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भजन कीर्तन, नाम स्मरण व दान का वक्त

04:00 AM Dec 16, 2024 IST
भजन कीर्तन  नाम स्मरण व  दान का वक्त
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खरमास, सनातन धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण समय होता है जो वर्ष में दो बार आता है। यह अवधि विशेष रूप से आत्मशुद्धि, पूजा-पाठ और दान के लिए उत्तम मानी जाती है। इस दौरान शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार नकारात्मक ऊर्जा की अधिकता होती है, जिसे समाप्त करने के लिए विशेष धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।

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चेतनादित्य आलोक
सनातन धर्म में खरमास की अवधि को अत्यधिक महत्वपूर्ण समय माना जाता है। खरमास की अवधि वर्ष में दो बार आती है और प्रत्येक बार यह लगभग 30 दिनों की होती है। देखा जाए तो इनमें से एक अवधि प्रायः मार्गशीर्ष एवं पौष महीने के संधिकाल में आती है, जब खरमास का जन्म होता है। इस बार 15 दिसंबर रविवार को खरमास आरंभ होगा, जो 14 जनवरी मंगलवार तक रहेगा।
खरमास का महत्व
खरमास के दौरान अंशु तथा भग नामक दो आदित्य, कश्यप और क्रतु नाम के दो ऋषि, महापह्म एवं ककोंटक नाम के दो नाग, चित्रांगद और अर्णायु नामक दो गंधर्व, सहा तथा सहस्या नाम की दो अप्सराएं, ताक्ष्र्य एवं अरिष्टनेमि नाम के दो यक्ष और आप तथा वात नाम के दो राक्षस सूर्यदेव के रथ के साथ चलते हैं। वहीं, शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार खरमास की अवधि में सर्वत्र नकारात्मक ऊर्जा की अधिकता होती है। इसलिए इस कालावधि में नकारात्मक ऊर्जा की समाप्ति अथवा शांति हेतु तथा सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि के लिए विशेष रूप से पूजा-पाठ, जप आदि कर्मकांड एवं दान, तप और ध्यान आदि करना बेहद जरूरी माना जाता है।
मांगलिक कार्यों से परहेज
बृहस्पति की राशि धनु अथवा मीन राशि में प्रवेश करने के दौरान भगवान सूर्यनारायण अपने गुरु की सेवा में रहने से क्षीण होकर तेजहीन हो जाते हैं। साथ ही, गुरु यानी बृहस्पति ग्रह का बल भी कमजोर हो जाता है, जिसके कारण गुरु ग्रह में उग्रता आ जाती है, जबकि शुभ कार्यों में सफलता के लिए इन दोनों ग्रहों की मजबूती जरूरी होती है। यही कारण है कि खरमास की अवधि में विवाह, गृहारंभ, गृह-प्रवेश, मुंडन एवं नामकरण समेत अन्य सभी प्रकार के शुभ तथा नवीन कार्यों पर पूर्णतः प्रतिबंध रहता है।
आत्मशुद्धि का समय
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार खरमास का समय भगवान की भक्ति, पूजा-पाठ, दान, ध्यानादि द्वारा आत्मशुद्धि के लिए सर्वोत्तम होता है। दरअसल, इस कालावधि में भगवान सूर्य की आराधना और ध्यान करने से मन विचलित नहीं होता और और विचारों की शुद्धि होती है।
सूर्याराधना का समय
गौरतलब है कि खरमास में भगवान सूर्यनारायण की पूजा-अर्चना और आराधना करने से वे शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। वेद, पुराणादि शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि सामान्य अवधि की तुलना में खरमास के दौरान भगवान सूर्य नारायण की पूजा-अर्चना करने के कई गुना फल प्राप्त होते हैं। यही नहीं, इस अवधि में किए गए दान, जप और तप का भी कई गुना फल प्राप्त होता है।
तुलसी पूजन का महत्व
खरमास के दौरान तुलसी माता की पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है, किंतु इस दौरान तुलसी जी पर सिंदूर या सुहाग सामग्री चढ़ाने एवं तुलसी जी के पत्ते तोड़ने से बचें। हमारे धार्मिक ग्रंथों के अनुसार तुलसी पूजन से भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं। खरमास की अवधि में नकारात्मक ऊर्जा की अधिकता होने पर तुलसी माता की नियमित पूजा-अर्चना करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और परिवार के सदस्यों के जीवन में आने वाले संकट भी दूर होते हैं। यही नहीं, तुलसी माता के पूजन से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
श्रीविष्णु पूजन
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खरमास के दौरान भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना से जीवन में ग्रहों की गति और स्थिति शुभ बनी रहती है तथा कुंडली में ‘गुरु’ यानी ‘बृहस्पति’ ग्रह मजबूत होता है। इससे जीवन में सकारात्मकता आती है। इस कालावधि में भगवान श्रीविष्णु को पीले खाद्य पदार्थों का भोग लगाना चाहिए।
दान-पुण्य से सकारात्मक ऊर्जा
सनातन धर्म में दान-पुण्य करना बहुत महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि इससे व्यक्ति के अच्छे कर्म बढ़ते हैं। इतना ही नहीं, दान-पुण्य का फल जातक को जीवन में और जीवन के बाद भी मिलता है। विशेष रूप से, खरमास में योग्य ब्राह्मणों, निर्धनों, दुखियों और जरूरतमंदों को चावल, गुड़, दूध आदि वस्तुओं का दान देने से जीवन में सुख-समृद्धि एवं सकारात्मकता आती है।
भजन-कीर्तन और नाम स्मरण
खरमास के दौरान भजन-कीर्तन और नाम स्मरण करने का विशेष महत्व होता है। इस कालावधि में समस्त परिवार द्वारा एक साथ मिल-बैठकर भगवान का भजन-कीर्तन करने से भगवान प्रसन्न होकर कृपा करते हैं। यदि संभव हो तो प्रतिदिन शाम के समय घर के मंदिर में अथवा पूजा-स्थल पर दीपक जरूर जलाएं।
वर्जित कार्य
खरमास के दौरान किसी भी प्रकार के नए कार्य या व्यापार की शुरुआत एवं नई खरीद करना वर्जित होता है। इस अवधि में शाकाहारी एवं सात्विक भोजन करना चाहिए। साथ ही, किसी के साथ अभद्र व्यवहार, किसी की निंदा या शिकायत नहीं करनी चाहिए।
धार्मिक अनुष्ठान विधि
खरमास के दौरान सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि नित्य-क्रिया से निवृत्त हो भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य दें। अर्घ्य देने के लिए तांबे के लोटे में जल लेकर और उसमें रोली, अक्षत, गुड़ और लाल फूल डालें। अर्घ्योपरांत बृहस्पति और सूर्य चालीसा का पाठ करें। तत्पश्चात‍् भगवान सूर्य की आरती करें। साथ ही, सूर्य भगवान को मिठाई और फल का भोग लगाकर भक्तों में प्रसाद वितरित करें। अंत में निर्धनों, दुखियों और जरूरतमंदों को यथासंभव दान देने के बाद ही स्वयं प्रसाद ग्रहण करें। खरमास के दौरान मंत्र-जाप करना भी बहुत अच्छा माना जाता है।

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