बांग्लादेश-पाक के नापाक गठजोड़ के खतरे
पाकिस्तान-बांग्लादेश गठजोड़ से सिलीगुड़ी में 80 किमी चौड़े भारत के चिकन नेक कॉरिडोर पर खतरा बढ़ सकता है। ये भारत को समूचे पूर्वोत्तर से जोड़ता है। बांग्लादेश में पाक की एंट्री के बाद पूर्वोत्तर के कट्टरपंथी ग्रुप के और हावी होने की आशंका है।
हरीश मलिक
यह वाकई अजब मंजर है। जिस भारत ने विश्वपटल पर बांग्लादेश के उदय के लिए अपने 1600 सैनिकों की कुर्बानी दी। जिस भारत ने अरबों रुपये खर्च कर इस देश को चलने के काबिल बनाया। उसी बांग्लादेश के उदय के उपलक्ष्य में मनाए गए विजय दिवस पर इस बार फिजाएं भारत विरोधी नारों से गुंजायमान थीं। इसी बांग्लादेश ने भारतीय सैनिकों की याद में सात साल से बनाए जा रहे वॉर मेमोरियल का काम भी रोक दिया है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के साथ निर्मम हिंसा, उनके पूजास्थलों के साथ तोड़फोड़ और तिरंगे के अपमान की खबरें तो पहले ही लगातार आ रही हैं। बांग्लादेश की राजधानी ढाका से चिंतित करने वाली खबर ये भी कि 53 साल पहले करारी हार के बाद बांग्लादेश (तब के पूर्वी पाकिस्तान) से रुखसत होने वाली पाकिस्तानी आर्मी की फिर बांग्लादेश में एंट्री होने जा रही है। पाक आर्मी के मेजर जनरल रैंक के अफसर के नेतृत्व में एक स्पेशल टीम बांग्लादेश की आर्मी को ट्रेनिंग देने के लिए यहां आएगी। शेख हसीना का तख्तापलट होने के बाद आज बांग्लादेश इतिहास के एक ऐसे दोराहे पर खड़ा है, जहां उसके सामने अपने ही अस्तित्व को लेकर गंभीर संकट पैदा हो सकता है।
बांग्लादेश में भारत विरोध का जुनून इस कदर छाया है कि इस प्रक्रिया में कार्यवाहक सरकार के समर्थक अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं। वहां हिंदुओं के उपासना स्थलों के साथ तोड़फोड़ के वीडियो वायरल हो रहे हैं। हिंदुओं से जान बचाने के लिए अपनी पहचान छिपाने तक के लिए कहा जा रहा है। इतिहास गवाह है कि ऐसे समय में, कोई एक व्यक्ति उम्मीद की लौ जगाता है। आशा की किरण और प्रतिकार का प्रतीक बन जाता है। दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला, म्यांमार में आंग सान सू की, भारत में भगत सिंह और बोस, पोलैंड में लेक वालेसा, तिब्बत में दलाई लामा और खुद बांग्लादेश के स्वतंत्र होने पर शेख मुजीबुर रहमान- इसके जीवंत उदाहरण हैं। तो क्या अब इस्कॉन के चिन्मय कृष्ण दास अनजाने में ही बांग्लादेश में हिंदू-उत्पीड़न के प्रतिरोध का प्रतीक बन गए हैं? चिन्मय कृष्ण दास अपने साथियों की हत्या और मंदिरों को जलाने के बाद, बांग्लादेश में हिंदू प्रतिरोध का चेहरा और बांग्लादेश सनातन जागरण मंच के प्रवक्ता बने हैं। बांग्लादेश की इस्कॉन इकाई ने दावा किया कि इस्कॉन पर अनुचित तरीके से काम करने का गलत आरोप लगाया गया है। इस्कॉन पूरी तरह से आध्यात्मिक, अहिंसक, गैर-राजनीतिक, गैर-पक्षपाती और गैर-सांप्रदायिक संगठन है, जिसकी 50 से अधिक वर्षों की बेदाग विरासत है।
बांग्लादेश की केयरटेकर सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस और उनके समर्थक बांग्लादेश की विरासत को खत्म करने में व्यस्त हैं। हालात यह हैं कि वह बांग्लादेश के संस्थापक और राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान का सम्मान तो छोड़िए, जानबूझकर उनके अपमान पर उतारू है। वहां पर उनकी मूर्तियां तोड़ी जा रही हैं। मोहम्मद यूनुस ने राष्ट्रपति भवन से मुजीबुर्रहमान की तस्वीरें हटवा दी हैं। उनके नाम से जुड़ी छुट्टियां तक रद्द कर दी गई हैं। यहां तक कि मुजीबुर्रहमान की फोटो हटाने के लिए बांग्लादेशी करेंसी टका को बदलने के आदेश दिए गए हैं। अगले 6 महीनों में नए नोट मार्केट में आ जाएंगे। इन नोटों पर धार्मिक स्थल और बंगाली परम्परा के चिन्ह बने होंगे। काबिलेगौर है कि शेख मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के संस्थापक होने के साथ ही शेख हसीना के पिता हैं।
बांग्लादेश की सड़कों पर इस वक्त इस्लामिक कट्टरपंथियों का बोलबाला है। शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग तस्वीर से बाहर है। दो अन्य पार्टियां ढाका की सत्ता पर नजर गड़ाए हैं- खालिदा जिया की बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी। चीन जमातियों और बीएनपी की मेजबानी कर रहा है। जमात का इतिहास दागदार रहा है। यह एक कट्टरपंथी और भारत विरोधी संगठन रहा है।
बांग्लादेश ने भारत के चिर-विरोधी पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने में जरा भी देर नहीं की है। इसके लिए वीजा सिक्योरिटी क्लियरेंस को खत्म कर दिया है। 2019 में शेख हसीना की सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों के लिए नॉन ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य किया था। अब यह प्रोसेस खत्म कर दिया गया है। यहां तक कि बांग्लादेश में 50 सालों में पहली बार जिन्ना की 76वीं सालगिरह भी मनाई गई। इस जश्न में पाकिस्तान के डिप्टी हाई कमिश्नर और यूनुस सरकार के कई लोग शामिल हुए। इसमें जिन्ना को बांग्लादेश का ‘राष्ट्रपिता’ घोषित करने तक की मांग की गई। इस कार्यवाहक सरकार ने पाकिस्तान से गोला-बारूद भी खरीदा है। इस गोला-बारूद का इस्तेमाल आर्टिलरी गन में किया जाता है, जो 30 से 35 किलोमीटर की रेंज तक हमला कर सकती है। बांग्लादेश तीन तरफ से भारत से घिरा है और चौथी तरफ बंगाल की खाड़ी है। यानी अगर इसके इस्तेमाल की नौबत आती है, तो भारत के खिलाफ हो सकता है।
ऐसे में भारत की सीमा सुरक्षा बल ने भी अपनी निगरानी बढ़ा दी है। भारत अपनी सबसे लंबी करीब चार हजार किलोमीटर की सरहद बांग्लादेश के साथ साझा करता है। यह सीमा पहाड़ों, उफनती नदियों और घने जंगलों से होकर गुजरती है। भारत का विदेश मंत्रालय बांग्लादेश के हथियार खरीद, पाकिस्तान से दोस्ती और हिंदुओं पर अत्याचार आदि पर नजरें बनाए हुए है। इसीलिए ढाका जाकर विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने अपने समकक्ष मोहम्मद जशीमुद्दीन को स्पष्ट और सख्त शब्दों में कहा है कि सबसे पहले बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की रक्षा, मंदिरों और दूसरे धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने भी यूनुस से फोन पर बात की है। इसमें बांग्लादेश में मानवाधिकारों की बिगड़ती स्थिति व लोकतंत्र पर चिंता जताई गयी। उन्होंने कहा कि हिंदुओं पर हमलों को लेकर बांग्लादेश को ठोस कदम उठाने चाहिए।
अगले साल फरवरी से बांग्लादेशी आर्मी ट्रेनिंग की शुरुआत होगी। पहले चरण की ट्रेनिंग बांग्लादेश के मेमनशाही कैंट में आर्मी ट्रेनिंग एंड डॉक्ट्रिन कमांड (एटीडीसी) मुख्यालय में होगी। एक साल तक चलने वाले पहले चरण के बाद बांग्लादेशी आर्मी की सभी 10 कमांड में भी पाकिस्तान की आर्मी ट्रेनिंग देगी। बड़ा सवाल यह है कि भारत के लिए पाकिस्तान-बांग्लादेश गठजोड़ खतरा क्यों है? दरअसल, पाकिस्तान-बांग्लादेश गठजोड़ से सिलीगुड़ी में 80 किमी चौड़े भारत के चिकन नेक कॉरिडोर पर खतरा बढ़ सकता है। ये भारत को समूचे पूर्वोत्तर से जोड़ता है। बांग्लादेश में पाक की एंट्री के बाद पूर्वोत्तर के कट्टरपंथी ग्रुप के और हावी होने की आशंका है।
दरअसल, बांग्लादेश की सामरिक लोकेशन काफी अहम है। चिकन नेक कॉरिडोर के पास भूटान का डोकलाम भी है। इस पर चीन कब्जा चाहता है। बांग्लादेश में यूनुस सरकार और अब पाक सेना की एंट्री के बाद चीन के लिए बने अनुकूल हालात भारत के लिए चिंता का सबब बन सकते हैं। पाकिस्तान से हाथ मिलाने पर मोहम्मद यूनुस पर तंज कसते हुए मशहूर लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भी कहा कि जिस पाकिस्तान ने लाखों लोगों की हत्या की और करीब दो लाख महिलाओं के साथ बलात्कार किया, उसे अब दोस्त क्यों बनाया जा रहा है? जिस पाकिस्तान ने अभी तक 1971 के अत्याचारों के लिए बांग्लादेश से माफी नहीं मांगी है, वह बांग्लादेश का मित्र राष्ट्र कैसे हो सकता है? भारत के साथ बांग्लादेश की यह ‘कारगुजारी’ माफी लायक कतई नहीं है!
लेखक वरिष्ठ संपादक हैं।