येक मानसून में यह अपने काम को अंजाम देने में कभी नहीं चूका।
यह बढ़िया रहा कि 2024 के मानसून के दौरान पूरे देश में सकल वर्षा औसत से 8 प्रतिशत अधिक रही, और यह आंकड़ा आईएमडी के पूर्वानुमान के काफी करीब था। यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि 2017 से, मानसून की वर्षा सामान्य रही है, जिसका अर्थ है कि यह दीर्घकालिक औसत के प्लस-माइनस 10 प्रतिशत के मार्जिन के भीतर लगातार रही है। अच्छे या संतोषजनक मानसून की इस शृंखला में वर्ष 2024 आठवां वर्ष था। इसकी सापेक्षता में, भारत का वार्षिक खाद्यान्न उत्पादन 2017 में 275 मिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर 2023 में रिकॉर्ड तोड़ 330 मिलियन मीट्रिक टन छू गया और 2024 में यह आंकड़ा भी पार होने की उम्मीद है। देश की खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण से, यह वृद्धि बहुत महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से इस तथ्य को रेखांकित करती है कि मानसून की पकड़ भारतीय कृषि और इसके माध्यम से समग्र अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक है।
भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सूक्ष्म स्तर पर ज्यादा साफ दिखाई दे रहा है। बादल फटना, अत्यधिक बारिश, भूस्खलन, बिजली गिरना और शहरी बाढ़ जैसी स्थितियां निरंतर बढ़ रही हैं, जिससे फसलों और संपत्ति की भारी हानि और जान-माल का नुकसान हो रहा है। आईएमडी को लक्षित चेतावनियों के माध्यम से इन मुद्दों से निपटने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में, ग्राम पंचायत स्तर पर पूर्वानुमान देने की इसकी योजना स्वागत योग्य है। हाल ही में स्वीकृत और अत्यधिक महत्वाकांक्षी ‘मिशन मौसम’ नामक कार्यक्रम आईएमडी को पुनः सुसज्जित करने और भविष्य के लिए तैयार होने का एक शानदार अवसर प्रदान करेगा।

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लेखक भारतीय मौसम विभाग के पूर्व निदेशक हैं।

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