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बहु-संस्कृतिवाद को बनाए रखने के महत्व पर फिर से विचार करने की आवश्यकता : वोहरा

04:04 AM Mar 08, 2025 IST
नयी दिल्ली में शुक्रवार को पुस्तक ‘प्लूरलिज्म इन इंडिया एंड इंडोनेशिया डाइवर्सिटी इन द क्वेस्ट फॉर युनिटी’ का विमोचन करते आईआईसी के आजीवन ट्रस्टी एनएन वोहरा, भारत में इंडोनेशियाई राजदूत इना कृष्णमूर्ति (दाएं से दूसरे) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. शांतिश्री धुलीपुडी पंडित (दाएं), वॉल्यूम संपादक एवं दक्षिण पूर्व एशियाई अध्ययन के प्रो. शंकरी सुंदररमन (बाएं)। -मुकेश अग्रवाल

ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
नयी दिल्ली, 7 मार्च
जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा ने विविधता और एकता प्रबंधन विषय पर तैयार पुस्तक ‘प्लूरलिज्म इन इंडिया एंड इंडोनेशिया डाइवर्सिटी इन द क्वेस्ट फॉर युनिटी’ पर आज चर्चा करते हुए कहा कि एक राष्ट्र के लिए विविधता और एकता का प्रबंधन एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में वोहरा ने कहा कि पुस्तक की अवधारणा स्पष्ट है कि यदि आप विविधता का प्रबंधन नहीं कर सकते, तो आप एकता का प्रबंधन भी नहीं कर सकते।

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उन्होंने भारत का उदाहरण देते हुए कहा कि 1.5 अरब की आबादी, हजारों भाषाएं, आधा दर्जन धर्म और सामाजिक-सांस्कृतिक व सामाजिक-धार्मिक परंपराओं का दर्ज इतिहास मौजूद है। वोहरा ने जोर देकर कहा कि ‘यदि इनका उल्लंघन किया जाता है या छेड़छाड़ की जाती है... कट्टरपंथी विचार प्रक्रियाएं हावी होने लगती हैं, तो अनजाने में ही क्षितिज पर बड़े खतरे मंडराते हैं।’ केंद्रीय गृह सचिव और प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव के रूप में सेवा दे चुके वोहरा ने कहा कि बहु-संस्कृतिवाद को बनाए रखने के महत्व पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है, जिससे देश की एकता बनी रहे।

भारत और इंडोनेशिया के बारे में वोहरा ने कहा कि दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंध 2000 वर्ष पुराने हैं। हालांकि, औपनिवेशिक शासन के कारण ये संबंध बाधित हुए। व्यापार, समुद्री गतिविधियों, सांस्कृतिक और धार्मिक संदर्भों में दोनों देशों के रिश्ते कमजोर पड़ गये। पैनल में वोहरा के साथ भारत में इंडोनेशिया की राजदूत इना कृष्णमूर्ति, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. शांतिश्री धुलीपुडी पंडित और जेएनयू में सेंटर फॉर इंडो-पैसिफिक स्टडीज की चेयरपर्सन प्रो. शंकरी सुंदररमन भी मौजूद रहीं।

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सुंदररमन ने पुस्तक का विवरण देते हुए कहा, एक अध्याय बताता है कि देश ने अपने अस्तित्व के लिए ‘पंचशील’ को प्रारूप के रूप में क्यों चुना। बाली और कलिंग (ओडिशा) के बीच संबंध का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि पुस्तक का एक भाग भारत तथा इंडोनेशिया के बीच साझा संस्कृति एवं संबंधों पर केंद्रित है। यह पुस्तक दोनों देशों के उपनिवेश काल के बाद की विकास यात्रा का विश्लेषण करती है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों की सभ्यताओं में गहरे सांस्कृतिक आदान-प्रदान से बहुलवादी दृष्टिकोण उभरा। राजदूत इना कृष्णमूर्ति ने कहा, ‘भारत और इंडोनेशिया के बीच 2000 साल के साझा मूल्य, साझा संस्कृतियां हैं।’

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