बस्तर में नश्तर
छत्तीसगढ़ के माओवादी हिंसा से ग्रस्त बस्तर के इलाके में पत्रकारिता करना तलवार की धार पर चलने जैसा ही है क्योंकि उन्हें न केवल माओवादियों व पुलिस प्रशासन के कोप का भाजन बनना पड़ता है, बल्कि अपराधी राजनेताओं व ठेकेदारों की हिंसा का भी शिकार होना पड़ता है। इसी कड़ी में टीवी पत्रकार मुकेश चंद्राकर की क्रूरता से हत्या करने और शव को सेप्टिक टैंक में डालने की वीभत्स घटना सामने आई। हत्या की वजह मुकेश द्वारा माओवादी इलाके में एक सड़क निर्माण में धांधली उजागर करना बताया गया है। खबर बीते साल दिल्ली के एक बड़े चैनल से प्रसारित हुई थी, जिसके बाद राज्य सरकार ने इस मामले में जांच बैठाई थी। मुकेश की हत्या नये साल के पहले दिन की गई और तीन जनवरी को ठेकेदार द्वारा बनाये घरों के पुराने सेप्टिक टैंक से मुकेश का शव बरामद किया गया। बाद में मुख्य आरोपी सुरेश चंद्राकर को हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया। दरअसल, ठेकेदार से राजनेता बने सुरेश चंद्राकर कांग्रेस के एक प्रकोष्ठ में राज्य स्तरीय पदाधिकारी रहे हैं। कहते हैं कि पिछले महाराष्ट्र चुनाव में वे एक विधानसभा के पर्यवेक्षक भी रहे हैं। जिसके चलते इस मुद्दे पर जमकर राजनीति हुई। एक ओर बीजेपी ने हत्यारे पर कांग्रेस पार्टी से जुड़े होने का आरोप लगाया तो कांग्रेस ने राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था का मुद्दा उठाया। इस मुद्दे पर दोनों तरफ से खूब बयानबाजी हुई। लेकिन इसके बावजूद एक हकीकत यह है कि पत्रकारों को केवल माओवादियों व सुरक्षाबलों के गुस्से का ही शिकार नहीं होना पड़ता, उन्हें ठेकेदारों, राजनेताओं व अन्य अपराधी तत्वों की हिंसा का भी शिकार होना पड़ता है। उन्हें निर्भीक पत्रकारिता की कीमत जान देकर चुकानी पड़ती है। कहने को तो मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय कह रहे हैं कि वे स्थिति से परिचित हैं और पत्रकारों के साथ खड़े हैं। लेकिन व्यवहार में पत्रकारों की सुरक्षा राम भरोसे ही है।
उल्लेखनीय है कि ठेकेदार की क्रूरता का शिकार हुए मुकेश को पहले माओवादियों ने पुलिस- सरकार का आदमी बताकर धमकाया था। परिजनों का आरोप है कि माओवादियों की धमकी भरी चिट्ठी से पहले सुरक्षा बलों ने मुकेश समेत कुछ अन्य पत्रकारों पर बंदूक तानकर धमकाया था। जिसकी रिपोर्ट भी मुकेश ने बनायी थी। इससे कुछ माह पूर्व बीजापुर के एसडीएम ने मुकेश समेत कुछ पत्रकारों को माओवादी हिंसा की खबर प्रकाशित करने पर नोटिस देकर जवाब मांगा था। वहीं बीजापुर में कांग्रेस अध्यक्ष ने खबरों में पक्षपात के आरोप लगाकर मुकेश समेत कुछ पत्रकारों का बहिष्कार पत्र जारी किया था। घटनाक्रम का दुखद पहलू यह है कि मुकेश की हत्या माओवादियों, सुरक्षा बल या किसी राजनीतिक दल ने नहीं बल्कि एक ऐसे भ्रष्ट ठेकेदार ने की है, जो मुकेश का रिश्तेदार भी था। निश्चय ही यह घटना अन्य पत्रकारों के लिये लगातार असुरक्षित होते हालात की तरफ भी इशारा करती है। कुछ साल पहले बीजापुर में पत्रकार साईं रेड्डी की हत्या कर दी गई थी। जिसे पहले पुलिस ने छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा कानून में जेल भेज दिया था और बाद में माओवादियों ने उसकी हत्या कर दी थी। बाद में पत्रकारों के आंदोलन के बाद माओवादियों ने खेद जताया कि यह शीर्ष नेतृत्व का फैसला नहीं था। निचले कैडर की लापरवाही से उनकी हत्या हुई। इससे पहले माओवादियों ने उन पर पुलिस का मुखबिर होने का आरोप लगाकर उनके घर तक को बम से उड़ा दिया था। दरअसल, मुकेश चंद्राकर एक निर्भीक पत्रकार थे। वे न केवल एनडीटीवी के लिये काम करते थे बल्कि यू ट्यूब पर ‘बस्तर जंक्शन’ के नाम से एक लोकप्रिय चैनल भी चलाते थे। जिसमें वे बस्तर की दबी-छिपी खबरों को प्रसारित करते रहते थे। उल्लेखनीय है कि सुकमा के पत्रकार नेमीचंद की भी माओवादियों ने पुलिस की मदद करने वाला बताकर हत्या कर दी थी। बहरहाल, बस्तर के पत्रकार चौतरफा हमलों के निशाने पर हैं जबकि उनके संस्थानों से उन्हें पर्याप्त पैसा व सुरक्षा तक नहीं मिलती। माओवादियों, पुलिस व प्रशासन के नजले का शिकार होते पत्रकारों की सुरक्षा के लिये बना कानून भी निष्प्रभावी नजर आ रहा है। अब राज्य सरकार विधानसभा में पत्रकार सुरक्षा कानून पेश करने की बात कर रही है।