भाजपा के बड़े सियासी दांव को विपक्षी चुनौती
वन नेशन-वन इलेक्शन भाजपा का महत्वाकांक्षी सियासी दांव है। लोकसभा में स्वीकारे जाने के बाद बिल जेपीसी के पास भेजा गया है। अब सवाल इसे कानून बनाने को लेकर है। तो फिलहाल भाजपा के पास इसके लिए जरूरी विशेष बहुमत नहीं। तो बाजी तय होगी कांग्रेस नीत ‘इंडिया’ गठबंधन की एकता या बिखराव से।
ऋतुपर्ण दवे
भारत में मजबूत लोकतंत्र के बावजूद राजनीतिक दलों के भविष्य की अनिश्चितता को दुनियाभर में बेहद आश्चर्य से देखा जाता है। अब वन नेशन-वन इलेक्शन (ओएनओई) की दिशा में कदम बढ़ गए हैं। निश्चित रूप से भारतीय मतदाताओं की सूझ-बूझ और परिपक्वता इसमें भी देखने लायक होगी। हर चुनावी बाजी आखिरी पल तक किस तरफ जा रही है- इस पर सिर्फ कयास ही सामने आते रहे जो ज्यादातर नतीजों के बाद औंधे मुंह गिरते दिखे। यही वजह थी कि हालिया महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान कोई भी राजनीतिक पंडित या चुनाव विश्लेषक वैसा साफ-साफ कहने की स्थिति में नहीं दिखा जो हरियाणा में दावे करते नहीं अघाते थे।
भाजपा को रोकने के लिए विपक्ष ने बीते डेढ़-दो दशक में चाहे जितनी भी जुगत लगायी लेकिन आपसी होड़ खत्म करने में हर बार नाकामयाब रहे। यह भी सही है कि देश में ज्यादातर क्षेत्रीय दल कांग्रेस से टूट उसकी ही चुनौती बने। ऐसे दल कभी मजबूत हुए और राजनीति की बदलती तासीर के चलते कभी नरम भी पड़े। ऐसा भी दौर आया जब लगा कि क्षेत्रीय दलों का भविष्य बिना कांग्रेस के साथ आए अंधकार में है। वक्त-वक्त पर अपना वजूद बचाने के लिए गठबंधन भी बने और कभी कांग्रेस को बड़ी तो कभी छोटी भूमिका देकर चुनाव लड़ना मजबूरी बनती चली गई। बताने की जरूरत नहीं कि भाजपा के खिलाफ ऐसे गठबन्धन कितने कामयाब रहे।
अब जबकि पहले केंद्रीय कैबिनेट ने एक देश एक चुनाव संबंधी विधेयक को मंजूरी दी फिर लोकसभा में स्वीकारा गया और अब आम सहमति खातिर ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के पास भेज दिया गया। यहां सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से चर्चा होगी। लेकिन क्या इस बिल का कानून बनना आसान होगा? थोड़ा आंकड़ों को समझना होगा। प्रधानमंत्री मोदी के पास इस तीसरे कार्यकाल में पूर्ण बहुमत नहीं है। लोकसभा में 543 सांसदों में बिल पारित होने के लिए 362 वोट जरूरी हैं। अभी एनडीए के पास 293 सांसद हैं और उसमें भाजपा के 240 हैं। यानी 69 वोट कम हैं। जाहिर है दूसरों की मदद चाहिये। वहीं राज्यसभा में भी बिल का पास करवाने के लिए 164 वोट जरूरी हैं जबकि एनडीए के पास 112 सांसद ही हैं। माना कि 6 मनोनीत सांसद हैं लेकिन फिर भी दूसरों का समर्थन जरूरी होगा। दो-तिहाई बहुमत हासिल करने के लिए यहां 52 वोट कम हैं। अगर विपक्ष पर नजर डालें तो लोकसभा में 205 और राज्यसभा में 85 सांसद हैं।
विधि आयोग की 2012 की राय भी देखनी होगी जिसमें संविधान के मौजूदा ढांचे के अंदर एक साथ चुनाव नहीं करवाए जा सकने की बात थी। हालांकि, अब ये बीती बातें हैं। यूं भी विपक्ष भले कमजोर हो लेकिन उसकी सहमति जरूरी होगी। इधर कोविंद समिति की सिफारिशें लागू करने के लिए 18 संविधान संशोधनों की जरूरत होगी। लेकिन ज्यादातर के लिए राज्य विधानसभाओं की सहमति जरूरी नहीं होगी। इधर कोविंद समिति की बात करें तो 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार समिति के समक्ष रखे। ओएनओई के समर्थन में 32 दल थे जिनका मानना है कि इससे संसाधनों की बचत होगी व आर्थिक विकास में तेजी आएगी। वहीं 15 दल साथ नहीं आए जिन्होंने इसे लोकतंत्र और संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ बताया।
जरूरी संशोधनों के बाद ही लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल की समाप्ति एक साथ हो सकेगी। पहला बिल संविधान के अनुच्छेद 82ए में संशोधन करेगा ताकि लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल की समाप्ति एक साथ हो सके जिसमें राज्यों से सहमति जरूरी नहीं। स्थानीय निकाय चुनाव भी लोकसभा और विधानसभा के साथ करने के प्रस्ताव पर न्यूनतम 50 प्रतिशत राज्य विधानसभाओं की मंजूरी लेनी होगी। सारी तकनीकी प्रक्रियाओं के बाद ही ओएनओई हो पाएगा। कितना वक्त लगेगा कह पाना मुश्किल है।
वर्ष 2025 में दिल्ली के चुनाव होने हैं। उसके बाद बिहार, फिर 2026 में प. बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल, पुड्डूचेरी के बाद 2027 में उत्तर प्रदेश तथा दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं। लेकिन क्या वन नेशन वन इलेक्शन की ओर बढ़ चली केन्द्र सरकार को कांग्रेस के नेतृत्व में 26 विपक्षी दलों का ‘इंडिया’ गठबंधन चुनौती दे पाएगा? बेशक इसने 2024 के लोस चुनाव में भाजपा को बैसाखियों के सहारे सरकार चलाने को मजबूर किया। इससे उत्साहित इंडिया गठबंधन के दूसरे क्षेत्रीय दल भ्रम में आ गए कि लोकसभा की जीत में वे ही अहम थे। बस यहीं से गठबंधन में दरार पड़ने लगी। हरियाणा, फिर महाराष्ट्र में हार के बाद गठबंधन की फूट उजागर होने लगी और अब शामिल दल कांग्रेस के खिलाफ बोलते दिख रहे हैं।
भाजपा आज कांग्रेस व शेष विपक्ष के लिए बड़ी चुनौती है। वन नेशन वन इलेक्शन भाजपा, विशेषकर प्रधानमंत्री मोदी का बड़ा सपना है जो देश में नए सियासी दांव के जरिये अलग इबारत लिखने को बेताब हैं। तेजी से मतदाताओं में पैठ जमाती भाजपा ने हमेशा क्षेत्रीय दलों को आगे कर पहले लुभाया फिर खुद को मजबूत करती गई। आज महाराष्ट्र की जीत और ओडिशा में बीजेडी का किला ढहाना सामने है। भारत में वन नेशन-वन इलेक्शन की दिशा में भाजपा ने बिसात बिछा दी है। बस देखना है कि बाजी किसके हाथ होगी?